नई दिल्ली। दक्षिण भारत में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2021) का विशेष महत्व है। इसे प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ये व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरा कृष्ण पक्ष के समय होता है। इस बार ये व्रत बुधवार को पड़ रहा है, ऐसे में इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है।
प्रदोष व्रत में ऐसे करें पूजा
इस दिन जल्दी उठकर स्नानादि करना चाहिए। पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए, जो सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक है। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। उन्हें चंदन, फूल, अक्षत, रोली और धूप आदि चढ़ाएं। माता पावर्ती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान चढ़ाएं। इसके अलावा इस दिन भगवान शिव की चालिसा और आरती का भी जाप करना चाहिए।
भौम प्रदोष शुभ महत्व
शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत से हजारों यज्ञों को करने का फल प्राप्त होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है और संतान दीर्घायु होती है।