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यहां जानें क्या है शनि और इसके वैज्ञानिक तथ्य

शनि यानी सौर मंडल का सबसे हसीन ग्रह। जिसकी अदा और सूरत से पहली नज़र में ही इश्क़ हो जाए। किसी महबूब की तरह। उसके इर्द गिर्द ख़ूबसूरत छल्ले मानो उसे बोसे देते रहते हैं। अज्ञानता वश उन्हें कष्ट देने वाले ग्रह के रूप में देखा जाता है, अशुभ समझा जाता है, बुरा माना जाता है।

शनि एक दिलकश प्लेनेट

शनि यानी सौर मंडल का सबसे हसीन ग्रह। जिसकी अदा और सूरत से पहली नज़र में ही इश्क़ हो जाए। किसी महबूब की तरह। उसके इर्द गिर्द ख़ूबसूरत छल्ले मानो उसे बोसे देते रहते हैं। अज्ञानता वश उन्हें कष्ट देने वाले ग्रह के रूप में देखा जाता है, अशुभ समझा जाता है, बुरा माना जाता है। हैरानी की बात ये है कि केवल भारत में ही नहीं, वरन पश्चिमी जगत में भी सैटर्न यानी शनि को कमोबेश ऐसी ही उपाधि प्राप्त है। उन्हें वहाँ भी टेढ़ी नज़रों से ताका जाता है, घूर कर देखा जाता है। लेकिन ये धारणा असत्य ही नहीं, शनि के मूल स्वभाव के बेहद विपरीत भी है।

शनि दरअसल, प्राकृतिक संतुलन और समता के मुख्य वाहक और कारक हैं। प्राचीन अभिलेख व पुराणों के सफ़हे पर उभरे उल्लेख शनिदेव को कर्म और न्याय का कर्ता मानते हैं। हां, शनि कष्ट देते हैं, पर सिर्फ़ उन्हें जिनके कर्मों की दिशा विपरीत है, जिन्होंने अपने उलटे कर्मों से अपने खाते में नकारात्मक फलों का सृजन तथा अन्यायपूर्ण रूप से अस्वाभाविक विषमता, वैमनस्य, लोभ व अनुचित पंथ का पोषण किया है, जिन्होंने प्रकृति की व्यवस्था को अपने हाथ में लेने का प्रयास किया है।  सच तो ये है शनि दाता हैं, दयालु हैं, मित्र हैं, मोक्ष के कारक हैं, आध्यात्म के प्रवर्तक हैं, और न्याय के सूत्रधार हैं।

अकेले शनि का सीधा असर कायनात के चालीस प्रतिशत हिस्से पर

भारतीय ज्योतिष में सौरमण्डल के नौ ग्रहों का प्रभाव सृष्टि पर पाया गया है जिसमें से राहू और केतु छाया ग्रह हैं। छाया ग्रह से तात्पर्य गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) और ब्रम्हाण्डिय आकर्षण (Levitation) अर्थात उत्तोलन से है। विज्ञान बचे सात ग्रहों में से सिर्फ़ पांच को ही ग्रह मानता है। वो सूर्य को तारा और चंद्रमा को धरती का उपग्रह कहता है।

ज्योतिष में इन नौ ग्रहों की रेडियो अक्टिविटी के सृष्टि पर प्रभाव का अध्ययन होता है। सबसे कमाल की बात ये है कि ज्योतिष के इन नौ ग्रहों में से अकेले शनि का असर सृष्टि के चालीस प्रतिशत से ज़्यादा लोगों पर पर सीधा और हमेशा रहता है। क्योंकि उनकी रेडियो सक्रियता सबसे अधिक है और सूर्य के एक चक्कर में शनि को सर्वाधिक समय लगता है।इसलिए शनि ज्योतिष के अतिमहत्वपूर्ण ग्रहों  शुमार होते हैं।

