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रोशनी एक्ट उर्फ़ जमीन जिहाद और गुपकार गैंग की फुफकार

रोशनी एक्ट की आड़ में सरकारी भूमि की लूट का आलम यह था कि नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस जैसी पार्टियों के प्रदेश कार्यालय इसी एक्ट की आड़ में हथियाई गयी भूमि पर बने हैं। कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आज़ाद ने सैकड़ों करोड़ की सरकारी भूमि अपने चहेतों को कौड़ियों के भाव आवंटित कर दी।

9 अक्टूबर, 2020 का दिन जम्मू-कश्मीर की तारीख के चुनिंदा महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। इस ऐतिहासिक दिन एकजुट जम्मू संगठन के अध्यक्ष एडवोकेट अंकुर शर्मा द्वारा जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में दायर किये गए दो वादों (P।L-41/2014 और CMP- 48/2014) पर अपना निर्णय देकर उनके पक्ष की पुष्टि की। पहले वाद में उन्होंने रोशनी एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए उसे निरस्त करने की मांग की थी। सन् 2001 में फारुख अब्दुल्ला की सरकार द्वारा पारित किये गए ‘द जम्मू-कश्मीर स्टेट लैंड्स (वेस्टिंग ऑफ़ ऑनरशिप टू द ओक्युपेंट्स) एक्ट-2001’ के तहत राज्य सरकार ने मामूली कीमतें तय करते हुए सरकारी भूमि का अतिक्रमण करने वाले लोगों को ही उस भूमि का क़ानूनी कब्ज़ा देने का प्रावधान कर दिया। सबसे पहले सन् 1990 तक के कब्जों को वैधता देने की बात हुई फिर बाद की मुफ़्ती मोहम्मद सईद और गुलाम नबी आज़ाद की सरकारों ने अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए इस तिथि को आगे बढ़ाते हुए 2003 और 2007 तक के अवैध कब्जों को भी वैधता प्रदान कर दी। इस कानून को रोशनी एक्ट इसलिए कहा गया क्योंकि इससे अर्जित धन से राज्य में बिजली परियोजनाएं लगाकर विद्युतीकरण करते हुए राज्य में रोशनी फैलानी थी। लेकिन इसका ठीक उलट काम हुआ। न सिर्फ सरकारी जमीन की बंदरबांट और संगठित लूट-खसोट हुई,बल्कि जम्मू संभाग के जनसांख्यकीय परिवर्तन की सुनियोजित साजिश भी हुई। इस एक्ट के लाभार्थियों की सूची देखने से साफ़ पता चलता है कि यह जम्मू संभाग के ‘इस्लामीकरण’ का सरकारी षड्यंत्र था। उदाहरणस्वरूप जम्मू के उपायुक्त द्वारा न्ययालय में प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के अनुसार तवी नदी के कछार में अतिक्रमण करने वाले 668 लोगों में से 667 मुस्लिम समुदाय से हैं। तमाम रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठिये भी इसके लाभार्थी रहे हैं। जम्मू शहर की सीमावर्ती वनभूमि पर बसायी गयी भटिंडी नामक कॉलोनी (जिसे स्थानीय लोग ‘मिनी पाकिस्तान’ कहते हैं) एक और उदाहरण है। हजारों की संख्या में रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठिये भी इसके ‘लाभार्थी’ रहे हैं। सुन्जवां और सिद्धड़ा भी अतिक्रमण के बड़े ठिकाने हैं।

