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जानें और समझें ज्योतिष में मित्रता एवमं ग्रहों के सम्बंध को

किसी भी जातक की जन्मपत्री में मुख्य रूप से मित्र का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा एकादश भाव से मित्र की प्रकृति एवं तृतीय भाव से मित्र से होने वाले हानि-लाभ का विचार किया जाता है।

किसी भी जातक की जन्मपत्री में मुख्य रूप से मित्र का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा एकादश भाव से मित्र की प्रकृति एवं तृतीय भाव से मित्र से होने वाले हानि-लाभ का विचार किया जाता है।

एहसान मेरा दिल पे तुम्हारा है दोस्तों ,यह दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार  प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव में होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थिति के अनुसार तात्कालिक मैत्री।

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इसी प्रकार राशियों में भी आपसी मैत्री संबंध होते हैं। कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते हैं। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियों से होता है। तीनों प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते हैं।

कहा गया है

चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |

चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

अर्थात

संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है।  अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है।

उपरोक्त दोहे के माध्यम से ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छे और वफादार मित्र/दोस्त मिलने योग को अगर देखें तो पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मनुष्य जीवन के सारे महत्वपूर्ण रिश्ते जन्म से मिलते हैं जो हमारे हाथ में नहीं होते है लेकिन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और करीबी रिश्ता जो हम बनाते हैं वह दोस्ती का रिश्ता होता है यह रिश्ता कब और किससे बनता है साथ ही आप और आपके दोस्त के आचार-विचार, रहन-सहन सब कुछ सितारों से बनते हैं इसलिए आपकी जन्मकुंडली, आपका लग्न व आपकी राशि बताती है कौन आपका सच्चा दोस्त होगा।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी कुंडली में स्थित सभी नौ ग्रहों की भी आपस में मित्रता और शत्रुता होती है। इनके संबंधों का भी प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव में होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थितिनुसार तात्कालिक मैत्री। इसी प्रकार राशियों में भी आपसी मैत्री संबंध होते हैं।

कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते हैं। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियों से होता है। तीनों प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते हैं।

उग्र व गर्म मिजाज

दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियों के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्त्वों से बना है और 12 राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों में विभाजित की गई है। अग्नि, भूमि, वायु (इसमें आकाश तत्व भी शामिल है) व जल।

मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती हैं। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्त्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्त्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती हैं।

राशियों में गहरी मित्रता

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कर्क , वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं। ज्योतिष के मुताबिक एक ही तत्व की राशियों में गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्त्व और अग्नि, वायु तत्त्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्त्व वालों की मित्रता भी होती है। लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्त्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्त्वों वाले जातकों में शत्रुता के संबंध होते हैं।

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तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है।

सिर्फ राशियां ही नहीं ग्रहों की भी मित्रता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नव ग्रहों में सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। शास्त्रों में इनमें नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए हैं।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार किसी भी जातक की जन्म कुंडली में मौजूद नवमांश कुंडली के अनुसार मनुष्य का आचरण या स्वभाव जाना जा सकता है।

इस संसार में मोजुद प्राणियों में मनुष्य बड़ा विचित्र प्राणी है। इसके चेहरे पर कुछ और होता है और अंदर मन मे कुछ और होता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मनुष्य के स्वभाव को जानना बहुत मुश्किल काम है । कुछ मनुष्य देखने मे बहुत सुंदर होते है लेकिन मन से बहुत काले कपटी और घमंड या ईगो तथा गंदगी से भरे होते है । इसको जानने के लिए किसी भी जातक की नवमांश कुंडली का प्रयोग करना चाहिए ।

मित्रता/दोस्ती हेतु ज्योतिष अनुसार राशियां भी होती हैं जिम्मेदार

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियों के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है और 12 राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों में विभाजित की गई हैं। ‘अग्नि’ ‘भूमि’, ‘वायु’ (इसमें आकाश तत्व भी शामिल है) व जल। मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती हैं। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती हैं। कर्क, वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार एक ही तत्व की राशियों में गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्व और अग्नि, वायु तत्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्व वालों की मित्रता भी होती है लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्वों वाले जातकों में शत्रुता के संबंध होते हैं। तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृषभ, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है।

