भारत में कोरोना के साथ जीना सीखना होगा! यहां कई और बीमारियों की वजह से प्रतिदिन मर रहे हजारों!

कोरोनावायरस के कारण जहां दुनिया भर में खौफ का माहौल है। वहीं अबतक इस महामारी ने पूरी दुनिया में ऐसा कोहराम मचाया कि तीन लाख से ज्यादा लोगों की इसकी वजह से मौत हो चुकी है और 46 लाख से ज्यादा लोग इसके संक्रमण के शिकार हैं।

Avatar Written by: May 16, 2020 3:19 pm
india Corona

कोरोनावायरस के कारण जहां दुनिया भर में खौफ का माहौल है। वहीं अबतक इस महामारी ने पूरी दुनिया में ऐसा कोहराम मचाया कि तीन लाख से ज्यादा लोगों की इसकी वजह से मौत हो चुकी है और 46 लाख से ज्यादा लोग इसके संक्रमण के शिकार हैं। भारत में इस महामारी ने दस्तक तो देर से दिया लेकिन 70 दिनों के करीब गुजरते-गुजरते इस महामारी ने 85 हजार से ज्यादा लोगों को अपने चपेट में ले लिया और 3 हजार के करीब लोग इसकी वजह से मौत की गोद में सो गए। यह अपना विकराल रूप दिखाना बंद नहीं कर रहा। पूरी दुनिया की बड़ी आबादी इसकी वजह से चारदिवारी में कैद हो गई है। संपर्क के सारे माध्यम ध्वस्त हैं। लोग एक दूसरे से दूरी बनाकर रखने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं। पूरी दुनिया खौफ के साये में जीने को मजबूर है।

भारत के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। भारत में एक तो घनी आबादी है ऊपर से स्वास्थ्य सेवाएं खास्ताहाल ऐसे में अगर इस महामारी ने भारत में अपनी जड़ें जमाने में कामयाबी हासिल कर ली तो पता नहीं मौत का कैसा तांडव मचेगा। लोग इसी बात से खौफजदा हैं। लेकिन बारत केवल इसी महामारी से अपने लोगों के जान गंवा रहा है ऐसा नहीं है। आज नेश्नल डेंगू दिवस के दिन हम आपके सामने कुछ ऐसे आंकड़े पेश करने जा रहे जिससे आपको मालूम चल जाएगा कि कोरोना से भी खतरनाक कई बीमारियां भारत में हर रोज हजारों की संख्या में लोगों को मौत के आगोश में भेज रही है।

Malaria

भारत में लॉकडाउन के चौथे चरण में प्रवेश करने को हम तैयार हैं। देश आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका है। 99 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की जिंदगी हमने सड़कों और रेल की पटरियों पर खत्म होती देख ली है। पूरे देश में भूख और भूख बस यही मंजर पसरा पड़ा है। आंकड़ों की मैनें तो देश की 33 प्रतिशत से ज्यादा बड़ी जनसंख्या जल्दी ही गरीबी रेखा से नीचे चली जाएगी। मतलब आप साफ समझ सकते हैं कि स्थिति कितनी भयावह होनेवाली है। वहीं दूसरी तरफ इस महामारी को लेकर डब्ल्यूएचओ ने भी ये मान लिया है कि कोरोनावायरस शायद एचआइवी की तरह ‘एंडेमिक’ यानी स्थानिक रोग हो जाए और कभी नहीं जाए! दुनिया को अब इस वायरस के साथ ही जीना सीखना पड़ सकता है! मतलब आ समझ रहे हैं कि जिससे लड़ने के लिए पूरी दुनिया के साथ भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था चौपट कर ली वह हमेसा लोगों की मौत का कारण बनता रहेगा तो फिर भारत में इससे निपटने के दौरान भूख से मरनेवाले लोगों को भी इसी महामारी से मरा हुआ क्यों ना मान लिया जाए?