कौन हैं शनि

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि सूर्य और छाया के पुत्र हैं। जो वैचारिक रूप से अपने पिता के धुरविरोधी हैं। लेकिन उनके विरोध में घृणा नहीं , श्रद्धा है। वैमनस्य नहीं, अपितु प्रेम है। उनके भाई-बहनों में एक हैं भइया यम, जो मृत्यु के स्वामी हैं। एक बहन यमुना हैं जो पापनाशिनी है और दूसरी बहन हैं भद्रा, जो कालगणना यानी पंचांग के एक प्रमुख अंग में विष्टिकरण के रूप में में शुमार हैं। शनि के गुरु शिव हैं। बुध, राहु, शुक्र, भैरव व हनुमान उनके परम मित्रों की टोली में शामिल हैं और पिता सूर्य के साथ चन्द्र,मंगल महाविरोधी। वृहस्पति सम है।

शनि के नाम 

शनि को सूर्य-पुत्र, शनिश्चर, शनैश्चर, पिप्पलाश्रय, कृष्ण, कोणस्थ, बभ्रु, पिंगल, मन्दगामी, रोद्रान्तक, मंद, सौरि और छायापुत्र नामों से भी जाना जाता है।

शनि क्रूर या मारक हैं  नहीं? आख़िर सत्य क्या है? 

सच तो ये है कि शनि कर्म और न्याय के कारक हैं। अगर व्यक्ति के कर्मों की दिशा सही है तो शनि से बड़ा दाता भी कोई नहीं है। शुभ परिस्थितियों में जो ये कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। जो यह दे सकते हैं, दूसरे ग्रहों के लिए असंभव है। शनि दयालु भी हैं, कृपालु भी।

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वैज्ञानिक तथ्य

शनि ग्रह सूर्य से छठा ग्रह है। वृहस्पति के बाद यह सौरमंडल में सबसे विशाल हैं, जो धरती से नौ गुना बड़ा है। यह सूरज से सर्वाधिक दूरी पर यानी अट्ठासी करोड, इकसठ लाख मील और पृथ्वी से इकहत्तर करोड, इकत्तीस लाख, तिरालिस हजार मील दूर है। शनि का व्यास पचत्तर हजार एक सौ मील है। शनि छ: मील प्रति सेकेण्ड की गति से 21.5 सालों  में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।

शनि पर सामान्य तापमान 240 फ़ॉरेनहाइट है।शनि के चारो ओर सात वलय हैं, और बिना चाँदनी के कई चन्द्रमा है। यानी कवियों के भीतर का काव्य ही छू मंतर हो जाए। उसके हर चाँद का व्यास पृथ्वी से काफ़ी अधिक है। शनि लोहा, निकल, सिलिकॉन और ऑक्सीजन से निर्मित है, जो ठोस हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है। अमोनिया क्रिस्टल की वजह से  इसका रंग पीलापन लिए हुए है।

इस पर हवा की गति, 1800 किमी प्रति घंटा तक होती है। शनि के चारों ओर नौ छल्ले की वलय प्रणाली है जो उसे दिलकश बनाती है। ये छल्ले चट्टानी मलबों व  बर्फ से निर्मित हैं। बासठ चन्द्रमा शनि के चारों ओर महबूब की तरह चक्कर लगाते हैं। इनमे छल्लों के भीतर के सैकड़ों छुटकू चंदामामा भी हैं जो बस दूर से बस आहें भर रहे हैं, शामिल नहीं है। शनि का सबसे बड़ा चाँद टाइटन  है जो सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध से भी विशाल है।

शनि के नक्षत्र और राशियाँ

पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद इन तीन नक्षत्रों के स्वामी शनि देव है।  मकर व कुंभ राशि के भी यही मालिक हैं।  शनि महाराज तुला राशि में 20 डिग्री पर शनि उच्च के हैं  और मेष राशि में 20 अंश पर नीच के।

क्या है शनि की साढ़े साती व शनि की अढ़ैया

शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक गतिशील रहते हैं। इसीलिए उन्हें मन्दगामी भी कहते हैं क्योंकि एक घर में इतने दिनों तक रहने वाले शनि अकेले ग्रह हैं। उनका तीव्र प्रभाव एक राशि पहले से एक राशि बाद तक पड़ता है। यही स्थिति साढ़े साती कहलाती है। जब गोचर में शनि किसी राशि से चतुर्थ व अष्टम  भाव में होता है तो यह स्थिति अढैया कहलाती है। अगर शनि तृतीय, षष्ठ और एकादश भाव में हों तो साढ़ेसाती व अढ़ैया करिश्माई परिणाम की साक्षी बनती हैं। और तब यह योग जीवन को पंख लगाकर नया आकाश देता है। पर अन्य को शुभ परिणाम नहीं मिलते। अगर शनि अष्टम व द्वादश भाव में है तो अपार कष्ट प्राप्त होता है।