दोस्ती पर पीले रंग का प्रभाव

पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार पीला रंग शुभ चीज़ों और मंगल कार्यों से संबंध रखता है। ज्योतिष में इसे बृहस्पति का रंग माना जाता है। पीले रंग का संबंध दोस्ती से है, लेकिन रोमांस से नहीं। वैसे ज्योतिष कहता है कि दोस्ती को प्रेम में बदलने के लिए पीले रंग का प्रयोग लाभकारी है।

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वैवाहिक जीवन में पीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए. बेडरूम में भी पीले रंग का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं करना चाहिए. हां, संतानहीन हों तो कुछ समय के लिए पीले रंग की बेडशीट बिछाएं और बेडरूम में पीले रंग के पर्दों का भी प्रयोग करें।

दोस्ती में होता है ग्रहों का बोलबाला

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सिर्फ राशियां ही नहीं, ग्रहों की भी मित्रता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नवग्रहों में सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। शास्त्रों में इनमें नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए हैं। इसके अलावा ग्रहों में तात्कालिक मैत्री भी होती है, जो इनकी कुंडली में स्थिति के अनुसार होती है जैसे मंगल व शनि कुंडली में एक साथ बैठे हों तो इनमें तात्कालिक मैत्री संबंध होते हैं। मोटे तौर पर हम ग्रहों की तीन प्रकार-मित्रता, शत्रुता व साम्यता के बारे में जानकारी लेते हैं।

आइए देखें ग्रहों के नैसर्गिक मैत्री संबंध क्या हैं

सूर्य- सूर्य के चंद्रमा, मंगल व गुरु मित्र होते हैं। शनि-शुक्र शत्रु व बुध से साम्यता के संबंध हैं। इस प्रकार सिंह राशि वाले की मित्रता मेष, कर्क, वृश्चिक, धनु व मीन राशि वालों से व मकर, कुंभ, वृष व तुला वाले लोगों से शत्रुता होती है। सूर्य तेज व अधिकारिता के स्वामी हैं अत: इनकी चाहत रखने वाले से मैत्री संबंध व शनि व शुक्र क्रमश: सेवा व आराम पसंद होते हैं इसलिए इनसे शत्रुता होती है।

चंद्र- चंद्र ग्रह के अधिकांश ग्रह मित्र होते हैं परंतु बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतू इन्हें पसंद नहीं करते। बुध, शुक्र, गुरु, शनि मित्र व सिर्फ मंगल से शत्रुता होती है। चंद्रमा जल प्रधान व मंगल अग्नि तत्व प्रधान होते हैं। जाहिर है कि आग और पानी में मित्रता नहीं हो सकती।

मंगल-  मंगल के मित्र शनि व सूर्य होते हैं। चंद्र व गुरु से साम्यता व शुक्र व बुध से शत्रुता के संबंध होते हैं। इस प्रकार मेष व वृश्चिक राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, धनु व मीन से तथा वृष, तुला, मिथुन व कन्या राशि से शत्रुता होती है।

बुध- इस ग्रह के सूर्य, गुरु व चंद्र मित्र होते हैं। शनि से इनकी शत्रुता होती है। इस प्रकार मिथुन व कन्या राशि वाले लोगों की मित्रता सिंह, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगों से होती है। मकर व कुंभ राशि से असामान्य संबंध होते हैं।

गुरु- गुरु के मंगल, चंद्र, शनि मित्र व शुक्र तथा बुध से शत्रुता होती है। इस प्रकार धनु व मीन राशि के लोगों की मेष, वृश्चिक, कर्क, मकर व कुंभ से मित्रता तथा वृषभ, तुला व मिथुन, कन्या से शत्रुतापूर्ण संबंध होते हैं। गुरु स्वयं मर्यादा में रहना सिखाते हैं जबकि बुध व शुक्र दोनों ही आदतन इससे दूर रहने वाले होते हैं।

शुक्र- इसके गुरु, सूर्य मित्र व मंगल शत्रु होते हैं। इस प्रकार शुक्र की राशि वृष व तुला वाले लोगों की मित्रता, सिंह, धनु व मीन राशि वालों से तथा मेष व वृश्चिक राशि के लोगों से शत्रुतापूर्ण संबंध होते हैं। चंद्रमा, बुध व शनि के साथ इनके समानता के संबंध होते हैं।