यह धर्म-विशेष के लोगों को लाभ पहुंचाकर, विशेष रूप से जम्मू संभाग में उनके वोट बनवाकर और बढ़वाकर लोकतंत्र के अपहरण और अपनी सत्ता के स्थायीकरण की बड़ी सुनियोजित और संगठित कोशिश थी। रोशनी एक्ट वास्तव में भ्रष्टाचार और जेहादी एजेंडे के कॉकटेल की बेमिसाल नज़ीर है। अपने दूसरे वाद में एडवोकेट अंकुर शर्मा ने 25 हजार करोड़ से ज्यादा मूल्य की इस साढ़े तीन लाख कैनाल भूमि की लूट-खसोट की जांच ACB की जगह सीबीआई से कराने की मांग की, ताकि इस गुनाह में शामिल रसूखदार नेता और नौकरशाह जांच को प्रभावित न कर सकें। ज्ञातव्य है कि इस लूट-खसोट में न सिर्फ मंत्री, सांसद, विधायक आदि राजनेता बल्कि पुलिस-प्रशासन के आला अफसर भी शामिल रहे हैं। सर्वप्रथम सन् 2011 में प्रोफ़ेसर एस के भल्ला इस मामले को एक जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय में लेकर गए। उसके बाद भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में इस भूमि घोटाले की वित्तीय अनियमितताओं और सरकारी बदनीयती पर प्रश्नचिह्न लगाये गये। उसके बाद अंकुर शर्मा ने इस मामले को अंतिम परिणति तक पहुंचाते हुए देश की आंख खोलने वाले इस भूमि घोटाले का पर्दाफाश करने में सक्रिय भूमिका निभाई। इस भ्रष्टाचार में नेताओं, नौकरशाहों और भू-माफिया की आपसी सांठ-गांठ और धर्म-विशेष के लोगों को सुनियोजित लाभ पहुंचाने के कारण ही इसे ‘जमीन जेहाद’ भी कहा जा सकता है। यह घोटाला ‘रक्षकों के भक्षक’ बन जाने की लोमहर्षक कहानी है। संवैधानिक शपथ और राजधर्म  की खुली अवहेलना और धार्मिक भेदभाव की दास्तान भी इस घोटाले की अन्तर्निहित पटकथा है।

Gupkar Gang

रोशनी एक्ट की आड़ में सरकारी भूमि की लूट का आलम यह था कि नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस जैसी पार्टियों के प्रदेश कार्यालय इसी एक्ट की आड़ में हथियाई गयी भूमि पर बने हैं। कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आज़ाद ने सैकड़ों करोड़ की सरकारी भूमि अपने चहेतों को कौड़ियों के भाव आवंटित कर दी। गुलाम नबी आज़ाद और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मंत्री गुलाम रसूल कार जिस ख़िदमत ट्रस्ट के न्यासी रहे हैं, वह भी बड़े अतिक्रमणकारियों की सूची में शामिल है। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और उनकी बुआ सुरैय्या अब्दुल्ला मट्टू और खालिदा अब्दुल्ला शाह, पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद शाह के साहिबजादे , भांजे और अन्य कई परिजन, पीडीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री हसीब द्राबू और काजी मोहम्मद अफ़ज़ल के बेटे टीपू सुल्तान, कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री के के अमला, अब्दुल मजीद वानी और ताज मोहिउद्दीन, नैशनल कॉन्फ्रेस के नेता और पूर्व मंत्री सज्जाद अहमद किचलू, तनवीर किचलू, सैय्यद आखून,जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव मोहम्मद शफी पंडित, पूर्व एडवोकेट जनरल असलम गोनी, जम्मू-कश्मीर बैंक के पूर्व चेयरमैन एम वाई खान, पूर्व न्यायाधीश अली मोहम्मद के साहिबजादे  अशफाक अहमद मीर, पूर्व पुलिस अधिकारी नासिर अली, खालिद दुर्रानी और मिर्ज़ा रशीद, पूर्व वन अधिकारी कमर अली और सुल्तान अली, उद्योगपति मुश्ताक छाया, मोहम्मद सलीम बख्शी और मोहम्मद हुसैन जान, ओवेस अहमद, जमात अली जैसे ‘बड़ी पहुंच वाले’ लोग भी इसके लाभार्थी हैं। ये सूची जम्मू और कश्मीर संभाग के मंडलायुक्तों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर जारी की जा रही हैं। सीबीआई जांच आगे बढ़ने पर उसके जाल में और भी अनेक बड़ी मछलियाँ फंसेगी।