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साढ़ेसाती लगभग साढ़ेसात साल और अढ़ैया ढाई साल चलती है। हर किसी के जीवन साढ़ेसाती हर 30 साल में अवश्य आती है। शनि की महादशा 19 साल की होती है। शनि का रत्न वैदुर्य है जिसे नीलम या ब्लू सफ़ायर भी कहते है।

अभी कौन सी राशि है शनि की साढ़ेसाती व अढ़ैया के प्रभाव में?

24 जनवरी 2020 तक शनि धनु राशि में रहेंगे। लिहाज़ा वृश्चिक, धनु और मकर शनि की साढ़ेसाती के अधीन हैं। वृष और कन्या राशि शनि की अढ़ैया के असर में हैं।

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24 जनवरी 2019 से वृश्चिक राशि के लोग साढ़ेसाती और वृष व कन्या के लोग अढ़ैया से मुक्त हो जायेंगे और जश्न मनायेंगे। कुंभ राशि  के लोग साढ़ेसाती की चपेट में आयेंगे और तड़फड़ायेंगे। मिथुन और तुला की अढ़ैया  आग़ाज़ होगा।

आज 24 जनवरी 2020 को शनि के मकर के गोचर के बाद राशियों पर शनि का प्रभाव

मेष- कोई सीधा प्रभाव नहीं

वृष- शनि की अढ़ैया से मुक्ति

मिथुन- शनि की अढ़ैया का आरंभ

कर्क-कोई सीधा प्रभाव नहीं

सिंह- कोई सीधा प्रभाव नहीं

कन्या- शनि की अढ़ैया से मुक्ति

तुला-  शनि की अढ़ैया का आरंभ

वृश्चिक- शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति

धनु- शनि की साढ़े साती

मकर- शनि की साढ़ेसाती

कुंभ- शनि की साढ़ेसाती का आरंभ

मीन- कोई सीधा प्रभाव नहीं

बेहद शुभ हैं शनि इनके लिए

जिसकी कुंडली में शनि देव तृतीय, षष्ठ अथवा एकादश भाव में आसीन हों या स्वग्रही हों तो फ़र्श से अर्श पर बिठाने का माद्दा रखते हैं। इनकी तृतीय, सप्तम व दशम दृष्टि होती है।

शनि यदि मूल त्रिकोण राशि में हों या उच्च के हों तो “शश” नामक पंचमहापुरुष योग बनता है। शनि अगर बृहस्पति की राशि में विराजमान हों तो  अपार मान-प्रतिष्ठा, नाम व यश प्रदान करता है। शनि, बृहस्पति और शुक्र से मिलकर अंशावतार योग बनता है, जो व्यक्ति को विलक्षण बना देता है।

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अपनी दशा में शनि इन्हें देते हैं नकारात्मक फल

राहु या मंगल के साथ होने पर शनि दुर्घटना की संभावना बलवती करता है। सूर्य के बैठ कर पिता या पुत्र को कष्ट देता है।  वृश्चिक में आसीन होकर या चन्द्रमा के संग बैठ कर  भौतिक असफलताओं से नवाज़कर वैराग्य देता है। जिनका शनि अष्टम या द्वादश भाव में हो, शनि अपनी साढ़ेसाती व अढ़ैया में ऐसी की तैसी कर देते हैं। इसके अतिरिक्त लग्न, द्वितीय और पंचम भाव का शनि भी साढ़ेसाती और अढ़ैया में तनाव का सबब बनता है।

शनि जनित रोग

शनि को डायबिटिज,वात रोग यानी वायु विकार, भगंदर, गठिया, टीबी,  कैन्सर, त्वचा रोग, यौन समस्या, फेफड़ों के विकार,  हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।