शनि- इस ग्रह की गुरु, चंद्र, मंगल से मित्रता व शनि सूर्य से शत्रुता रखते हैं। अत: मकर व कुंभ राशि वाले लोगों की मित्रता मेष, वृश्चिक, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगों से होती है। सिंह राशि के लोगों से मित्रता नहीं होती है।

ज्योतिष के अनुसार मैत्री के प्रमुख भाव

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पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार  मित्रता का प्रमुख भाव एकादश भाव है जो आय भाव भी है जिसके जितने अच्छे मित्र होंगे, आय भाव उतना ही मजबूत होगा। अन्यथा कमजोर होगा। इस भाव में यदि सूर्य हो तो ऐसे जातक की उच्च पदासीन, सत्तासीन व राजनीतिक लोगों से मित्रता होगी। चंद्रमा इस भाव में होने पर मित्र कलाकार, वायुयान चालक, जहाज के कैप्टन, नाविक आदि मित्र होंगे।

यदि एकादश भाव में मंगल है तो मित्र खिलाड़ी, पहलवान, कुक आदि प्रकृति के लोग होंगे व बुध इस भाव में होने पर व्यावसायिक वृत्ति के लोग, गुरु इस भाव में होने पर बैंकिंग, वित्त धार्मिक आस्था, दार्शनिक आदि मित्र होंगे। शुक्र इस भाव में होने पर अभिनय क्षेत्र, स्त्री जातक, कलाकार आदि मित्रों की संख्या अधिक होगी।

शनि एकादश भाव में होने पर नौकरी पेशा, सेवावृत्ति, अपनी आयु से अधिक उम्र वाले लोगों से मैत्री संबंध होते हैं। यदि इस भाव में राहु या केतू हो तो ऐसे व्यक्ति के छद्म मित्रों व अपनी जाति से इतर लोगों से मित्रों की संख्या अधिक होती है। वह अपने लोगों से दूर-दूर रहता है।

जानिए बुध ग्रह और दोस्ती/मैत्री /फ्रेंडशिप का सम्बन्ध

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार बुध को मित्रता का नैसर्गिक ग्रह माना जाता है। इस प्रकार बुध इन भावों से संबंध बना ले, तो जातक के जीवन में मित्रों की संख्या अधिक होती है। इन भावों तथा बुध के अतिरिक्त जब किन्हीं दो जातकों के राशि स्वामी, लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी आदि एक ही हो जाएं अथवा उनमें मित्रता हो, तो उन जातकों के मध्य मित्रता होना स्वाभाविक है।

पंचम भाव में यदि दो या उससे अधिक पाप ग्रह स्थित हों या उसे देखते हों, तो जातक के जीवन में मित्रों का सुख नहीं होता। पंचमेश यदि पंचम, नवम, एकादश अथवा तृतीय भाव में स्थित हो और उसको पाप ग्रह नहीं देखते हों और न ही युति करते हों, तो जातक को मित्रों का सुख होता है।

एकादश तथा पंचम भाव के स्वामी यदि युति करते हुए त्रिकोण या केंद्र भावों में स्थित हो, तो जातक की मित्रता श्रेष्ठ व्यक्तियों से होती है। यदि तृतीयेश की स्थिति शुभ हो, तो उसे मित्रों से लाभ भी होता है।

तृतीयेश यदि बली तथा शुभ ग्रहों से युक्त होकर शुभ स्थानों में स्थित हो अथवा तृतीयेश का शुभ संबंध पंचमेश या एकादशेश से हो जाए, तो तत्सम्बन्धी ग्रह की राशि वाले जातकों की मित्रता से उसको अधिक लाभ की प्राप्ति होगी।

बुध एवं मंगल पंचम भाव के विशेष योगकारी ग्रह हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में बुध अथवा मंगल योगकारी अथवा मित्र क्षेत्री होकर पंचम में स्थित हों, तो उस जातक के जीवन में मित्रों की कमी नहीं होती है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जानिए अपनी जन्म कुंडली अनुसार कौन सा ग्रह किस दूसरे ग्रह का मित्र, शत्रु तथा सम (न मित्र और न शत्रु) है

