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शिक्षा नीति 2020 : देर आए दुरुस्त आए

एक कहावत है देर आए दुरुस्त आए। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की सरकार ने आते ही नई शिक्षा नीति (New education policy) लाने की घोषणा कर शिक्षा जगत के विद्वानों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को प्रसन्नता व आनंद से अभिभूत कर दिया।

नई दिल्ली। एक कहावत है देर आए दुरुस्त आए। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की सरकार ने आते ही नई शिक्षा नीति (New education policy) लाने की घोषणा कर शिक्षा जगत के विद्वानों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को प्रसन्नता व आनंद से अभिभूत कर दिया। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने 17 जनवरी 2015 को 33 बिंदु प्रस्तुत कर विमर्श प्रारंभ करा देश के बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और संस्थाओं आदि को सुझाव के लिए आह्वान किया। लगभग साढ़े पांच वर्ष के लंबे चिंतन-मंथन, संवाद, संगोष्ठियों तथा दो लाख से अधिक सुझावों के बाद 29 जुलाई 2020 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को स्वीकार कर सर्वजन के लिए प्रस्तुत किया है। भारत सरकार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय तथा समिति के सदस्यों का बहुत-बहुत अभिनंदन और आभार।

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इससे पूर्व 1986 में नई शिक्षा नीति के नाम से राजीव गांधी एक शिक्षा नीति लाए थे। 1992 में कुछ संशोधन के साथ वही शिक्षा नीति पुन: रखी गई थी इस 21वी सदी के 20 वर्ष बीतने को हैं अब (नई) राष्ट्रीय शिक्षा नीति आपके सम्मुख है, अनेक बार नियम बने परंतु व्यवहार में नहीं आ पाए प्रति दस वर्ष में नई शिक्षा नीति आए, ऐसा सुझाव पूर्व के अनेक आयोगों ने दिया था। अभी भी 2030 को लक्ष्य करके यह शिक्षा नीति प्रस्तुत है। साल 2015 के सतत विकास एजेंडे- 2030 में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडे के अनुसार विश्व में 2030 तक सभी के लिए समावेशी और सामान गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य है। वर्तमान समय की विश्वव्यापी चुनौतियों को इस नई शिक्षा नीति में स्थान दिया गया है जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, घटते प्राकृतिक संसाधन, ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों, स्वच्छ जल, पौष्टिक भोजन, स्वच्छता आदि पर विशेष ध्यान देने पर इस नीति में जोर दिया गया है।

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वास्तव में वर्तमान समय की आवश्यकता है कि प्रत्येक विषय में पर्यावरण के साथ-साथ नए विषय जलवायु-विज्ञान, वानिकी, कृषि, स्वास्थ्य-शिक्षा, समाज-जीवन की शिक्षा तथा वर्तमान समय में चल रही कोविड-19 जैसी वैश्विक आपदा से लड़ने के लिए विद्यालय स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की तैयारी की शिक्षा भी विद्यार्थियों को दी जाए। भारत सहित समूचा विश्व विगत छह-सात माह से इस भयंकर करोना महामारी से जूझ रहा है। विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय सभी पूर्णत: बंद हैं। ऐसे में भावी शिक्षा की नीति आधुनिक तकनीकी-ज्ञान, कौशल तथा जीवन मूल्यों से ओत प्रोत हो। पढ़ने की कला, सतत सीखते रहने की कला में हमारे विद्यार्थी दक्ष हों। इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए सर्वांगीण, बहुआयामी विकासोन्मुखी ऐसी शिक्षा हो जो सिद्धांत तथा व्यवहार में बाल केंद्रित हो, शिक्षा की समस्त प्रक्रिया का केंद्र विद्यार्थी/शिक्षार्थी ही रहे।