आज आपके सामने मैं कुछ ऐसी बीमारियों का जिक्र करनेवाला हूं जिससे हर दिन भारत में 500 से 1000 के करीब लोगों की मौत होती है इस हिसाब से आप देखें तो आपको पता चल जाएगा कि भारत में कोरोना महामारी से मौत के आंकड़े से ज्यादा भयावह इन बीमारियों से मौत का आंकड़ा है। ऐसी कई बीमारियां हैं जिनसे हर साल इससे कहीं ज्यादा मौतें होती हैं।

देश में वर्तमान समय में मृत्यु दर 7.3 है। यानी हर साल प्रति हजार 7 लोगों की मौत होती है। पिछले 10 सालों से यह दर 7.2 से 7.6 के बीच रही है। इस तरह से देखा जाए तो 135 अरब जनसंख्या वाले हमारे देश में हर साल करीब 1 करोड़ लोग मारे जाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा मौतें दिल (16%) और सांस (8.6%) की बीमारियों से होती हैं। इन बीमारियों से मौतों का एक दिन का औसत देखा जाए तो दिल की बीमारियों से एक दिन में 4 हजार और सांस की बीमारियों से एक दिन में 2 हजार से ज्यादा मौतें होती हैं। वहीं टीबी और बच्चे के जन्म से पहले और बाद के कुछ हफ्तों में होने वाले मां और बच्चों की मौतों का एक दिन का आंकड़ा एक हजार से ज्यादा है। मलेरिया से भी हर दिन 500 से ज्यादा मौतें होती हैं।

Corona Warriors

भारत की तरह ही दुनियाभर में भी सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में दिल की बीमारियों और स्ट्रोक के चलते दुनियाभर में 1.52 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। पिछले 20 सालों से दुनियाभर में हुई मौतों का सबसे बड़ा कारण यही बीमारियां रही हैं। इसी के साथ साल 2016 में सांस नली की बीमारियों से 30 लाख, फेफड़ों के कैंसर से 17 लाख और एचआईवी जैसी संक्रामक बीमारियों से 10 लाख मौतें हुईं।

साल 2019 में ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने भारत में होने वाली मौतों पर डेटा रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक, 2017 में भारत में 70 लाख मौतों का अनुमान लगाया गया। इनमें से महज 14.1 लाख मौतें मेडिकल सर्टिफाइड थीं। यानी भारत में होने वाली 22% मौतें ही मेडिकल सर्टिफाइड थीं। 1990 की तुलना में इस आंकड़े में महज 9% की बढ़ोतरी हुई है। 1990 में कुल मौतों का 12.7% ही मेडिकल सर्टिफाइड होता था। यानि 2019 तक आते-आते भी इस देश में 78% मौतों का सही कारण पता लगाना मुश्किल है।

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ में पब्लिश एक रिपोर्ट में भी यही बताया गया था कि भारत में 75% से ज्यादा मौतें घरों में ही होती हैं, इस कारण इनकी मौतों के कारणों का सही आकलन नहीं लगाया जा सकता। 20 से 25% मामलों में ही मौतें हॉस्पिटल में होती हैं। जो मौतें हॉस्पिटल में होती हैं, वे ही मेडिकल सर्टिफाइड हो पाती हैं। भारत में अन्य देशों के मुकाबले कोरोना से हुई कम मौतों के कारण के पीछे भी यही तर्क दिया जा रहा है कि यहां ज्यादातर मौतें मेडिकल सर्टिफाइड नहीं होती इसलिए कोरोना से मौतों का आंकड़ा यहां कम है।

HIV

ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि कुल मेडिकल सर्टिफाइड मौतों का 61.9% हिस्सा पुरुषों का होता है। यानी आखिरी समय में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को हॉस्पिटल ले जाने की दर ज्यादा है। मेडिकल सर्टिफाइड मौतों में दिल से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों का हिस्सा 34% से ज्यादा था। इसी तरह 9.2% मौतें सांस से जुड़ी बीमारियों के कारण, 6.4% मौतें कैंसर के कारण और 5.8% मौतें नवजातों की थीं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि गोवा में 100% मौतें मेडिकल सर्टिफाइड होती हैं। दिल्ली का नंबर दूसरा (61.5%) और मणिपुर का नंबर तीसरा (55%) था।

