Tripindi Shraddha 2022: पिंड दान के लिए काफी अच्छा है त्रिपिंडी श्राद्ध का दिन, पुरखों के साथ आपको भी मिल जाएगी मुक्ति
Tripindi Shraddha 2022: आज के दिन श्री रामचरितमानस और गीता का पाठ करना काफी अच्छा माना जाता है। इसकी पूजा करने के लिए रात के समय चन्द्रमा को दुग्ध का अर्ध्य देना चाहिए है। इसके अलावा, मंदिर जाकर भगवान शिव को दुग्ध, गंगाजल, शहद आदि का रुद्राभिषेक करना चाहिए
नई दिल्ली। हिंदू पंचांग के अनुसार, आज ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है। इस तिथि में स्वाती नक्षत्र का योग बन रहा है। आज के दिन भगवान हनुमान जी का पावन व्रत रखा जाता है। इसके अलावा, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का भी नियम है। आज के दिन श्री सूक्त का पाठ करना काफी अच्छा माना जाता है। इस दिन मंदिर में भगवान विष्णु जी के दर्शन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। त्रिपिंडी श्राद्ध के दिन श्री रामचरितमानस और गीता का पाठ करना काफी अच्छा माना जाता है। इसकी पूजा करने के लिए रात के समय चन्द्रमा को दुग्ध का अर्ध्य देना चाहिए। इसके अलावा, मंदिर जाकर भगवान शिव को दुग्ध, गंगाजल, शहद आदि का रुद्राभिषेक करना चाहिए, साथ ही उन्हें बेल पत्र आदि भी अर्पित करना चाहिए। तंत्र-मंत्र आदि करने वालों के लिए इस दिन को बहुत अच्छा माना जाता है। सिद्धि-प्राप्ति के लिए ये दिन काफी शुभ माना जाता है। मुख्य रूप से इस दिन त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व
त्रिपिंडी पूजा में पिंडदान करने का नियम है। इस दिन दान आदि भी किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध के दिन पिंड दान करने से बालक, किशोर और वृद्ध किसी भी उम्र के व्यक्ति की आत्मा को पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लाभ
त्रिपिंडी श्राद्ध करने से लगभग तीन पीढ़ियों का पितृदोष मिट जाता है। इस दिन की गई पूजा से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। धन-धान्य में वृद्धि होती है। घर से बीमारियां भी दूर भाग जाती हैं। बुद्धिमान और गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।
वयस्क बच्चों की शादी के योग बनने लगते हैं। परिवार में आने वाली मृत्यु का खतरा दरवाजे से लौट जाता है। सपने में मृत परिजनों का दिखना बंद हो जाता है। व्यापार में बरकत होती है। पिंड दान और पितृसेवा करने वाले लोगों को तीनो लोकों में प्रसिद्धि और मान-सम्मान मिलता है। इस दान को करने वाले लोग खुद भी अपनी मृत्यु के बाद मुक्ति की प्राप्ति करते हैं।
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