राजस्थान में पार्टी छोड़ने वाले 6 विधायकों को व्हिप जारी करना मायावती को पड़ा उल्टा
वहीं ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती कहते हैं कि राजस्थान के सियासी घटनाक्रम में बसपा का स्टैंड तकनीकी रूप से सही हो सकता है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूप से इसका संदेश सही नहीं गया है।
नई दिल्ली। राजस्थान के सियासी ड्रामे के बीच मायावती ने एंट्री तो ले ली लेकिन उनका कदम उन्ही के लिए उल्टा पड़ गया। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने राजस्थान में उनकी पार्टी छोड़ चुके 6 विधायकों को एक व्हिप जारी करते हुए कांग्रेस के खिलाफ वोट करने की बात कही थी, लेकिन यह दांव मायावती के लिए ही उल्टा पड़ गया है।
राजस्थान में बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय को चुनौती देने वाली याचिका हाई कोर्ट से खारिज हो गई है। ऐसे में सियासी तौर पर बसपा को राजस्थान के संग्राम में कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने का किसी तरह का कोई राजनीतिक फायदा तो नहीं मिला बल्कि बीजेपी के सहायक होने का आरोप जरूर लगने लगा है। कांग्रेस नेताओं ने मायावती को बीजेपी की बी टीम तक बता डाला. इस तरह से बसपा को न माया मिली और न राम।
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि राजस्थान में विधानसभा सत्र चल ही नहीं रहा है तो बसपा के व्हिप का कोई मतलब नहीं रह जाता है। बसपा के राष्ट्रीय पार्टी होने का संबंध राजस्थान के विधानमंडल की संख्या से नहीं है। ऐसे में बसपा का यह बयान सिर्फ बीजेपी को राजनीतिक संदेश देने के लिए दिया गया है कि राजस्थान की लड़ाई में हम आपके साथ खड़े हैं। मायावती की अपनी कुछ राजनीतिक मजबूरियां हैं, जिसकी वजह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वो कहीं न कहीं अपने आपको कांग्रेस के खिलाफ और बीजेपी के साथ खड़ी दिखाना चाहती हैं। इससे बसपा को राजनीतिक तौर पर कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हो रहा है।
इसके अलावा भाजपा को समर्थन करने को लेकर दलित चिंतक और जेएनयू में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर हरीश वानखेड़े कहते हैं मायावती को लेकर एक आम धारणा है कि सरकार के पास उनके कुछ पुराने ऐसे मामले हैं, जिनके सामने आने से वो जेल जा सकती हैं। इसी वजह से मायावती बीजेपी के खिलाफ न तो कोई बयान देती हैं और न ही कोई राजनीतिक कदम उठाती हैं बल्कि विपक्ष को कमजोर करने की दिशा में काम करती दिखती हैं। दलित समाज के बीच भी यह चिंता का सबब बना हुआ है कि कभी आक्रामक राजनीति करने वालीं मायावती आज इतनी असहाय और डरी हुई क्यों दिख रही हैं।
वह कहते हैं कि मायावती के चलते ही बसपा का लगातार राजनीतिक ग्राफ गिरता जा रहा है। एक दौर में 28 फीसदी से ज्यादा वोट हो गया था, लेकिन आज 19 फीसदी के करीब आ गया है। इसके बावजूद मायावती न तो दलित मुद्दों पर सक्रिय हो रही हैं और न ही जमीन पर उतर कर संघर्ष कर रही है। ऐसे ही मायावती का रवैया रहा तो बसपा का भी हश्र आरपीआई की तरह हो जाएगा, क्योंकि जिस उद्देश्य और विचार के लिए पार्टी बनी है उन्हीं मुद्दों को तवज्जो नहीं दे रही है तो फिर क्या मतलब रह जाता है।
वहीं ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती कहते हैं कि राजस्थान के सियासी घटनाक्रम में बसपा का स्टैंड तकनीकी रूप से सही हो सकता है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूप से इसका संदेश सही नहीं गया है।