प्रो. रसाल सिंह
प्रो. रसाल सिंह
प्रो. रसाल सिंह प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। साथ ही, विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, छात्र कल्याण का भी दायित्व निर्वहन कर रहे हैं। इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ाते थे। दो कार्यावधि के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के निर्वाचित सदस्य रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक और साहित्यिक विषयों पर नियमित लेखन करते हैं।

Uniform Civil Code: हिंदू, बौद्ध, सिख, और जैन समुदाय हिंदू कोड बिल के तहत आते हैं, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण कानून शामिल हैं। दूसरी ओर, मुसलमानों पर शरीयत आधारित पांथिक कानून लागू होते हैं, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम प्रमुख है। इन कानूनों के भीतर पितृसत्तात्मक संरचनाएं प्रभावी हैं, जो अक्सर पुरुषों को वरीयता देती हैं। यह प्रवृत्ति महिलाओं के लिए समानता की संभावनाओं को सीमित करती है और विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार संबंधी मामलों में लिंग आधारित भेदभाव को बढ़ावा देती है। इस्लामी न्यायशास्त्र की आड़ में बहुविवाह को भी वैधता प्रदान की जाती है।

Ayodhya Ram Mandir Pran Pratistha: निश्चय ही, 22 जनवरी, 2024 को उद्घाटित होने वाला राम मंदिर पांच सौ वर्ष की संघर्ष यात्रा की परमसिद्धि और परमप्राप्य है। यह मंदिर सिर्फ हिंदुओं की उपासना/आराधना का केंद्र नहीं, अपितु अखिल भारत की सामूहिक आकांक्षाओं और आध्यात्मिक चेतना का साकार रूप है। यह भारत की नवोन्मेषी आत्मा का विराट स्वरूप है।

उच्च कोटि के अनुसंधान के माध्यम से ही आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी प्राप्त किया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने है। निकट भविष्य में प्रौद्योगिक प्रगति ही आत्मनिर्भरता की आधारभूमि होगी।

Happy Teacher's Day 2023: आज स्कूली शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक निजी संस्थानों की भरमार हो गयी है। इन निजी संस्थानों का प्रबंधन अपने यहाँ कार्यरत शिक्षकों को गुलाम या नौकर से अधिक कुछ नहीं समझता। उनकी सेवा अवधि भी प्रबंधन की कृपापर्यन्त ही होती है। प्रबंधन की भौंहें टेढ़ी होते ही सेवामुक्त होना सामान्य-सी बात है। इन निजी संस्थानों में प्रायः कम वेतन देकर अधिक सर्वाधिक खटाया जाता है।

Emergency 1975: आपातकाल के खिलाफ लड़ाई धार्मिक, क्षेत्रीय, सामाजिक और वैचारिक विभाजनों का अतिक्रमण करते हुए विविध समुदायों  और समूहों  को एक मंच पर लायी। इसने भारतीयों के बीच एकता और एकजुटता की भावना को बढ़ावा दिया, लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता को साझा मूल्यों के रूप में संरक्षित करने के लिए संघर्ष को प्रेरित किया। इस व्यापक आधार वाले आंदोलन में सरकार के सर्वसत्तावादी शासन को चुनौती देने की ताकत थी। मीडिया सेंसरशिप के बावजूद, साहसी पत्रकारों और भूमिगत प्रकाशनों ने सूचनाओं के प्रसार और निरंकुश शासन के खिलाफ जनमत जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विभाजित और पराजित हिंदू समाज निराश और कुंठित था। लम्बे इस्लामी शासन ने उसे असहाय, आत्मविश्वासहीन और अस्थिर बना दिया था। भारत का बौद्धिक परिदृश्य क्रमशः बंजर हो रहा था और सांस्कृतिक सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ रहा था। 'म्लेच्छाक्रान्त देशेषु' जैसे विषम वातावरण में भारत मां के देशभक्त सपूत शिवाजी का उदय धूमकेतु की तरह होता है। उन्होंने एक महान हिंदवी साम्राज्य की स्थापना करते हुए विभाजनकारी और दमनकारी इस्लामी शासन का प्रतिरोध किया।

charles III: यह वास्तव में हैरान करने वाला है कि रिकॉर्ड स्तर पर बेरोजगारी और जीवनयापन के गंभीर संकट से त्रस्त देश में करदाताओं ने दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक के राज्याभिषेक को वित्त पोषित किया। इस कार्यक्रम के व्यय का अनुमान $100 मिलियन से अधिक है। एक अनिर्वाचित, वंशानुगत राज्य प्रमुख पर इतना सार्वजनिक धन खर्च किया जा रहा है, यह अनैतिक और अकल्पनीय है।

Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर में क्रमशः बढ़ती आंतकी घटनाओं के विरोध में कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने आगे आकर आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि महबूबा मुफ्ती इस घटना को ‘भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति’ से जोड़कर आतंक और आतंकवादियों को क्लीन चिट दे रही हैं। वे नज़रबंदी से बाहर आने के बाद से लगातार केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसियों पर हल्ला बोल रही हैं।

भारत की स्वतंत्रता और एकता-अखंडता के लिए अपने प्राण गंवाने वाले जम्मू-कश्मीर के हजारों वीरों और वीरांगनाओं के नाम पर विद्यालयों, महाविद्यालयों, चौकों, मार्गों, पुलों, बस अड्डों, रेलवे–स्टेशनों आदि के नाम रखने की पहल सराहनीय है। यही लोग जम्मू-कश्मीर की युवा पीढ़ी के आइकॉन होने चाहिए।

India's G-20 Presidency: भारत के पास इस अध्यक्षय पद का कार्यभार भू-राजनीतिक उथल-पुथल, महामारी के बाद की आर्थिक अनिश्चितता और जलवायु परिवर्तन के उभरते संकट के समय में आया है। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने रूस और औद्योगिक रूप से विकसित पश्चिमी देशों के बीच संबंध खराब कर दिए हैं।


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