Corona

भारत में टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। प्रसव के पहले और बाद में होने वाली मौतों के लिए भी आंगनबाड़ियों के जरिए कार्यक्रम चलते हैं लेकिन फिलहाल लॉकडाउन के कारण यह सब पिछले 50 दिनों से थमे हुए हैं। वर्तमान में देश के पूरे संसाधन और मशीनरी कोरोना महामारी से लड़ने में लगी हुई है। एक स्टडी में सामने आया है कि भारत में अगर कोरोना के कारण अन्य बीमारियों से ध्यान हटा तो इनसे होने वाली मौतों की संख्या में बड़ा इजाफा होगा। यूएसएआईडी के सपोर्ट से स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के साथ मिलकर इंपीरियल कॉलेज, एवनीर हेल्थ और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में कहा गया है कि भारत में एक महीने के लॉकडाउन के कारण साल 2020 से 2025 के बीच टीबी से 40 हजार अतिरिक्त मौतें होंगी।

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इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनियाभर में अगर लॉकडाउन 3 महीने तक चलता है तो टीबी से होने वाली मौतों का आंकड़ा फिर से 2013 से 2016 के बीच पहुंच जाएगा यानी टीबी उन्मूलन के लिए पिछले 7 सालों में चलाए गए मिशनों का नतीजा जीरो हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, 3 महीने के लॉकडाउन से दुनियाभर में 63 लाख टीबी के अतिरिक्त मामले सामने आएंगे और मौतें भी 14 लाख बढ़ जाएंगी।

यह आंकड़ें सिर्फ टीबी के हैं। डब्लूएचओ की एक स्टडी में यह भी बताया गया है कि कोरोना के कारण मलेरिया और एचआईवी उन्मूलन कार्यक्रम में आने वाली रुकावटें और दवाईयों तक पहुंच में आने वाली समस्याओं से इनसे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी आने वाले दिनों में बढ़ेगा। भारत में साल 2017 में मलेरिया से 1.85 लाख और एचआईवी से 69 हजार मौतें हुईं थीं। वहीं यूनिसेफ की मानें तो अगले छह महीने में भारत में पांच साल से कम उम्र के 3,00,000 यानी तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है! ये मौतें कोविड 19 से होने वाली मौतों से अलग होंगी‌ और इसलिए होंगीं कि स्वास्थ्य और चिकित्सा तंत्र को लगभग पूरी तरह कोरोनावायरस से जूझने में लगा दिया गया है। लॉकडाउन की वजह से अन्य बीमारियों का इलाज और बच्चों के पोषण की स्थिति चिंताजनक है।

वहीं एक बार एडीज मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी डेंगू के बारे में जान लेते हैं। यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि अगर इसका सही से इलाज नहीं किया जाए तो एक दिन में मरीज की मौत भी हो सकती है। अंग्रेजी वेबसाइट ब्रेकडेंगू की मानें तो इससे करीब 150 देश प्रभावित हैं। वहीं, दुनियाभर के करीब 300 करोड़ लोगों का इससे संक्रमण का खतरा है। जबकि, अमेरिकी जर्नल में छपी खबर के मुताबिक 40 करोड़ लोग इससे प्रतिवर्ष प्रभावित होते हैं। ऐसे में देखा जाए तो डेंगू कोरोना से कम खतरनाक नहीं है। और मजे की बात ये है कि इसका अबतक वैक्सीन नहीं बन पाया है, इसलिए यह बीमारी हर वर्ष महामारी के तरह फैलती है। पूरी दुनिया के लोग आज भी इसके प्रकोप के साथ जीने को मजबूर हैं। शायद कुछ ऐसा ही कोरोना के साथ भी होने वाला है हमें इसके साथ भी ऐसे ही जीने की आदत डालनी होगी। क्योंकि देशभर में जितनी जानें महामारी की वजह से जाती है उससे ज्यादा जिंदगियां खराब और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से हर वर्ष चली जा रही है। ऊपर से मौत के आंकड़े दर्ज भी नहीं हो पा रहे कि आखिर किस वजह से मौत हुई।

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तो अब साफ हो गया है कि भारत के लोगों को भी कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी ही होगी, जैसे यहां लोग टीबी, मलेरिया, टायफाइड, डेंगू जैसे ना जानें कितनी बीमारियों के साथ लड़ते भिड़ते जीने की आदत डाल चुके हैं। इसके अलावा जो सामान्य सी बातें और सावधानियां कोरोना से बचने को लेकर बताई गई है भारत के लोगों को उसी को इसका इलाज मानकर अपनी आदतों में शामिल करना होगा। क्योंकि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था आजादी के 70 सालों बाद भी भगवान भरोसे ही है और आनेवाले सालों में भी इसमें सुधार की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।