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पूर्व की शिक्षा नीतियों में शिक्षा को रोजगार परक बनाने के लिए व्यावसायिक (वोकेशनल) शिक्षा तथा देश से निरक्षरता को समाप्त करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा पर भी जोर दिया गया था। हमारा इससे अलग मत नहीं है। शिक्षा रोजगारपरक बने, कौशल का विकास हो परंतु साथ ही मूल्यों का उन्नयन भी हो, नैतिकता का अवनमन न हों अर्थात पुल न ढहें, प्रति वर्ष की मानसूनी बारिश में करोड़ों, अरबों रुपए की लागत से बनने वाले बांध न बहें, इस पर भी ध्यान दिया जाए। शिक्षा मूल्यों का रोपण कर उच्च आदर्शवान युवा तैयार करें। ऐसा ना हो कि हरिया कलेक्टर साहब के दफ्तर के द्वार पर सुबह से शाम तक भूखा-प्यासा इंतजार ही करता रहे। शिक्षा नीति का लक्ष्य ऐसे युवा तैयार करना हो जिनकी संविधान में पूर्ण निष्ठा हो, जो लोकतांत्रिक देश में लोक कल्याण की भावना को सर्वोच्च प्राथमिकता दें, तंत्र का दुरुपयोग ना करें। देश के युवा अपना जीवन लोक हितकारी कार्यों, समाज की सेवा में लगाएं। शिक्षा प्राप्त कर युवा विद्यार्थी के जीवन में शुचिता, सत्यनिष्ठा, निर्लोभता, सरलता, सादगी, बंधुता-व्यवहार में सहज परिलक्षित होनी चाहिए तथा आजीवन रहनी चाहिए। सरकार ने इस शिक्षा नीति के लिए दो समितियों का गठन किया था, एक डॉ.सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में समिति बनाई गई तथा दूसरी प्रो. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में मसौदा समिति बनाई गई थी। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

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* विद्यालयी शिक्षा का ढांचा 5 + 3 + 3 + 4 होगा। बच्चों को बाल्यावस्था से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, प्रारंभ से ही उनकी सीखने की नींव मजबूत हो इस दृष्टि से प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) पर विशेष बल दिया गया है। राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) इसके लिए दो फ्रेम वर्क तैयार करेगी। 0 से 3 वर्ष के बच्चों हेतु और 3 से 8 वर्ष की आयु वर्ग हेतु। अब कक्षा तीन से परीक्षाओं की व्यवस्था प्रारंभ होगी।

* सभी स्तर पर मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा अर्थात शिक्षार्थी के घर परिवार में बोले जाने वाली भाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है। इस संबंध में 6 मई 2014 का उच्चतम न्यायालय का निर्णय भी है कि शिक्षा का माध्यम अभिभावक तय करेंगे न कि सरकार या संस्थान अर्थात खुशी की बात यह है कि अब अंग्रेजी की अनिवार्यता नहीं रहेगी। विद्यालय प्रांगण में अंग्रेजी न बोलने पर हमारे मासूमों तथा अभिभावकों को आर्थिक दंड का भुगतान तथा जलालत नहीं झेलनी होगी। देश के बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के आतंक से मुक्ति मिलने की सुनहरी किरणें इस शिक्षा नीति में दिखाई देती हैं।

* त्रिभाषा सूत्र रहेगा। विदेशी भाषा का विकल्प केवल कक्षा 9 से 12 वर्ग के लिए रहेगा।

* दसवीं कक्षा में बोर्ड की परीक्षाएं नहीं होंगी। कक्षा 9 से 12 वर्ग में सेमेस्टर सिस्टम लागू होगा आठ सेमेस्टर होंगे।

* स्वतंत्र भारत में पहली बार इस शिक्षा नीति में विषय चयन का अधिकार विद्यार्थियों को मिला है अर्थात अब आर्ट, साइंस, कॉमर्स स्ट्रीम में विषयों की बाध्यता नहीं रहेगी कोई विद्यार्थी जीव विज्ञान के साथ अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास की शिक्षा भी प्राप्त कर सकता है।

* व्यवसायिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का सहज अंग बनाते हुए कक्षा 6 से ही कौशल विकास को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है अब स्थानीय व्यवसाय यथा कुम्हार, लोहार, बढ़ई, दर्जी और सुनार आदि सभी विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष 10 दिन का प्रशिक्षण देंगे। कक्षा 6 से ही क्रेडिट प्रणाली प्रारंभ। अब विद्यालय शिक्षा का पाठ्यक्रम तथा पाठ्य पुस्तकें ऐसी होंगी जिनमें रटकर सीखने के बजाय रचनावादी तरीके से सीखने को महत्व दिया जाएगा।

* सर्व समावेशी शिक्षा की दृष्टि से 6 अध्याय विद्यालय शिक्षा में होंगे तथा 11 अध्याय उच्च शिक्षा में होंगे।

* साहित्य व अनुसंधान कार्य के विकास के लिए बहुभाषी संस्थान खोले जाएंगे।

* इस सरकार ने भी शिक्षा नीति में जीडीपी का 6% बजट शिक्षा के लिए व्यय करने का संकल्प दिखाया है।

* पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम भारत केंद्रित होगा प्रत्येक कक्षा में भारत बोध पढ़ाया जाएगा।