सूर्य ग्रह की मित्रता चंद्र, मंगल और गुरु से है, शुक्र तथा शनि से इसकी शत्रुता है और बुध ग्रह से सम भाव है।

चंद्र के बुध, सूर्य मित्र हैं। मंगल, शुक्र, शनि तथा गुरु समय है।

मंगल ग्रह के सूर्य, चंद्र और गुरु मित्र हैं, बुध शत्रु है और शुक्र तथा शनि से इसका सम भाव है।

बुध ग्रह की मित्रता सूर्य तथा शुक्र मित्र हैं, चंद्र शत्रु है और मंगल गुरु तथा शनि सम है।

गुरु की मित्रता सूर्य, चंद्र और मंगल से है। कुछ ज्योतिष के विद्वान गुरु और चंद्र एक-दूसरे को शत्रु भी मानते हैं।

शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं, सूर्य और चंद्र शत्रु हैं तथा मंगल और गुरु समय हैं।

शनि ग्रह बुध और शुक्र से मित्रता रखता है जबकि सूर्य, चंद्र, मंगल को शत्रु मानता है। गुरु से सम भाव है।

राहु और केतु छाया ग्रह माने जाते हैं, विद्वानों के अनुसार राहु और केतु दोनों शुक्र और शनि से मित्रता रखते हैं एवं सूर्य, चंद्र मंगल तथा गुरु इन चारों ग्रह से शत्रुता रखते हैं। बुध इन दोनों ग्रहों से सम भाव रखता है।

सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु ये चारों ग्रह राहु तथा केतु से शत्रुता मानते हैं जबकि शुक्र और शनि राहु-केतु के मित्र हैं। बुध इन दोनों से सम भाव रखता है।

जैसे यदि किसी जातक की कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे नीच या अशुभ हो या 6,8,12 मे बैठा हो तथा शनि राहू केतू से पीड़ित हो तो जातक बाहर से सुंदर तथा अंदर से काला होता है

जैसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे भी शुभ हो तथा शुभ ग्रहों से युति या दृष्टि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी सुंदर और अंदर से भी सुंदर होता है।

जैसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो तथा नवमांश मे शुभ दृष्टि हो या शुभ राशि मे या वर्गोत्तम हो तो ऐसा जातक बाहर से कुरूप या स्पष्टवादी तथा अंदर से भी सुंदर होता है।

जैसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो और नवमांश मे भी पापी नीच या 6,8,12 मे हो या अशुभ राशि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी कुरूप तथा अंदर से भी कुरूप और गंदगी से भरा होता है।

वैदिक ज्योतिष में किसी भी जातक की जन्म कुंडली का ग्यारहवा भाव मित्र/दोस्तों का है। यहां चंद्र सब ग्रहों में अधिक शुभ फल देता है। सब ग्रहो को बल देने वाला ग्रह भी तो चंद्र है। चंद्र मन है।अगर मनोबल द्रढ तो सफलता सामने है।

अगर ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह हो और ग्यारहवें भाव का स्वामी भी शुभयोग में, शुभ द्रष्टी से लग्नेश के साथ संबंध कर रहा हो तो सच्चे और वफादार मित्र मिलते हैं ।

लाभेश केन्द्र, त्रिकोण में शुभ द्रष्टी में हो तो भी अच्छे मित्र मिलते हैं।

अगर दूसरे भाव में लाभेश हो तो भी मित्र से आर्थिक मदद मिलती है और वो  पारिवारिक शुभ संबंध बनाये रखते हैं ।

चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |

चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

अर्थात:

संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और

चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |

उपरोक्त दोहे के माध्यम से ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छे और वफादार मित्र/दोस्त मिलने योग को अगर देखें तो..