Amit Shah gupkar

धर्म विशेष (हिन्दू धर्म) और क्षेत्र विशेष (जम्मू संभाग) के लोगों के साथ भेदभाव और उपेक्षा और सरकारी संसाधनों की लूट-खसोट और बंदरबांट यहाँ की सरकारों का स्वभाव रहा है। इसलिए इस जांच से गुपकार गैंग के पेट में दर्द होना अस्वाभाविक नहीं है। गुपकार गैंग में नैशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्षा और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन, जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर जैसे कई नेता (जिन्हें कि गुलाम नबी आज़ाद और पी चिदम्बरम जैसे केन्द्रीय कांग्रेसी नेताओं की शह मिली हुई है) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद युसूफ तारिगामी आदि शामिल हैं। गुपकार गैंग स्वार्थप्रेरित और बेमेल गठजोड़ है। यह 5 अगस्त 2019, 31 अक्टूबर 2019 और 9 अक्टूबर 2020 जैसे कुछ दूरगामी निर्णयों से खिसियायी बिल्लियों की मिलीभगत से बना एक ऐसा गिरोह है जोकि मिलकर खम्भा नोंचने की कोशिश कर रहा है। यह गिरोहबंदी ख़ुद के अप्रासंगिक होते जाने की आशंका की भी उपज है। जम्मू-कश्मीर की जनता इस अपवित्र और अवसरवादी गठजोड़ के वास्तविक मंसूबों से अनभिज्ञ नहीं है। जिस गुपकार गैंग के सरगना आज केंद्र सरकार की विभिन्न विकासवादी और राष्ट्रीय एकीकरण वाली नीतियों से जम्मू-कश्मीर की ‘डेमोग्राफी’ के बदलने का बेसुरा राग अलाप रहे हैं, वे स्वयं जम्मू संभाग की डेमोग्राफी को बदलने के गुनाह में संलिप्त रहे हैं। सन् 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़े और सन् 2000 से पहले और बाद की मतदाता सूची इस तथ्य की तस्दीक करते हैं।

9 अक्टूबर, 2020 को दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय में जम्मू-कश्मीर के माननीय उच्च न्यायालय ने न सिर्फ रोशनी एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया, बल्कि देश के इस सबसे बड़े भूमि घोटाले और जम्मू संभाग के इस्लामीकरण की जेहादी साजिश की जांच सीबीआई को सौंप दी।  अब इस घोटाले की जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में हो रही है और सीबीआई को भी हर 8 सप्ताह बाद नियमित रूप से प्रगति रिपोर्ट उच्च न्यायालय में जमा करनी पड़ती है। जैसे-जैसे यह जांच रफ़्तार पकड़ रही है, नए-नए राज़फाश हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर को निजी जागीर समझकर अदल-बदलकर शासन करने वाले ‘शाही ख़ानदानों’ की बदहवाशी,बेचैनी और बौखलाहट बढ़ती जा रही है। जो सियासी दुश्मन होने का नाटक रचते हुए सत्तर सालों से जम्मू-कश्मीर के लोगों को बरगलाते हुए लूट और झूठ की राजनीति में आकंठ डूबे हुए थे, वे आज गुपकार घोषणा-पत्र के नाम पर नापाक गठजोड़ बना रहे हैं और जम्मू-कश्मीर की भोली-भाली जनता को एकबार फिर बेवकूफ बनाने की साजिश रचने में मशगूल हो गए हैं। आज ‘रोशनी एक्ट’ के अंधेरों से जम्मू-कश्मीर का आम नागरिक परिचित है। तमाम राजनेताओं और नौकरशाहों ने इस एक्ट की आड़ में बड़े पैमाने पर सरकारी भूमि को हड़प लिया था। अब उस जमीन का हिसाब-किताब किया जा रहा है और उसे इनके कब्जे से मुक्त कराकर आम जनता की आवश्यकताओं और हितों के अनुरूप उपयोग करने की सम्भावना बन रही है। जम्मू-कश्मीर में हाल तक जारी अंधेरगर्दी और अराजकता पर अंकुश लगने से घबराये हुए नैशनल कॉन्फ्रेस और पीडीपी जैसे चिर-प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल भी अब एक मंच पर आ रहे हैं। वस्तुतः, गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर के लुटेरों और मतलबपरस्तों का मौकापरस्त गठजोड़ मात्र है।