शनि और करियर 

अध्यात्म, ज्योतिष, योग, राजनीति और कानून संबंधी विषयों पर शनि का सीधा प्रभाव होता है। तृतीय, षष्ठ, नवम, दशम या एकादश भाव में यदि शनि हो तो उपरोक्त क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होती है।

शनि शांति का क्या है उपाय

शनि  न्यायधीश हैं । लिहाज़ा नकारात्मक कर्मों पर क़ाबू पाना शनि के कुप्रभाव से बचने की पहली शर्त है। नेत्रहीनों की सेवा, वृद्धों, दिव्यांगों व असहायों की मदद शनि के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बेहद मुफ़ीद माना गया है। शनि का दान, शनिवार का व्रत, महामृत्युंजय मंत्रों का उपांशु (फुसफुसा कर) जप, हनुमान चालीसा व सुन्दरकांड का सस्वर पाठ शनि जनित कष्टों से जूझने में आत्मिक बल प्रदान करता है, ऐसा मान्यतायें कहती हैं।

शनि सबसे पहले लंग्स यानी फेफड़ों, त्वचा,  जोड़ों और माँसपेशियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए शनि की साढ़ेसाती और अढ़ैया में धूम्रपान, तम्बाकू  और किसी भी प्रकार का नशा समस्या को बढ़ाता है। मान्यताओं के अनुसार हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ फेफड़ों को बल प्रदान करता है।  शनि  के प्रभाव में आनेवाले वालों को इसके अलावा भी वे तमाम उपाय करने चाहिए, जिनसे फेफड़ों, हड्डियों और माँसपेशियों को लाभ पहुँचे, यथा- प्राणायाम, योगासन, कसरत, दौड़ इत्यादि। दूध का पान और नीम के पत्तों का सेवन भी लाभदायक है।

शनि का दान

तेल से बने खाद्य पदार्थ, खट्टे पदार्थ, तेल, गुड़, काला कपड़ा, तिल, उड़द, लोहे, चर्म और काले रंग की वस्तुएं शनि के दान के लिए मुफ़ीद मानी जाती हैं।

24 जनवरी 2020 के बाद किन राशियों पर होगा कैसा असर

24 जनवरी 2020 की दोपहर 12 बजकर 4 मिनट पर जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, कुछ लोग नाचेंगे, मुसकुरायेंगे और कुछ बेचैन नज़र आयेंगे।

मेष-  शनि के गृह परिवर्तन से मेष राशि के लोग खिलखिलायेंगे और चैन की बांसुरी बजायेंगे। ताम्रपाद का दसवाँ शनि नए रिश्तों के सहयोग से कामयाबी के नए हर्फ़ गढ़ेगा।

वृष- शनि का मकर में प्रवेश वृष राशि के लिए नए अलंकार गढ़ेगा। इनका सूरज चढ़ेगा। ये प्रसन्नचित्त नज़र आएँगे। ये लोग राहत की साँस लेंगे। स्वर्ण चरण का नौवाँ शनि आर्थिक उलझन के पश्चात लाभ प्रदान करेगा।

मिथुन-जब के गृह परिवर्तन से इस राशि के लोग शनि की अढ़ैया के असर में आयेंगे। और कसमसाएँगे। रजत चरण का अष्टम शनि आर्थिक तनाव के साथ दैहिक उलझनों की पृष्ठभूमि तैयार करेगा। माता-पिता को कष्ट से इन्हें तनाव मिलेगा।

कर्क-  शनि जब अपनी राशि में मुस्कुराएगा कभी मुँह चिढ़ाएगा। पर कुछ भी हो, ज़िंदगी में मज़ा आएगा। रजत पाए  का सप्तम शनि रिश्तों में गाँठ लगाएगा। पर मान सम्मान को नए आकाश पर पहुँचाएगा।

सिंह- मकर का शनि सिंह राशि के लोगों के हौसले को नई उड़ान देगा।  रजत पाद का छठा शनि आनन्द प्रदायक है। यह  करियर को नया आकाश और मन में विश्वास देगा। जेब भारी रहेगी। प्रसन्नता तारी रहेगी।

