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भारत में या विश्व में अभी इतनी बड़ी भयानक घटना का आगमन क्यों ओर कब तक रहेगा असर ?

वैदिक ज्योतिष में लिखा है कि अगर कभी भी शनि राहु और मंगल किसी जगह एक साथ या कभी भी सामने रहे या षडाष्टक अवस्था में रहे तो पूरे विश्व में मानव जीवन पर बहुत बड़ा संकट आता है।

नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में लिखा है कि अगर कभी भी शनि राहु और मंगल किसी जगह एक साथ या कभी भी सामने रहे या षडाष्टक अवस्था में रहे तो पूरे विश्व में मानव जीवन पर बहुत बड़ा संकट आता है और मानव जीवन को बहुत बड़ा नुकसान होता है। वर्तमान में 22 मार्च 2020 से 4 मई 2020 तक शनि और मंगल एक साथ में मकर राशि में एक साथ रहेंगे और साथ में गुरु महाराज भी रहेंगे।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि आगामी 04 मई 2020 को मंगल अपनी मकर राशि को छोड़ कर कुम्भ में चला जायेगा । उसी सूत्र के अनुसार 22 मार्च के बाद से भारत व विश्व में आई इस महामारी ने विकराल रूप धारण किया हुआ है और आप सब देखिये इस ग्रहों के साथ जब गुरु 29 मार्च की रात से मकर राशि में अपना आगमन किया तो शनि व मंगल व गुरु एक साथ और राहु सामने इसलिए एक वाइरस के रूप में विश्व में महामारी का भयंकर रूप धारण कर लिया है ।

चूंकि कोई महामारी अब फैली ओर उसका अनुसन्धान करने का प्रयास किया तो पुस्तकें पढ़ने का मन बनाया और उसमें एक सिद्धान्त मिला जो गजब की बात मिली।जब जब शनि और गुरु एक साथ युति करते है या आमने सामने आते है तो उस समय एक नाटकीय परिवर्तन होता है यह परिवर्तन उस समय ही होता है जब उस समय मंगल साथ में हो या सामने हो तो नाटकीय, हिंसक ओर ऐतिहासिक परिदृश्य के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में जो गोचर चल रहा है, उसके अनुसार 13 अप्रैल तक समय दुनिया के लिए ज्यादा सावधानी का है। उसके बाद सूर्य दो हफ्ते के लिए स्थिति में काफी सुधार करेंगे। सूर्य की आभा को भी उसका कोरोना कहा जाता है। इस कोरोना के चक्र की शुरुआत 26 दिसंम्बर के सूर्यग्रहण से हुई है। जब सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ये तीनों ग्रह बुध के साथ मूल नक्षत्र में राहु, केतु और शनि ग्रसित थे। मूल का अर्थ जड़ होता है।

इसे गंडातंका नक्षत्र कहा जाता है जो प्रलय दर्शाता है। इस पर देवी निरति का अधिपत्य है। निरति का संबंध धर्म के अभाव से है। इनका जन्म समुद्र मंथन में कालकूट विष से हुआ था। इन्हें अलक्ष्मी भी कहा जाता है। ये विध्वंस की देवी हैं और इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम है। भारत के भी दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में इनका प्रकोप दिख रहा है। उक्त सूर्य ग्रहण के ठीक 14 दिन बाद चंद्रग्रहण भी पड़ा। ये सभी ग्रह फिर से राहु, केतु और शनि से पीड़ित हुए।

Jammu Kashmir Corona icon

जैसे ही 15 जनवरी 2020 को केतु अपने मूल नक्षत्र में पहुंचे कोरोना वायरस ने रंग पकडऩा शुरू कर दिया। यह वुहान से बाहर अन्य स्थानों पर भी फैलना शुरू हुआ। केतु 23 सितम्बर तक इसमें गोचर करेंगे और यह समय एहतियात वाला है। राहु-केतु दोनों को रुद्र ग्रह बोला जाता है। यह शब्द संस्कृत की धातु रुद् से उत्पन्न है जिसका अर्थ है रोना। राहु सूर्य और चंद्र को नुकसान पहुंचाता है तो केतु नक्षत्रों को। इस पूरे समय में राहु प्रलय के नक्षत्र अद्रा में चल रहे हैं। 20 मई तक वह इसी नक्षत्र में रहेंगे। इस नक्षत्र पर शिव का तांडव रूप है। इसका संबंध तारकासुर के साथ है, जिसे ब्रह्मा से अमरत्व मिला था। शिव पुत्र ही उसका वध कर सकता था, इसलिए देवों के सेनापति कार्तिकेय का जन्म हुआ। इस तरह यह समय एक महापुरुष के आने का भी संकेत कर रहा है। रुद्र हमेशा समाधिलीन शांत माने जाते हैं मगर राहु का वहां से गुजरना उन्हें उद्दीप्त कर रहा है।