ग्रहों के मित्र ग्रह

कुंडली के घर और राशि का भी सम्बन्ध ग्रहों से होता है . घरों का भी सम्बन्ध दृष्टि से होता है.  इस प्रकार कौन सा गृह किस घर और राशि में है , इसका फल गणना में बहुत महत्व होता है , क्योकि ग्रहों में आपसी शत्रुता मित्रता होती है और उसी के अनुसार उसके प्रभाव होते हैं. मित्र ग्रहों के लिए नीचे दिए गए सारिणी (chart) को देखें

सूर्य के मित्र ग्रह कौन हैं? – वृहस्पति, मंगल, चन्द्र

चंद्रमा के मित्र ग्रह कौन हैं? – सूर्य और बुध

मंगल के मित्र ग्रह कौन हैं? – सूर्य, चन्द्रमा, वृहस्पति

बुध के मित्र ग्रह कौन हैं? – सूर्य, शुक्र, राहु

बृहस्पति के मित्र ग्रह कौन हैं? – सूर्य, चन्द्रमा, मंगल

शुक्र के मित्र ग्रह कौन हैं? – शनि, बुध, केतू

शनि के मित्र ग्रह कौन हैं? – बुध, शुक्र, राहु

राहु के मित्र ग्रह कौन हैं? – बुध, शनि, केतू

केतु के मित्र ग्रह कौन हैं? – शुक्र और राहु

ग्रहों के शत्रु

ग्रहों में आपस में शत्रुता भी होती है. जब इन ग्रहों का सम्बन्ध घर, राशि या साथ होने से होता है, तो उस घर, राशि या साथ के दोनों, तीनों या अधिक ग्रहों के फल नष्ट हो जातें हैं और परिणाम अशुभ हो जाता है. शत्रु ग्रहों के लिए निम्न सारिणी (chart) को देखें.

सूर्य के शत्रु ग्रह कौन हैं? – शुक्र, शनि, राहु

चन्द्र के शत्रु ग्रह कौन हैं? – केतु, राहु

मंगल के शत्रु ग्रह कौन हैं? – बुध, केतु

बुध के शत्रु ग्रह कौन हैं? – चंद्रमा

बृहस्पति के शत्रु ग्रह कौन हैं? – शुक्र, बुध

शुक्र के शत्रु ग्रह कौन हैं? – सूर्य, चन्द्र, राहु

शनि के शत्रु ग्रह कौन हैं? – सूर्य, चन्द्र , मंगल

राहु के शत्रु ग्रह कौन हैं? – सूर्य, शुक्र, मंगल

केतु के शत्रु ग्रह कौन हैं? – चन्द्र, मंगल

सामान्य सम्बन्ध 

कुछ ग्रह आपस में न मित्र ग्रह होते हैं, न शत्रु ग्रह. जब ये साथ होते हैं या राशि , घर के दृष्टि सम्बन्ध से मिलतें हैं, तो अच्छा या बुरा प्रभाव नहीं होता . इनका अपना ओना फल होता है .

सूर्य- बुध

चन्द्र – शुक्र, शनि, मंगल, बृहस्पति

मंगल – शुक्र, शनि

बुध – शनि , मंगल, बृहस्पति, केतु

बृहस्पति – राहू, केतू, शनि

शुक्र – मंगल और बृहस्पति

शनि- केतु और बृहस्पति

राहु – बृहस्पति और चंद्रमा

केतु – वृहस्पति, शनि, बुध और सूर्य

ग्रहों की तत्कालिक मित्रता और शत्रुता: मित्र ग्रह शत्रु ग्रह

तात्कालिक मित्रता का अर्थ है, स्थिति के अनुसार मित्रता , जो ग्रहों के घरों में स्थिति के अनुसार होती है.  इसमें ग्रह अपनी स्वाभाविक मित्रता सत्रुता छोड़ कर प्रायः मित्रवत व्यवहार करतें हैं. प्रायः इसलिए की इसमें कुछ अपवादात्मक नियम भी हैं.

मित्रता – कुंडली में 2, 3, 4, 5, 10, 11, 12 में बैठे ग्रह तात्कालिक मित्र होते है।

निम्न लिखित घरों में बैठे ग्रह मित्र होते हुए भी प्रायः शत्रु जैसा व्यवहार करतें हैं।

