newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Birthday Special: पाकिस्तान से आया एक कार मैकेनिक पूरी दुनिया में हो गया ‘गुलजार’, हमेशा रहा पढ़ाई छोड़ने का मलाल

Birthday Special: अपनी लाजवाब शायरियों की बदौलत पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले गुलजार की लिखावट को लोगों ने अपने दिल की आवाज बना लिया। गुलजार ने अपनी संजीदगी से मशहूर शायर ‘मिर्जा ग़ालिब’ को पर्दे पर जिंदा रखा।

नई दिल्ली। ‘चेसिस की तारीख पूछ लो, कब की मैन्युफैक्चर है वो वरना अक्सर ठग लेते हैं गाड़ियां बेचने वाले! मेरी चेसिस की तारीख 18 अगस्त 1934 है।’ साल 1934 में भारत के गुलजार यानि की संपूर्ण सिंह का जन्म हुआ था। आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया उनको गुलजार के नाम से जानती है। इस भागती दुनिया में गुलजार की लिखाई में जो दर्द है, अकेलापन है, उसे पढने या सुनने के बाद हर किसी के मन में एक बार को लेकिन टीस जरुर उठती है। ‘कोई तो होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों।’

‘मुसाफिर हूं यारों न घर है न ठिकाना’

अपनी लाजवाब शायरियों की बदौलत पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले गुलजार की लिखावट को लोगों ने अपने दिल की आवाज बना लिया। गुलजार ने अपनी संजीदगी से मशहूर शायर ‘मिर्जा ग़ालिब’ को पर्दे पर जिंदा रखा।

कार मैकेनिक का स्ट्रगल

शुरूआती दिनों में गुलजार एक्सीडेंट हुई गाड़ियों को पेंट करने का काम करते थे। उस वक्त उन्हें काम की जरुरत थी। काम के बीच में से फुर्सत के कुछ पल चुराकर या तो वो कोई किताब पढ़ लेते या फिर कुछ लिख लेते। गुलजार हमेशा से एक लेखक बनना चाहते थे। गुलजार कहते हैं कि ‘मैं कविताए लिखना चाहता था कभी-कभी नज्म भी लिख लेता। फिल्मों में मेरे बहुत से दोस्त थे बस उसी ग्रुप ने मुझे गीत लिखने के लिए प्रेरित किया। साहित्य हमेशा से मेरी रुह का हिस्सा रहा है।’ गुलजार साहब बिना अपनी पढ़ाई पूरी किये बंटवारे के बाद भारत आ गए। गुलजार ने हमेशा कहा है कि, ‘मेरे अंदर आज भी एक कॉम्पलैक्स है कि मैं कॉलेज ज्वाइन करने के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया।’