इस रूप में उनकी शक्ति काली हैं। शिव जब रुद्र रूप धारण करते हैं तो प्रकृति में सब तरफ तांडव होता है। राशियों पर भी इसका अच्छा-बुरा प्रभाव दिखता है। आद्रा से गुजरकर राहु भाद्रपद की ऊर्जा को खराब करते हैं। यह अस्पताल के बेड और मरीज की शैया का प्रतीक है। गुरु का उत्तरअषाढ़ा नक्षत्र में गोचर करना भी भाद्रपद को परेशानी में डालता है। इससे मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
यहां पर यह सूत्र लागू हुआ है तो इसका मतलब यह महामारी 4 मई 2020 तक पूरे विश्व को अपनी आगोश में ले लेगी और मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा होगी । अब आप ये मत कहना कि यह बात पहले क्यों नहीं बताई गई थी । अरे भाई कोई मुसीबत या कोई दुर्घटना सामने आती है तो उसका अनुसन्धान किया जाता है और आगे से ऐसी दुर्घटना होने से पहले सूचित किया जा सकता है ।

shani dev raashi
होनी अनहोनी भगवान के हाथ होती है पर लोगों को ज्योतिष परविश्वास रहना जरूरी है मैं पहले भी आपको चेता देता हूँ कि सामने 2020 और 2021 में शनि और गुरु व मंगल फिर आपने सामने या एक साथ होंगे वह तारीख भी आपके सामने रख दी जाएगी। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि यह महामारी 22 मार्च 2020 से एक बार फिर 30 मार्च 2020 से विकराल रूप धारण करते हुए 4 मई 2020 तक अपने भयानकता से मानव जीवन पर एक संकट को स्थापित करेगी उसके बाद धीरे धीरे 14 मई 2020 को जब गुरु वक्री होंगे फिर अपनी ताकत कम करती हुई विश्व को आगोश में लेना बंद कर देगी ऐसा विश्वास है दावा नहीं ।

बचा रहे है सूर्य

सूर्य भी भाद्रपदा नक्षत्र से गुजर रहे हैं। वह इस सौरमंडल में ऊर्जा का स्रोत हैं। इसी वजह से बड़ी संख्या में मरीज ठीक भी हो रहे हैं। सूर्य की इस स्थिति की वजह से 28 व 29 मार्च को चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ बड़ी उपलब्धियां हो सकती हैं। मगर 31 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य रेवती नक्षत्र में होंगे। यह मोक्ष का नक्षत्र है। यहां सूर्य कमजोर होंगे और संकट बड़ा रूप ले सकता है। मगर 14 अप्रैल से 27 अप्रैल तक वह अपनी उच्च राशि मेष के नक्षत्र अश्विनी से गोचर करेंगे। इस समय में कोई बड़ी उपलब्धि मिल सकती है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि वृषभ लग्न की भारत की कुंडली में नवम भाव में आकर मंगल और गुरु की शनि से युति होगी जो कि महामारी के रूप में फैले कोरोना के प्रकोप को कम करेंगे। बाद में 14 अप्रैल 2020 को सूर्य के मेष राशि में प्रवेश और 26 अप्रैल को बुध के भी मेष राशि में आकर सूर्य से युति करने के साथ तापमान में तेजी से वृद्धि होगी और भारत को कोरोना के कहर से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन यूरोप, चीन और अमेरिका में कोरोना का असर केतु के आगामी सितंबर महीने में धनु राशि में गोचर करने तक बना रह सकता है।