कोरोना महामारी से विश्व अशांत

कोरोना महामारी से विश्व अशांत है। विश्व मानवता पर व्यथित है। दुनिया भयग्रस्त है। मृत्यु सामने है। चिकित्सा विज्ञान के सामने अभूतपूर्व चुनौती है। यहां तक की विश्व स्वास्थ्य संगठन भी संकट में है और अशांत है। 

नई दिल्ली। कोरोना महामारी से विश्व अशांत है। विश्व मानवता पर व्यथित है। दुनिया भयग्रस्त है। मृत्यु सामने है। चिकित्सा विज्ञान के सामने अभूतपूर्व चुनौती है। यहां तक की विश्व स्वास्थ्य संगठन भी संकट में है और अशांत है। इस सबके बावजूद चीन और अमेरिका आमने सामने हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी कोरोना की चिंता नहीं करते। वे भी सक्रिय हैं।अमेरिका में पुलिस ने निर्दोष अश्वेत की हत्या की। दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका में कर्फ्यू है। प्रकृति के घटक अशांत हैं। अंतरिक्ष तक अशांति का वातावरण है।

पश्चिम बंगाल में भयानक तूफान आया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दौरा किया। जिसके बाद ये घोषणा हुई कि मुंबई में भी तूफान ने धावा बोला है। टिड्डी दल ने भी हमले के लिए यही आपत्काल चुना। प्रसन्नता देने वाली खबरों का आकाल है। चित्त उद्विग्न है। दुनिया तनावग्रस्त है। कहते है कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के चलते दुनिया ग्लोबल-विलेज या विश्व ग्राम बन गई है। निस्संदेह तकनीकी ने भौगोलिक दूरी को समय के आयाम में घटाया है।

माना जाता है कि समय की बचत हो रही है। लेकिन वास्तविक अनुभूति ऐसी नहीं है। तमाम सुविधाओं के बावजूद आधुनिक मनुष्य के पास समय की कमी है। चित्त की शांति का अता पता नहीं। मानव मन बेचैन है। निद्रा घटी है। अनिद्रा के रोगी बढ़े हैं। अशांति भूमण्डलीय यथार्थ है। जो समृद्ध हैं वे समृद्धि के कारण अशांत हैं और जो अभावग्रस्त हैं, वे अभाव की व्यथा में अशांत हैं। वैदिक काल का समाज प्रकृति के प्रति आदर भाव से युक्त था। शांति सहज उपलब्ध थी। शांत चित्त में ही रसपूर्ण ज्ञानपूर्ण वैदिक साहित्य व उल्लासपूर्ण समाज का विकास हुआ था। शान्त चित्त में ही सारे सृजन संभव हैं। सृजनात्मकता के लिए चित्त की शान्ति जरूरी है। शान्ति के कारण हमारे भीतर भी है। लेकिन शान्त वातायन आनंदित करते हैं। वन उपवन अशान्त मनुष्य को भी शान्त करते हैं। वैदिक ऋषि इस तथ्य से अवगत थे। वे सम्पूर्णता में सोंचते थे। अशान्त अंतरिक्ष भी हमारी अशान्ति का कारण बन सकता है। पृथ्वी माता है। इसकी अशान्ति हम सबको अशान्त करेगी ही, करती भी है। यजुर्वेद के एक मंत्र में समूचे वातायन को शान्तिमय बनाने की स्तुति है।

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‘शान्तिमंत्र’ के नाम से लोकप्रिय यह मंत्र “द्यौशान्तिरन्तरिक्ष शान्ति, पृथ्वी शान्ति” से प्रारम्भ होता है। यहां द्युलोक, अंतरिक्ष और पृथ्वी से शान्ति की प्रार्थना है। आगे कहते हैं “आपः शान्तिरोषधयः शान्ति, वनस्पतया शान्तिर्विश्वेदेवा शान्ति, ब्रह्म शान्ति, सर्व शान्ति शान्तिरेव शान्ति सा मा शान्तिरेधि-जल शान्ति दें, औषधियां वनस्पतियां शान्ति दें, प्रकृति की शक्तियां – विश्वदेव, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शान्ति दे। सब तरफ शान्ति हो, शान्ति भी हमें शान्ति दे।” यहां शान्ति भी एक देवता हैं। पृथ्वी अशांत है। पर्यावरण का नाश है। तूफान हैं। भूमण्डलीय ताप है। पृथ्वी से लेकर आकाश तक की शांति जरूरी है। वनस्पतियां पृथ्वी का भाग हैं। उनका प्रशांत होना हम सबके लिए आनंदवर्द्धन है। अथर्ववेद  का शांतिपाठ मननीय है। इसमें सम्पूर्ण अस्तित्व से अस्तित्व के प्रत्येक घटक के लिए शांति की प्रार्थना है। कहते हैं, “पृथ्वी शान्ति। अंतरिक्ष शांति। शार्तिर्घो, शांति। आपः शांति। औषधय शान्तिर्वनस्तपयः-पृथ्वी अंतरिक्ष घुलोक, जल, औषधियां शांति पूर्ण हो।”

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