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आपातकाल: आज हर बात पर संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस ने जब उड़ाई थीं संविधान की धज्जियां

25 जून 1975 को स्वतंत्र भारत में देश पर कांग्रेस द्वारा थोपा गया आपातकाल एक कड़वा सत्य है। संविधान बचाने की दुहाई देने वाली कांग्रेस पर यह एक ऐसा दाग है जिसे सदियों तक नहीं धोया जा सकता। जब भी कांग्रेस के इतिहास पर बात होगी यह कालिख गहरे रंग में उसके दामन पर नजर आएगी

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ से बार बार यह झूठ बोला गया कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो संविधान बदल देगी, बावजूद इसके कांग्रेस को सत्ता नहीं मिली, लेकिन हर बात पर संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस 25 जून 1975 की रात को भूल गई जब इंदिरा गांधी ने संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया था, नागरिकों के मौलिक अधिकारों जैसी कोई चीज नहीं रह गई थी। हजारों लोगों को बिना किसी कसूर के जेल में ठूंस दिया गया था। आपातकाल में इसी संविधान की प्रस्तावना तक बदल डाली गई थी।

इलाहाबाद कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी ठहराते हुए उनके चुनाव को रद कर दिय था। साथ ही इंदिरा गांधी पर छह साल के लिए चुनाव लड़ने की पाबंदी लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को नहीं बदला, नतीजतन सत्ता में बने रहने के लिए इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल तो 1975 में लगा लेकिन इससे पहले ही इंदिरा गांधी सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को सीमित करना चाहती थी। इसकी योजना उन्होंने बहुत पहले से बनाई हुई थी। इसकी शुरुआत तब से हुई जब गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि संसद कोई भी मौलिक अधिकार नहीं छीन सकती न ही उसमें कटौती कर सकती है। दरअसल गोलकनाथ के परिवार के पास पंजाब में 500 एकड़ कृषि भूमि थी, सरकार ने इसे ज्यादा बताते हुए पंजाब सुरक्षा और भूमि काश्तकारी अधिनियम के तहत छीन लिया था। पंजाब में भी कांग्रेस की सरकारी थी। जाहिर था यह भी इंदिरा गांधी के इशारे पर ही किया गया था। इस मामले में सरकार ने गोलकनाथ के पक्ष में निर्णय दिया।

ऐसे में इंदिरा गांधी ने संविधान में 24 वां संशोधन किया। इसमें कहा गया कि संसद के पास संविधान संशोधन अधिनियमों को लागू कर किसी भी मौलिक अधिकार को कम कर सकती है या फिर छीन सकती है। बहरहाल यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। 25 जून 1971 की रात जिस तरह से आनन फानन में आपातकाल लागू किया वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मानसिकता को दर्शाता है कि कैसे वह सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती थीं।

Emergency

आपातकाल लगते ही इंदिरा गांधी ने अपनी निजी सचिव आरके धवन से रातों रात कांग्रेस विरोधियों के नामों वाली चिट्ठी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजीं और सभी को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। यह सूची उनके पुत्र संजय गांधी ने बनाई थी। इसमें सबसे पहले जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई का नाम था। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, विजयाराजे सिंधिया, चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, चंद्रशेखर सहित एक लाख से अधिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया।

प्रेस पर भी लगा दी गई पांबदी
आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 3800 छोटे—बड़े अखबारों को जब्त कर लिया गया। मीडिया हाउसेस की बिजली काट दी गई। 290 संपादकों को नजरबंद कर दिया गया। 7 विदेशी पत्रकारों को देश से बाहर भेज दिया गया। सिर्फ वही पत्रकार बाहर बचे जिन्होंने आपातकाल को सही ठहराया।

फिल्मों पर भी लगा दी गई पाबंदी
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम के लिए फिल्मी जगत पर भी दबाव बनाया। जो दबाव में नहीं आए उन्हें तरह तरह से परेशान किया। ऐसे ही गायक थे किशोर कुमार, उन्होंने कांग्रेस की रैली में गाने से मना कर दिया था तो उनके गानों पर रोक लगा दी गई। फिल्म इंडस्ट्री से देवानंद ने आपातकाल का विरोध कर इसे प्रोपेगेंडा बताया था इसलिए सरकार ने उनकी सभी फिल्मों के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। दक्षिण भारत की फिल्म अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी ने आपातकाल का विरोध किया तो जेल में रखकर इतनी प्रताड़नाएं दी गईं कि हृदयाघात से उनकी मृत्यु तक हो गई।

संवैधानिक मर्यादा को भंग करके सरकारी तंत्र को परिवार की जागीर बनाने की परंपरा इंदिरा गांधी ने शुरू की थी। यही परंपरा कांग्रेस में बाद में भी चलती रही। मनमोहन सरकार के समय सोनिया गांधी भी इसी परंपरा का निर्वहन करती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू इस बारे में अपनी किताब में बड़े विस्तार से लिख चुके हैं कि कैसे पीएमओ के काम में हस्तक्षेप होता था। आज संविधान बचाने और तानाशाही की बात करने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार के जनप्रतिनिधि संशोधन अध्यादेश को 2013 में सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था। पूरी कांग्रेस में किसी में हिम्मत नहीं हुई कि इसका विरोध करे।

तानाशाही और संविधान बदलने वाली कांग्रेस को इस बारे में सार्वजनिक तौर पर बोलने से पहले अपने अतीत में जाकर झांकना चाहिए। जिस तरह के बयानबाजी कांग्रेस आज कांग्रेस के नेताओं की तरफ से की जाती है वह या तो कांग्रेस को अतीत को नहीं जानते नहीं हैं, या फिर जानबूझकर उसे झुठलाते हैं, लेकिन आपातकाल लगाकर कांग्रेस ने जिस तरह देश को दर्द दिया था वह दाग की कालिख कभी कांग्रेस के दामन से नहीं मिटाई जा सकती है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।