Mehbooba Mufti

अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए फारुख अब्दुल्ला द्वारा चीन से सहायता लेने की बात करना और महबूबा मुफ़्ती द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली तक तिरंगा न उठाने की बात कहना इस गठजोड़ और इसके आकाओं की असलियत का खुलासा करते हैं। चीन और शेख अब्दुल्ला परिवार दोनों ही पंडित जवाहर लाल नेहरू की आँखों के तारे थे। आज सारा देश इन दोनों की कारनामे और असलियत देख रहा है। उल्लेखनीय है कि रोशनी एक्ट तो गुपकार गैंग की कारस्तानियों की बानगी भर है। अभी ऐसे अनेक कच्चे चिठ्ठे खुलने बाकी हैं। रोशनी एक्ट वाली जांच में तो मात्र साढ़े तीन लाख कैनाल भूमि की लूट का ही हिसाब-किताब हो रहा है। जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि साढ़े तीन लाख कैनाल भूमि ‘लुटाने’ से कितनी कमाई हुई, उससे कितने पॉवर प्रोजेक्ट लगे और कितने गांवों का विद्युतीकरण हुआ। इसके  नीति-नियंताओं की नीयत के मद्देनज़र सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका परिणाम ढाक के तीन पात से ज्यादा कुछ न हुआ होगा। इसके अलावा सन् 2014 के आंकड़ों के अनुसार साढ़े सत्रह लाख कैनाल वन भूमि, नदी भूमि और अन्य भूमि पर धर्म विशेष के लोगों ने और रसूखदार नेता और नौकरशाहों ने अतिक्रमण कर रखा है। उस सबका हिसाब होना बाकी है। एक ऐसा ही कारनामा तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का 14 फरवरी, 2018 का वह फरमान है जिसके तहत जम्मू संभाग में सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करने वाले किसी भी घुमंतू जनजाति के (मुस्लिम) व्यक्ति पर डी सी या एस पी कार्रवाई नहीं कर सकते। यदि न्यायालय की ओर से अतिक्रमण हटाने के लिए कोई आदेश आता है, तो भी पुलिस ऐसे मामलों में प्रशासन की सहायता नहीं करेगी। गौहत्या और गौवंश की तस्करी करने वालों पर भी कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। ये सारी की सारी कारगुजारियां सांप्रदायिक तुष्टिकरण और मुस्लिम ध्रुवीकरण का नायाब उदाहरण हैं। इनका विरोध करना साम्प्रदायिकता है और आँख मूंदकर इनका समर्थन करना सेकुलर होना है। भारत में सेकुलरिज्म की दुनिया से अलग और अजब परिभाषा चलती है।

mehbooba omar

पिछला एक साल जम्मू-कश्मीर के लिए निर्णायक रहा है। अब यहां जमीनी बदलाव की आधारभूमि तैयार हो चुकी है। कई पुराने कानूनों को या तो निरस्त किया गया है या फिर उनमें  आवश्यक संशोधन किये गए हैं। ऐसा करके न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के शेष भारत के साथ एकीकरण की सभी बाधाओं और अड़चनों को समाप्त किया गया है बल्कि समृद्धि, प्रगति और विकास का मार्ग भी प्रशस्त किया गया है। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर की नयी अधिवास नीति, मीडिया नीति, भूमि स्वामित्व नीति और भाषा नीति में बदलाव करते हुए हर तरह की दूरी और अलगाव को खत्म किया जा रहा है। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिला विकास परिषद् के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बहुत जल्दी जम्मू-कश्मीर की औद्योगिक नीति भी घोषित होने वाली है। जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने ‘चलो गांव की ओर’ और ‘माइ सिटी माइ प्राइड’ जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत करके शासन-प्रशासन को जनता से जोड़ने और उसे संवेदनशील बनाने की पहल की है। ये कार्यक्रम विकास योजनाओं में जनभागीदारी पर बल देने वाले हैं। सभी हितधारकों ख़ासकर आम नागरिकों में भरोसा पैदा करके और उन्हें साथ जोड़कर ही सरकारी योजनाओं का सफल कार्यान्वयन संभव है। जम्मू-कश्मीर भू-स्वामित्व कानून में बदलाव के बाद उनके द्वारा आयोजित ‘निवेशक सम्मेलन’ का विशेष महत्व है। इस सम्मेलन में देश के 30 शीर्षस्थ उद्योगपतियों ने भागीदारी करते हुए जम्मू-कश्मीर में भारी आर्थिक निवेश के प्रति आश्वस्त किया है । यह निवेशक सम्मलेन नयी संभावनाओं का सूत्रपात करने वाला है।

