अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अब दिल्लीर से बाहर उत्तर प्रदेश में पांव पसारने की तैयारी कर रही है। अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को लग रहा है कि वह दिल्ली और पंजाब की तरह उत्तर प्रदेश में भी बड़ा चमत्कार कर देंगे, पर अरविंद केजरीवाल यह भूल रहे हैं कि उनकी अराजक और अविश्वसनीय छवि उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। अपनी बात से पलटी मार जाना और गलत आरोप लगाकर माफी मांगने की उनकी आदत से देश की जनता अब पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है। विक्रम मजीठिया, नीतीन गड़करी, अरुण जेटली और कपिल सिब्बल पर तथ्यहीन आरोप लगाकर अदालत में माफी मांगने वाले केजरीवाल की राजनीति की बंद मुट्ठी खुल चुकी है। दिल्ली जैसे छोटे राज्य की सत्ता पर तीसरी बार कब्जा जमाने के बाद केजरीवाल को महसूस हो रहा है कि उनकी पार्टी पलटीमार राजनीति के जरिये देश के सबसे बड़े राज्य पर भी काबिज हो सकती है।
केजरीवाल अति आत्मविश्वास के शिकार हैं या फिर उन्हें इसका तनिक भी भान नहीं है कि दिल्ली और पंजाब की राजनीति से इतर उत्तर प्रदेश की सियासत बहुत टेढ़ी है। यहां की सत्ता क्षेत्र, जाति और धर्म की त्रिवेणी से निकलकर कुर्सी तक पहुंचती है। यहां दिल्ली और पंजाब के समीकरण लागू नहीं होते क्योंकि इन राज्यों की जनसंख्या क्रमश: दो करोड़ और तीन करोड़ से कम है, जबकि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या इतनी है जितने में बारह दिल्ली और आठ पंजाब बन जायेंगे। याद हो तो वर्ष 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से ताल ठोंकने वाले अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि वह यहां से हारे या जीतें, लेकिन लगातार बनारस आना और यहां की जनता की सेवा करना नहीं छोड़ेंगे, लेकिन वो समय है और आज का समय है कि अरविंद केजरीवाल फिर पलटकर बनारसवासियों का हालचाल लेने नहीं आये। उन्हें शायद यह याद भी ना हो, क्योंकि वादा करके भूल जाने और पलटी मारने की केजरीवाल को आदत है।
दरअसल, यही अरविंद केजरीवाल के राजनीति करने की स्टाइल है। इस स्टाइल से उन्हें दिल्ली में शुरुआती सफलता मिल गई, क्योंकि अन्ना आंदोलन के असर ने जमीन तैयार कर डाली थी, लेकिन इसके जरिये लंबी राजनीति करना आसान नहीं है। देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस आज हाशिये पर है तो इसके पीछे भी अविश्वास की राजनीति और जनता का भरोसा तोड़ा जाना सबसे बड़ी वजह है। कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती, और केजरीवाल की सियासत तो विचारहीनता की राजनीति है। अपनी ही कही बात से पलट जाना केजरीवाल की राजनीति है। तभी उनके सहयोगी रहे आशुतोष लिखते हैं, ”दिल्ली में अरविंद केजरीवाल चमत्कार इसलिये कर सके, क्योंकि वह एक ईमानदार नेता और व्यवस्था को बदलने के लिये प्रतिबद्ध एक पार्टी के विचार को बेचने में कामयाब रहे। आध्यात्मिक समाज में उन्होंने नैतिकता को प्रतीक बना दिया, अब केजरीवाल और अन्य राजनेताओं में कोई फर्क नहीं रह गया, और आम आदमी एक बार फिर बेवकूफ बनना पसंद नहीं करेगा।” अब यह बात केवल आशुतोष नहीं बल्कि देश भर के ज्यादातर मतदाता जान चुके हैं।
केजरीवाल इतने अविश्वसनीय निकले कि आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, किरण बेदी जैसे साथी उनका साथ छोड़ गये। इस अविश्वसनीयता का ही परिणाम है कि 2014 में पंजाब की चार लोकसभा सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी 2019 में एक सीट पर सिमट गई, क्योंकि जनता ने जिस भरोसे के साथ आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया था, वह उस भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई।