शत्रुता – 1, 5,6,7, 8 एवं भावों में बैठे ग्रह आपस में शत्रु होते  है।

चन्द्रमा एक शीत और नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन के कारक माने जाते हैं और क्योंकि माता तथा मन दोनों ही किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है। माता तथा मन के अतिरिक्त चन्द्रमा रानियों, जन-संपर्क के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों, परा-शक्तियों के माध्यम से लोगों का उपचार करने वाले व्यक्तियों, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों, होटल व्यवसाय तथा इससे जुड़े व्यक्तियों तथा सुविधा और ऐशवर्य से जुडे ऐसे दूसरे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों, सागरों तथा संसार में उपस्थित पानी की छोटी-बड़ी सभी इकाईयों तथा इनके साथ जुड़े व्यवसायों और उन व्यवसायों को करने वाले लोगों के भी कारक होते हैं।

किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चन्द्रमा की स्थिति अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा सीधे तौर से प्रत्येक व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा वृष राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित चन्द्रमा को उच्च का चन्द्रमा कहा जाता है। वृष के अतिरिक्त चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित होने से भी बलवान हो जाते हैं जो कि चन्द्रमा की अपनी राशि है। चन्द्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर तथा भली प्रकार से स्थित होने पर कुंडली धारक स्वभाव से मृदु, संवेदनशील, भावुक तथा अपने आस-पास के लोगों से स्नेह रखने वाला होता है। ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते तथा इन्हें बिना प्रयासों के ही सुख-सुविधाएं ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती रहतीं हैं जिस प्रकार किसी राजा की रानी को केवल अपने रानी होने के आधार पर ही संसार के समस्त ऐशवर्य प्राप्त हो जाते हैं।

शरीर के हिस्से

चंद्रमा का मन पर प्रभाव होता है। सीना, बहती वस्तुओं का कारक ग्रह होने से शरीर में स्थित द्रव्य जैसे रक्त, मूत्र, पाचक रस, पाचन क्रिया पर चंद्रमा का प्रभाव होता है। रात में प्राकृतिक रोशनी चंद्रमा से ही मिलती है इसलिए दृष्टि व आंख चंद्रमा के अधिकार में है। पुरुषों की बांयी तथा स्त्रियों की दायीं आंख तथा वक्षस्थल पर चंद्रमा का प्रभाव होता है।

गुण

चंद्रमा की रोशनी शीतल है इसलिए शीतलता, ठंडक, पानी से जुड़ा हुआ, हवा में स्थित भांप, गति में बदलाव, सैर की चाह इत्यादि चंद्रमा का गुण धर्म है। चंद्रमा की कर्क राशि कुण्डली में (कालपुरुष की गणना में) चतुर्थ स्थान पर है। यह चतुर्थ स्थान भवन, भूमि, मातृभूमि को दर्शाता है, इसलिए भूमि, भवन, देशप्रेम की भावना का भी विचार चंद्रमा से किया जाता है।

बीमारियां

चंद्रमा का मन पर प्रभाव है। इसलिए मन के रोग, अजीब व्यवहार, चिड़चिड़ापन, उन्माद की बीमारियां आदि चंद्रमा से देखी जाती हैं। पाचन की शिकायतें, बहती वस्तुओं पर अधिकार जैसे खांसी, जुकाम, ब्राकायटीस, हाइड्रोशील, कफ से जुड़ी बीमारियां, दृष्टि दोष चंद्रमा से देखे जाते हैं।

चंद्रमा जल से जुड़ा है इसलिए सिंचाई, जल विभाग, मछली, नौसेना, मोती आदि का कारोबार इससे देखा जाता है। चूंकि चंद्रमा बहती वस्तुओं से संबंधित है इसलिए कैरोसिन, पेट्रोल के कारोबार पर इसका नियंत्रण है। स्नेह का कारक ग्रह होने से फूल, नर्सरी व रसों से जुड़ा कारोबार इसके अधिकार क्षेत्र में आता है।

उत्पाद

चंद्रमा तेज गति वाला ग्रह है इसलिए जल्दी बढ़ने वाली सब्जियां, रसदार फल, गन्ना, शकरकंद, केसर और मक्का इसके उत्पाद हैं। चंद्रमा रंगों का भी कारक ग्रह है इसलिए निकिल, चांदी, मोती, कपूर, मत्स्य निर्माण, सिल्वर प्लेटेड मोती जैसे वस्तुएं बनाने का कारोबार चंद्रमा के अधिकार में है।

