Congress’s Emergency: आपातकाल की याद दिलाकर बीजेपी ने लगाई कांग्रेस की  क्लास , कहा – इन्हें नहीं है लोकतंत्र पर ज्ञान देने का नैतिक हक

Congress’s Emergency: आपातकाल की घोषणा के उपरांत सभी शक्तियां इंदिरा गांधी तक ही सीमित रह गई थीं। सरकार में कोई भी मंत्री उनकी इजाजत के बिना टस से मस नहीं होती थी। हालात इस कदर गंभीर हो गए थे कि लोकतंत्र तानाशाही में तब्दील हो चुकी थी। आपातकाल के दौरान विपक्ष की आवाज को पूर्णत: कुचल दिया गया था।

सचिन कुमार Written by: June 25, 2022 8:39 pm
indra gandhi

नई  दिल्ली।  25 जून 1975….ये तारीख हर वर्ष आती है, और फिर चली जाती है, लेकिन कुछ याद दिला जाती है, जो हमारा दिल दहला जाती है, ये यादें रूह कंपा जाती है। आज 25 जून है, तो बीजेपी समेत विभिन्न दल इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाकर कांग्रेस पर जमकर जुबानी प्रहार कर रहे हैं और जहां तक हमारा मानना है कि एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए यह प्रहार अपिहार्य भी है, ताकि कालांतर में जो त्रुटियां देश के सबसे पुरानी दल ने करके अपने दामन पर जो दाग लगाया है, उसे भविष्य में कोई दूसरा दल लगाने की जुर्रत न कर सकें। जिस तरह से देश के सबसे पुराने दल ने जम्हूरियत का जनाजा निकालकर कुशासन का नमूना दिखाया था, वैसा कोई भविष्य में कोई दूसरा दल करने की जहमत न उठा सकें। जिस तरह कालांतर में कांग्रेस ने आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात किया था, वैसा कोई कभी दूसरा दल न कर सकें। बहरहाल, कांग्रेस को अपने किए की सजा सत्ता से महरूम होकर मिल ही रही है, लेकिन आइए आज जब एक बार फिर 25 जून की तारीख आई है, तो इस रिपोर्ट में हम उन पीड़ादायी क्षणों का उल्लेख करके खुद को देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दंभ भरने वाली कांग्रेस को उसकी तानाशाही का नमूना दिखाते हैं, जो कि हर मसले पर मौजूदा सरकार  को जम्हूरियत की तकरीरें देने से गुरेज नहीं किया करती हैं ।

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तो इस संदर्भ में कुछ भी अतिरिक्त जानने से पहले आप यह जान लीजिए कि आखिर 25 जून को ऐसा क्या हो गया था कि उसे देश के विपक्षी दल काला दिन मानते हैं। दरअसल, उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को निर्देशित किया था कि वे देश में आपातकाल की घोषणा करें। बता दें कि इंदिरा ने ऐसा अपनी कुर्सी बचाने के लिए किया था। आपातकाल की घोषणा के उपरांत सभी शक्तियां इंदिरा गांधी तक ही सीमित रह गई थीं। सरकार में कोई भी मंत्री उनकी इजाजत के बिना टस से मस नहीं होती थी। हालात इस कदर गंभीर हो गए थे कि लोकतंत्र तानाशाही में तब्दील हो चुकी थी। आपातकाल के दौरान विपक्ष की आवाज को पूर्णत: कुचल दिया गया था। आपातकाल के दौर में राजनेताओं को इंदिरा की मुखालफत करने की कीमत सलाखों के पीछे जाकर चुकानी पड़ती थी। उन दिनों न जाने कितने ही इंदिरा विरोधियों को सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। हालात इस कदर संजीदा हो चुके थे कि भारत को लोकतंत्र कहना भी उचित मालूम नहीं पड़ रहा था। उन दिनों के पत्रकार 25 जून को काला दिन कहते हैं। उधर, संजय गांधी के आदेश के बाद सभी पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी की जाने लगी थी। यहां तक की पत्रकारों को भी इंदिरा विरोध में लिखने की इजाजत नहीं थी। उन दिनों संपादकीय पृष्ठ भी खाली ही रहते थे।  संविधान की तो सरेआम धज्जियां उड़ाई जाने लगी थीं।  देश में आपातकाल 21 माह तक रहा था। खैर, देश में आपातकाल तो खत्म हो गया। लेकिन, ऐसा करके पार्टी ने अपने ऊपर अमिट दाग लगवा लिया है, जिसका खामियाजा उसे आज तक अपने विरोधियों के प्रहार के रूप में भुगतना पड़ता है।

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बता दें कि आज इसी कड़ी में बीजेपी आपातकाल के दिनों को याद करते हुए काला दिवस के रूप में मना रही है। उन दिनों के जुल्म और अत्याचार को याद किया  जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री गुलाबो देवी ने कहा कि उन दिनों में कांग्रेस ने  देश की जनता पर जो अत्याचार किए थे, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है।  लेकिन, आज  की तारीख में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आज की तारीख में सभी को अपने हित को लेकर अपनी आवाज उठाने की पूरी आजादी है। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं है। उधर, सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि उन दिनों में आपातकाल के नाम पर जिस तरह कांग्रेस  ने आम जनता पर अत्याचार किया था, उसे देश कभी नहीं भूल सकता है। लेकिन, आज ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। समाज के हर वर्ग को अपनी आवाज उठाने की पूरी आजादी है। तो इस तरह से मुख्तलिफ दलों ने कांग्रेस को आपातकाल की याद दिलाई है। अब ऐसे में  आपका बतौर पाठक इस पूरे मसले को लेकर क्या कुछ कहना है। आप हमें कमेंट कर बताना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।