कन्या- जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, जोश में आयेंगे और कन्या राशि के लोग शनि की अढ़ैया से मुक्त हो जायेंगे। रजत पाद का पंचम शनि मिश्रित फल देता है। कोई अच्छी ख़बर दिल ख़ुश कर जाएगी। शारीरिक व्याधि से राहत मिलेगी।

तुला- मकर के शनि में तुला राशि के लोग चैन और बेचैनी दोनों का लुत्फ़ उठायेंगे। रजत पाद का तीसरा शनि समृद्धिकारक है, जो लाभ भी  है और जीवनसाथी व परिजनों से विवाद का सूत्रपात भी करता है।

धनु- तक़रीबन पौने पाँच वर्षों का कष्ट अब ढलान पर है। जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, तब इस राशि के लोग साढ़ेसाती अंतिम चरण में प्रविष्ट होंगे। स्वर्ण पाद का दूसरा शनि देश-विदेश घुमाएगा। खर्च कराएगा।

वृश्चिक- जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, तब इस राशि के लोग साढ़ेसाती से मुक्ति का जश्न मनाएँगे। लौह पाद का तीसरा शनि करियर को नया आसमान और जीवन को नयी उड़ान देता है।

धनु- शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, तब इस राशि के लोग साढ़ेसाती अंतिम चरण में प्रविष्ट होंगे। स्वर्ण पाद का दूसरा शनि देश-विदेश घुमाएगा। खर्च कराएगा।

मकर- जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, स्वर्ण पाद का प्रथम शनि शारीरिक कष्ट  नवाजेंगे। यह शनि शिक्षा और अनुभवों से भविष्य के सम्मान की पृष्ठभूमि बनाता है।

कुंभ-जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, कुम्भ राशि के लोग शनि की साढ़ेसाती के असर में आ जायेंगे। रजत पाद का द्वादश शनि आर्थिक संकोच का सूत्रपात करता है।  पर सत्कर्मों से आनन्द भी देता है।

मीन- जब शनि अपनी ही राशि मकर में जायेंगे, जीवन को उत्सव बनाएँगे।  लौह पाद का एकादश शनि करियर में लाभ कराएगा,  देश-विदेश घुमाएगा।

इतिहास के झरोखे में शनि का गोचर

रोचक तथ्य है कि राम मंदिर आंदोलन धनु के शनि में ही परवान चढ़ा और बाबरी मस्जिद का विध्वंस धनु के शनि में ही हुआ। और जब सुप्रीम कोर्ट  ने मंदिर बनाने का फ़रमान भी धनु के शनि में ही सुनाया।

पिछली बार जब अर्थव्यवस्था की गति मंद हुई थी  और चन्द्रशेखर सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा था तब शनि गोचर में मकर राशि में थे। I ना 10 नवम्बर 1990 जब  चन्द्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री बने शनि धनु राशि में था।

15 दिसंबर 1990 3 बजकर 4 मिनट पर शनि का गोचर मकर में हुआ। इस गोचर ने भारतीय अर्थव्यवस्था की चूलें हिला दीं और भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार गिर कर सिर्फ़ 1.1 अरब डॉलर रह गया। जो तीन हफ़्ते के आयात के लिए पूरा नहीं था। तब भारत सरकार को 47 टन सोना गिरवी रखना पड़ा।

इसके भी तीस साल पहले 1959-60 में पुलिस फ़ायरिंग में 105 लोगों की आहुति के पश्चात 1 मई 1960 को जब बॉम्बे प्रान्त के विभाजन के पश्चात महाराष्ट्र और गुजरात दो प्रदेश अस्तित्व में आए थे तब भी शनि धनु राशि में थे। 2 फरवरी 1961 रात्रि 1.52 पर शनि का मकर में गोचर हुआ था।

मकर के शनि में ही 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण किया जिसका बेहद नकारात्मक असर तब की भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा था। 28 फरवरी 1963 को जब राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का निधन हुआ था, तब शनि मकर राशि में चलायमान था। अब एक बार पुनः शनिदेव मकर राशि की तरफ़ अग्रसर हैं।