स्थान

शीतलता का कारक ग्रह होने से हिल स्टेशन, पानी से जुड़े स्थान, टंकियां, कुएं, हरे पेड़ों से सजे जंगल, दूध से जुड़ा स्थान, गाय-भैंसों का तबेला, फ्रिज, पीने का पानी रखने का स्थान, हैंडपंप आदि को चंद्रमा का स्थान माना जाता है।

जानवर व पंक्षी

छोटे पालतू जानवर, कुत्ता, बिल्ली, सफेद चूहे, बत्तख, कछुआ, केकड़ा, मछली के शरीर पर चंद्रमा का अधिकार होता है। चंद्रमा रस निर्माण का कारक ग्रह है इसलिए रसदार फल, गन्ना, फूल-गोभी, ककड़ी, खीरा, व जल में पनपने वाली सब्जियों पर चंद्रमा का अधिकार है।

चन्द्रमा मनुष्य के शरीर में कफ प्रवृति तथा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा शरीर के अंदर द्रव्यों की मात्रा, बल तथा बहाव को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव वाले जातक सामान्य से अधिक वजनी हो सकते हैं जिसका कारण मुख्य तौर पर चन्द्रमा का जल तत्व पर नियंत्रण होना ही होता है जिसके कारण ऐसे जातकों में सामान्य से अधिक निद्रा लेने की प्रवृति बन जाती है तथा कुछेक जातकों को काम कम करने की आदत होने से या अवसर ही कम मिलने के कारण भी उनके शरीर में चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे जातकों को आम तौर पर कफ तथा शरीर के द्रव्यों से संबंधित रोग या मानसिक परेशानियों से संबंधित रोग ही लगते हैं।

कुंडली में चन्द्रमा के बलहीन होने पर अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर दूषित होने पर जातक की मानसिक शांति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा उसे मिलने वाली सुख-सुविधाओं में भी कमी आ जाती है। चन्द्रमा वृश्चिक राशि में स्थित होकर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष और अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण भी चन्द्रमा बलहीन हो जाते हैं। किसी कुंडली में अशुभ राहु तथा केतु का प्रबल प्रभाव चन्द्रमा को बुरी तरह से दूषित कर सकता है तथा कुंडली धारक को मानसिक रोगों से पीड़ित भी कर सकता है। चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को अनिद्रा तथा बेचैनी जैसी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके कारण जातक को नींद आने में बहुत कठिनाई होती है। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की बलहीनता अथवा चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण विभिन्न प्रकार के जातकों को उनकी जन्म कुंडली में चन्द्रमा के अधिकार में आने वाले क्षेत्रों से संबंधित समस्याएं आ सकती हैं।

गोचर और चन्द्रमा

व्यक्ति के जन्म के समय जो ग्रह जिस राशि में होते हैं, लग्न निकालकर कुंडली में उस राशि में लिखे जाते हैं। ग्रहों की गति के आकार पर राशि परिवर्तन की अवधि होती है। सूर्य की गति स्थिर अर्थात् एक अंश प्रतिदिन के हिसाब से 30 दिवस में राशि परिवर्तन कर लेता है। चंद्रमा की गति काफी तीव्र होने से राशि परिवर्तन सवा दो दिन में कर लेता है।समाचार पत्रों में जो दैनिक भविष्यफल दिया जाता है, उसके अंत में आमतौर पर लिखा होता है, गोचर देखें। आम व्यक्ति गोचर समझता नहीं है। ग्रहों के एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण को गोचर कहते हैं। पाश्चात्य देशों में लग्न एवं सूर्य जिस राशि में हो उसे लग्न मानकर गोचर फलादेश तैयार करते हैं, लेकिन हमारे यहां चंद्रमा जिस राशि में होता है, उसे लग्न मानकर गोचर फलकिया जाता है।

बस और क्या चाहिए

तेरे जैसा यार कहां,कहां तेरे जैसा याराना…

सावधान रहें।। सुरक्षित रहें।।

मित्र….फ्रेंड या दोस्त बनाने से पहले उसकी जन्म कुंडली किसी योग्य और विद्वान् ज्योतिषाचार्य को अवश्य दिखा लेवें।।

आपका भावी जीवन सुखी, समृद्ध और सुरक्षित रह पाएं इसी कामना के साथ कल्याण हो।।