* उच्च शिक्षा में भी समग्रता का पाठ्यक्रम होगा अर्थात इंजीनियरिंग के साथ-साथ कृषि, इतिहास, बैंकिंग पाठ्यक्रम के अंग होंगे चिकित्सा शिक्षा के विद्यार्थी को 50% जीवन को गढ़ने वाले विषय यथा राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, सामान्य ज्ञान, संगीत, चित्रकला आदि पढ़ने होंगे। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थी को मनुष्य बनाने वाली शिक्षा उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का विचार हुआ है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद आदि संस्थाओं के स्थान पर एक संस्था ‘भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग’(HECI) के गठन कर एकीकृत शैक्षिक चिंतन व किर्यान्वयन का विचार हुआ है।

* देश में वर्तमान समय में लगभग 30,000 एकल महाविद्यालय हैं अर्थात किसी एक विषय का शिक्षण यह महाविद्यालय प्रदान करते हैं। अब सभी संस्थाओं का एकीकरण किया जाएगा। ये सभी संस्थाएं प्रमाण पत्र देने वाली संस्थाएं रहेंगी। अनेक संस्थाओं का समूह (क्लस्टर) बनाकर बहु विषयक संस्थान में रूपांतरित किया जाएगा।

* इस शिक्षा नीति में शिक्षा के ढांचे को जटिलता से सुगमता की ओर बढ़ाया गया है अर्थात अब विद्यार्थी किसी भी स्तर पर अपना अध्ययन प्रारंभ कर सकता है तथा छोड़ सकता है। शेष पढ़ाई को किसी भी स्तर पर पुन: प्रारंभ कर सकता है। अभी तक की शिक्षा नीतियों में सबसे विकट समस्या यही थी कि किसी विद्यार्थी की विवाह होने पर, पारिवारिक समस्या आने पर अथवा स्थानांतरण होने से शिक्षा छूट जाने पर विद्यार्थी के लिए कोई विकल्प ही उपलब्ध नहीं था। इस शिक्षा नीति में इस विषय पर विशेष ध्यान दिया गया है अर्थात 4 वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम होगा। प्रथम वर्ष पूरा करने वाले को प्रमाण पत्र, 2 वर्ष पूरा करने वाले को डिप्लोमा, 3 वर्ष पूरा करने वाले को डिग्री तथा 4 वर्ष पूरा करने वाले को ऑनर्स डिग्री संस्थान प्रदान करेंगे। चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम करने वालों के लिए स्नातकोत्तर की शिक्षा मात्र एक वर्ष की होगी। अब समय की बाध्यता नहीं है कभी भी विद्यार्थी अपनी छुटी हुई पढ़ाई को पुनः प्रारंभ कर सकेगा।

* उच्च शिक्षा में एक क्रेडिट बैंक भी विद्यार्थियों के लिए बनाने का प्रावधान किया गया है। अर्थात कोई विद्यार्थी अलग-अलग संस्थाओं से अलग-अलग विषय में पढ़ाई कर सकता है। विद्यार्थी अपनी रुचि के विषयों में पढ़ाई कर अपने क्रेडिट अपने खाते में जमा करता जाएगा तथा अंत में किसी एक संस्थान में वहां के नियमों के अनुसार बाकी पढ़ाई पूरी कर उपाधि प्राप्त कर लेगा शेष बचे क्रेडिट को वह भविष्य में उपयोग ले सकेगा।

* शिक्षा क्षेत्र में शोध की अपार संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान के गठन का प्रावधान किया गया है। इसके लिए 22000 करोड़ का बजट रखा गया है सरकार की शिक्षा मैं शोध को बढ़ावा देने की शुभेच्छा का एहसास किसी बात से हो जाता है कि सरकार ने फरवरी 2020 के बजट में इसके लिए 200 करोड़ रुपए अग्रिम दे दिए थे।

108 पेज (हिंदी) में समाहित इस शिक्षा नीति पर दृष्टि डालने से लगता है कि 21वी सदी में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 हर मायने में 21 ही साबित होगी। सन 1836 की मैकाले की गुलाम मानसिकता वाली शिक्षा से मुक्ति की संभावनाएं इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। क्रियान्वयन की दृष्टि से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए सभी भद्र जन सरकार को सचेत भी रखें और सहयोग भी करें। विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाले भारत को शैक्षिक, बौद्धिक,मानसिक,आध्यात्मिक रूप से समर्थ वैश्विक युवा बनाने के लिए आओ हम सभी सज्ज हों।

इस लेख के लेखक संजय स्वामी हैं जो राष्ट्रीय संयोजक (पर्यावरण शिक्षा) शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े हैं, इनके संपर्क का मोबाइल नंबर- 9871082500 है। लेख में व्यक्त सारे विचार लेखक के निजी हैं।