Omar Abdullah and Mehbooba Mufti

नए भू-स्वामित्व कानून के सम्बन्ध में गुपकार गैंग यहां के  मूल निवासियों को भड़काने की साजिश कर रहा है और उसके आका “जम्मू-कश्मीर ऑन सेल” जैसे भ्रामक बयान दे रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि इस कानून में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की भांति सुरक्षात्मक प्रावधान किये गए हैं। कृषि भूमि को जम्मू-कश्मीर के कृषकों को ही बेचा जा सकता है। सरकार ही औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि चिह्नित करते हुए किसानों को बाजार मूल्य देकर उसका अधिग्रहण करेगी और उद्यमियों को उद्योग लगाने हेतु आवंटित करेगी। इसलिए ‘बाहरी’ लोगों द्वारा जम्मू-कश्मीर की भूमि हथियाने की आशंकाएं निर्मूल हैं। यह संशोधित कानून नयी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना द्वारा जम्मू-कश्मीर के नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर मुहैय्या कराएगा। अन्य नौकरीपेशा और कामकाजी भारतीयों के यहां बसने से भी अर्थ-व्यवस्था में गतिशीलता पैदा होगी। इस नयी नीति के लागू हो जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पूँजी निवेश की अपार संभावनाएं हैं। जिसप्रकार सन 1991 के बजट के बाद भारतीय अर्थ-व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए थे, ठीक उसीप्रकार के परिवर्तन के मुहाने पर अभी जम्मू-कश्मीर है। पूँजी-निवेश और आर्थिक-पुनर्नियोजन के लिए उसके द्वार खुल चुके हैं। यह सचमुच एक ऐतिहासिक परिघटना है। पर्यटन, सीमेंट, बिजली, औषधिक सम्पदा, ऊनी वस्त्र, चावल, केसर, फल, मेवा, शहद और दुग्ध-उत्पाद आदि से सम्बंधित यहां के उद्योग-धंधे और व्यापार आवश्यक पूंजी-निवेश और नयी श्रम-शक्ति, कौशल और प्रतिभा से कई गुना विकसित होने वाले हैं। अगर ये उद्योग-धंधे और व्यापार अपनी पूर्ण-क्षमतानुसार विकसित होते हैं तो इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अधिकाधिक अवसर मिलेंगे। एकबार फिर उनके हाथ में पत्थर और बंदूक की जगह कलम-किताब और इलेक्ट्रॉनिक गजट होंगे।

Omar and Mehbooba mufti

जम्मू-कश्मीर ज्ञान-विज्ञान और दर्शन की उर्वरा-भूमि है। यहां की जीवन-शैली और चिंतन प्राचीन काल से ही उन्नत और प्रगत रहा है। बीच में गुपकार गैंग जैसे तत्वों द्वारा भोले-भाले लोगों को बरगलाने से कुछ अशांति, अवरोध और अंतराल पैदा हो गया था। अब पठन-पाठन और चिंतन की अड़चनों और अशांति की क्रमिक समाप्ति हो रही है। इसप्रकार एक विशेष अर्थ में यह जम्मू-कश्मीर की समृद्ध ज्ञान-परम्परा के नवजागरण की बेला भी है। यहां वैष्णो देवी और अमरनाथ धाम जैसे अनेक सर्वमान्य तीर्थस्थल हैं। यहां का वातावरण प्रदुषण-मुक्त है और श्रेष्ठतम शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल है। इसलिए यहां प्राकृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य पर्यटन के विकास की अपरिमित संभावनाएं हैं। अब इन संभावनाओं का सुनियोजित विकास और सतत दोहन करने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के नौजवानों को देश की मुख्यधारा में शामिल करके और विकास-योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके ही पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को मात दी जा सकती है। शांति,सौहार्द, सद्भाव, समरसता और सहयोग किसी भी सभ्यता के पूर्णविकास की आधारभूमि हैं। कश्मीर की ज्ञान-समृद्ध सभ्यता अब प्रगति और परिवर्तन की राह पकड़ रही है। अपनी कारस्तानियों के उजागर होने से और अपनी विश्वसनीयता में आ रही लगातार गिरावट से गुपकार गैंग तिलमिला रहा है। इसलिए वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए हर हथकंडा आजमा रहा है और लोगों को बरगलाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है।

इस लेख के लेखक प्रो. रसाल सिंह (अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय) हैं। इसमें व्यक्त सारे विचार उनके निजी हैं।