Book Review: महाशक्ति की अपनी छवि से जूझता अमेरिका
पिछले साल नवंबर में अमेरिका (America) में राष्ट्रपति पद का चुनाव (Presidential election) संपन्न हुआ जिसमें डोनाल्ड ट्रंप को हराकर जो बाइडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने। बीते 20 जनवरी को बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और अब अमेरिका एक नए दौर की राजनीति में प्रवेश कर चुका है।
नई दिल्ली। पिछले साल नवंबर में अमेरिका (America) में राष्ट्रपति पद का चुनाव (Presidential election) संपन्न हुआ जिसमें डोनाल्ड ट्रंप को हराकर जो बाइडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने। बीते 20 जनवरी को बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और अब अमेरिका एक नए दौर की राजनीति में प्रवेश कर चुका है। लेकिन इस दौर से पहले के दौर की पड़ताल जरूरी थी और यह काम वरिष्ठ पत्रकार अविनाश कल्ला ने अमेरिकी चुनाव के दौरान अमेरिका में घूम-घूमकर किया।
दुनिया के सबसे विकसित देश में चुनाव हो तो हर किसी के मन में उसको लेकर उत्सुकता होगी ही कि आखिर वहां चुनाव कैसे होता होगा। इस ‘कैसे’ के बाद भी ढेरों सवाल होंगे जो आप के जेहन में उठ रहे होंगे। पत्रकार अविनाश कल्ला के मन में भी ये सवाल उठे कि जब दुनियाभर में महामारी फैली हुई है तो बससे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव क्या कहानी बयान कर रहा होगा। यही देखने-समझने के लिए अविनाश 42 दिन के अमेरिकी दौरे पर निकल गए और वहां के स्थानीय लोगों से बात करके सिर्फ यही नहीं जाना कि अमेरिकी चुनाव कैसे होता है, बल्कि हर उस चीज की पड़ताल भी की जो हम सबसे अछूता ही रहता है। अविनाश कल्ला की इस 42 दिनों की चुनावी यात्रा डायरी को राजकमल प्रकाशन के उपक्रम सार्थक ने ‘अमेरिका 2020 : एक बंटा हुआ देश’ नाम से किताब के रूप में प्रकाशित किया है।
अमेरिका की महाशक्तिशाली छवि पर ‘दूर के ढोल सुहावन’ वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। वहां भी गरीबी की अच्छी-खासी संख्या है, ईएमआई चुकाने वालों का लंबा जाल है, नौकरी खोने का डर है, काले-गोरे का झगड़ा है, और यह सच कि विभिन्न मुद्दों को लेकर इस वक्त अमेरिका जितना विभाजित है उतना पहले कभी नहीं रहा। वहां भी ज्यादातर किसान, छात्र, पेंशनर आदि लोग अपनी-अपनी आर्थिक समस्याओं के साथ मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। समस्याएं और भी हैं, लेकिन बहरहाल यह चुनावी डायरी है तो बात चुनाव की।
जिस अमेरिका का भारत में आए दिन हवाला दिया जाता है, वहां चुनाव हमारे यहां की तरह नहीं होते। वहां चुनाव केवल राजनीतिक नहीं होते बल्कि चुनावों में अमेरिकी लोग अपनी संस्कृति को भी दर्शाते हैं। दो सदी से भी ज्यादा वक्त से वहां चुनाव होते आ रहे हैं, लेकिन आज भी वहां की प्रक्रिया सामान्य लगती है। मसलन, लोगों से मिलकर अपनी बात रखना, नेताओं से जवाबदेही मांगना, नेताओं का आमने-सामने बहस करना आदि। जबकि यहां तो एक आदमी नेता बनते ही गाड़ियों के काफिले में सवार होकर अपनी जनता से दिन दूर निकल जाता है। यहां के नेताओं को अपने चुनावी वादों को जुमला कहते देर नहीं लगती, आमने-सामने बहस की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है। भारत में नेताओं को देवता मान लिया जाता है तो वहीं अमेरिका में उन्हें एक सामान्य नागरिक की तरह ही देखा जाता है। सबसे खास बात तो यह कि एक अमेरिकी नागरिक के लिए उसका राष्ट्रपति उतना मायने और काम का नहीं लगता जितना कि उसके राज्य का गवर्नर। राष्ट्रपति पद पर चुनाव लड़ने की दावेदारी जीतने के बाद प्रतिद्वंद्वियों के बीच जो बहस होती है, उसे एक निष्पक्ष संस्था संचालित करती है। गौरतलब है कि प्रतिद्वंद्वियों को सवाल बहस के दौरान ही दिए जाते हैं। यानी सवाल जनता के और जवाब नेताओं के। जबकि भारत में नेताओं के पास पहले सवाल भेज दिया जाता है, तब कहीं उनका कोई इंटरव्यू होता है, यानी सवाल और जवाब दोनों नेता के।
अमेरिका में चुनावी यात्रा के दौरान अविनाश ने यह शिद्दत से महसूस किया कि वहां चुनाव में पैसे के बजाय अमेरिका ने अपने उन मूल्यों और उसूलों का चुनाव किया, जिनकी बदौलत दुनिया का बड़ा लोकतंत्र होने की उसकी खास पहचान है। जाहिर है, हमारा मीडिया जो कुछ भी अमेरिका के बारे में दिखाता है, वह सब सच नहीं होता, बल्कि अमेरिका की जमीनी सच्चाई कुछ और ही है।
कुल मिलाकर अमेरिकी लोकतंत्र का आंखों देखा हाल बताने वाली यह किताब उसकी चुनावी प्रक्रिया के साथ ही अमेरिकी समाज और उसके नागरिकों की कथा-व्यथा को बखूबी दर्शाती है, जिसको आधार बनाकर ही लेखक ने शीर्षक में अमेरिका को एक बँटे हुए देश की संज्ञा दी है। लोकतंत्र के प्रति जरा-सी भी उदासी किसी देश के नागरिकों को अलग-अलग खांचों-खानों में बांट सकती है, क्योंकि लोकतंत्र महज एक हार-जीत की व्यवस्था नहीं है जो चुनाव से तय होती है, बल्कि वह तो मानवीय उसूलों को जिंदा रखने वाला एक सतत प्रयास है। यह किताब इस बात को बड़ी गहराई से रेखांकित करती है कि आज अमेरिका अगर इसी लोकतंत्र के लिए कई संकटों और समस्याओं से जूझ रहा है तो आखिर क्यों!
किताब – अमेरिका 2020 : एक बंटा हुआ देश
लेखक – अविनाश कल्ला
प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन समूह
कीमत – 250 रुपए (पेपरबैक)
वसीम अकरम