अरविंद केजरीवाल जिस दिल्ली मॉडल को पेश कर उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन तलाश रहे हैं, वहां उनका मुकाबला योगी आदित्यनाथ से है, जिनकी छवि पलटीमार नहीं बल्कि कठोर फैसले लेकर उस पर अमल करने वाले मुख्यमंत्री की है। एक बेहद ईमानदार एवं मेहनती मुख्यमंत्री की है। योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले ही कार्यकाल में जिस तरह से अपराधियों के खिलाफ कठोर फैसले लेकर जनता में भरोसा पैदा किया है, उस भरोसे में सेंध लगाना अरविंद केजरीवाल जैसे पल में पलट जाने वाले नेता के लिये मुश्किल है। केजरीवाल के दिल्ली मॉडल के स्वास्थ्य विभाग ने दिल्ली के बाहर के जिन लोगों का इलाज करने से इनकार कर दिया था, और सारी व्यवस्थायें ध्वस्त हो गई थीं, उन्हीं तमाम बाहरी लोगों का इलाज योगी के उत्तर प्रदेश मॉडल के विभिन्न कोविड अस्पतालों में बिना भेदभाव के हुआ। केजरीवाल के दिल्ली मॉडल के जिस अव्यवस्था के चलते कोविड काल में प्रवासी नागरिक जान जोखिम में डालकर अपने घर जाने के लिये पैदल ही निकल पड़े, और जिन्हें दिल्ली से बसों में बैठाकर यूपी सीमा तक छोड़ दिया गया, उन्हें उत्तर प्रदेश मॉडल के जरिये योगी आदित्यनाथ ने उनके घरों तक पहुंचवाने की व्यवस्था कराई।
कोविड आपदा के समय जब दिल्ली मॉडल के रहनुमा अरविंद केजरीवाल टीवी चैनलों के अलावा कहीं नजर नहीं आ रहे थे, उस दौर में यूपी मॉडल के योगी आदित्यनाथ यूपी-दिल्ली सीमा से लगे राज्य में व्यवस्था की खामियां तलाशने के लिये जिलों में खाक छान रहे थे। जब दिल्ली मॉडल में सीएए कानून के विरोध में आम आदमी पार्टी के नेता ताहिर हुसैन के नेतृत्व में लाशें गिराई जा रहीं थी, उस वक्त यूपी मॉडल में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से वसूली किये जाने के पर्चे जारी हो रहे थे। दो करोड़ की आबादी वाला मॉडल राज्य जब दंगों से जूझ रहा था, तब चौबीस करोड़ की जनसंख्या वाला राज्य मुट्ठी भर अराजक तत्वों से नुकसान की भरपाई का कानून बना रहा था।
दिल्ली मॉडल के जरिये यूपी में पैर जमाना आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिये आसान नहीं है, क्योंकि यह भरोसा और पलटीमार सियासत की लड़ाई है। हो-हल्ला की राजनीति के जरिये आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में चर्चा में भले आ जाये, लेकिन योगी आदित्यनाथ की ईमानदार और निर्णायक नेता की छवि से मुकाबला करना उसके लिये आसान नहीं है। अरविंद केजरीवाल ने संजय सिंह को यूपी में पार्टी का चेहरा भी बना दिया है, पर बड़ा सवाल यही है कि क्या संजय सिंह की छवि एक धीर-गंभीर राजनेता की है? क्या संजय सिंह जैसा नेता उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसे हैवीवेट चेहरे के सामने टिक पायेगा? कर्मठ, ईमानदार, कठोर प्रशासक, स्पष्टवक्ता एवं हिंदुत्व के अंबेसडर योगी आदित्यनाथ के कार्यों के समक्ष क्या संजय सिंह जैसा हवाई नेता यूपी में जमीन तैयार कर पायेगा? आरोप, अराजकता एवं सुर्खियां बटोरने वाली राजनीति दिल्ली में भले चल सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में गंभीर एवं भरोसे की सियासत की दरकार हमेशा से रही है।
संजय सिंह जैसा चेहरा समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुपीमो मायावती के सामने कहीं टिकता नहीं दिखाई देता, योगी आदित्यनाथ तो बहुत दूर की कौड़ी हैं। संजय सिंह केजरीवाल की तरह आरोप लगाकर सुखिर्यां तो बटोर सकते हैं, लेकिन जनता का भरोसा जीतने के लिये विश्वसनीय छवि की जरूरत होती है, जो कम से कम आम आदमी पार्टी के किसी नेता की नहीं है। विश्वसनीयता के ब्रांड अंबेसडर योगी आदित्यनाथ से पलटीमार राजनीति के सिरमौर अरविंद केजरीवाल उन संजय सिंह के भरोसे लड़ाई लड़ रहे हैं, जिन्हें सुल्तानपुर में सिनेमा देखने के शौकीन कुछ लोग अर्से से जानते हैं। पर यह भी सच है कि यूपी की सियासी लड़ाई किसी फिल्मी थियेटर से होकर नहीं बल्कि विश्वास की जमीन से होकर गुजरती है, जिस पर इस वक्त योगी और भाजपा काबिज है।
इस लेख को वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार ने लिखा है। इसमें व्यक्त सारे विचार उनके निजी हैं…