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सर्वे में हुआ खुलासा- 72 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि मोदी राज में बढ़ी महंगाई

सर्वे के अनुसार, इन कारकों की वजह से केंद्र सरकार के आर्थिक प्रदर्शन से लगभग 47 प्रतिशत लोगों ने नाखुशी जाहिर की। आर्थिक मोर्चे पर केंद्र सरकार के प्रदर्शन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में 46.4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि यह उम्मीद से भी बदतर रहा।

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में रोजमर्रा की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण आम जनता में बेचैनी बढ़ रही है। केंद्रीय बजट से पहले किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। आईएएनएस-सीवीओटर सर्वेक्षण में लगभग तीन-चौथाई उत्तरदाताओं ने कहा कि मुद्रास्फीति (महंगाई) बढ़ गई है और लगभग 40 प्रतिशत ने कहा कि बढ़ती महंगाई का उनके जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

Modi Cabinet
मोदी की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सब्जियों की कीमतों में तेज वृद्धि के बाद से पहले से ही निशाने पर बना हुआ है। खासकर प्याज की बढ़ी कीमतों ने देश भर के घरों का गणित खराब कर दिया है। दिसंबर माह में खुदरा महंगाई दर 7.35 फीसदी रहा, जो पांच साल में सबसे अधिक था। यह जुलाई 2016 के बाद पहली बार है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति सरकार द्वारा आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के लिए निर्धारित 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत मुद्रास्फीति बैंड सेट से अधिक हो गई।

अपेक्षित मुद्रास्फीति से अधिक होने पर केंद्रीय बैंक सतर्क हो जाता है। हालांकि, आरबीआई अगली पॉलिसी बैठक में दर में वृद्धि नहीं भी कर सकता है, लेकिन दर में कटौती जो आदर्श रूप से लगातार धीमी होती अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि में आनी चाहिए, वह भी अब संभव नहीं लगती है। इसके अलावा थोक मुद्रास्फीति में डब्ल्यूपीआई के आंकड़ों में भी तेजी देखी गई। नवंबर में जहां ये 0.58 प्रतिशत थी, वहीं यह उछलकर दिसंबर में 2.59 प्रतिशत हो गई। कांग्रेस ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की इस हालत के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है।

GDP

66 फीसदी भारतीयों के लिए दैनिक खर्चो का प्रबंधन कठिन

आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण के अनुसार, कुल 65.8 फीसदी उत्तरदाता मानते हैं कि वे हाल के दिनों में अपने दैनिक खर्चो के प्रबंधन में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में आर्थिक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं। क्योंकि वेतन में वृद्धि नहीं हो रही, जबकि खाद्य पदार्थो सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं। गौरतलब है कि पिछले साल जारी हुई बेरोजगारी दर 45 सालों की ऊंचाई पर है।

दिलचस्प बात यह है कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पर भी लगभग 65.9 फीसदी लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चो का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। हालांकि 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। साल 2015 में लगभग 46.1 फीसदी लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चो का प्रबंध करने के लिए दबाव महसूस कर रहे हैं।

सर्वे में शामिल 4,292 लोगों में से 43.7 फीसदी लोगों ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि उनकी आय एक समान रही और व्यय बढ़ गया, जबकि अन्य 28.7 फीसदी लोगों ने यहां तक कहा कि उनके व्यय तो बढ़े ही हैं, मगर साथ ही उनकी आय में भी गिरावट आई है।

मंदी ने आर्थिक प्रबंधन को लेकर सरकार की छवि को पहुंचाया नुकसान

सर्वे के अनुसार, इन कारकों की वजह से केंद्र सरकार के आर्थिक प्रदर्शन से लगभग 47 प्रतिशत लोगों ने नाखुशी जाहिर की। आर्थिक मोर्चे पर केंद्र सरकार के प्रदर्शन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में 46.4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि यह उम्मीद से भी बदतर रहा। दस साल के सर्वेक्षण से पता चला कि 2019 में उन सर्वेक्षणों में से 39.6 प्रतिशत लोगों ने इस विकल्प को चुना था। जबकि 2015 में जब सरकार ने अपना पहला पूर्ण बजट पेश किया, तो यह संख्या 29.5 प्रतिशत थी।

भारतीय अर्थव्यवस्था को गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी), कृषि संकट, स्थिर मजदूरी और तरलता की कमी के कारण कम उपभोक्ता मांग का सामना करना पड़ा है। मंदी के रूप में संदर्भित इस प्रवृत्ति ने देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को नीचे गिरा दिया है, इसके अलावा नौकरियां भी छिनी हैं। ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कैपिटल गुड्स जैसे सेक्टर पहले ही मंदी के चलते भारी दबाव में आ गए हैं।

राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2019-20 में वास्तविक जीडीपी में 5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। वहीं वर्ष 2018-19 में यह 6.8 प्रतिशत था। ये आंकड़े उद्योग के प्रमुख क्षेत्रों में मंदी के बाद विकास दर में भारी गिरावट दिखाते हैं और अब सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में 11 साल की गिरावट दर्शाते हैं। दूसरी छमाही में विकास दर घटकर 4.5 प्रतिशत हो गई थी। महंगाई (मुद्रास्फीति) के संदर्भ में, खाद्य पदार्थो की अधिक कीमतों और अन्य कारणों पर आधारित भारत की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर सात महीने के उच्च स्तर 2.59 पर पहुंच गई। वहीं नवंबर में यह 0.58 प्रतिशत थी।

GDP India

48 फीसदी आम लोगों के जीवन स्तर में बीते एक साल में आई ‘गिरावट’

सी वोटर ट्रैकर सर्वे सभी वर्गो के 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के सीएटीआई साक्षात्कार पर आधारित है। ट्रैकिंग पोल का सैंपल साइज 4,292 है और ट्रैकिंग पोल फील्ड का काम जनवरी 2020 के तीसरे व चौथे हफ्ते में किया गया।

कुल उत्तरदाताओं में से 28.8 फीसदी ने जवाब दिया कि आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में एक साल में ‘सुधार’ आया है, जबकि 21.3 फीसदी ने कहा कि यह ‘एक जैसी ही बनी रही’ और 1.4 फीसदी ने कहा कि वे ‘नहीं जानते/ कह नहीं सकते।’

जब सीवोटर ट्रैकर सर्वे 2019 से तुलना की गई तो 41.7 फीसदी लोगों ने कहा था कि आम आदमी की समग्र जीवन गुणवत्ता में बीते एक साल में ‘सुधार’ हुआ है, 32 फीसदी ने कहा कि इसमें ‘गिरावट’ आई, 25.2 फीसदी ने कहा कि यह ‘एक जैसी रही’ जबकि 1.1 फीसदी ने कहा कि वे ‘नहीं जानते/कह नहीं सकते।’

इसी तरह के एक आंकड़े की तुलना सीवोटर ट्रैकर ने 2015 से की तो खुलासा हुआ कि कुल 39.3 फीसदी लोगों ने कहा कि एक साल में आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में ‘सुधार’ हुआ है। 33.9 फीसदी ने कहा कि यह ‘एक जैसा रहा’, जबकि 24.6 फीसदी ने कहा कि ‘गिरावट’ आई है और 2.2 फीसदी ने कहा कि वे ‘नहीं जानते/कह नहीं सकते।’

Income Tax
कई विकल्पों में केंद्र आयकर स्लैब बढ़ाने पर विचार कर सकता है। यह मुद्दा आम आदमी को प्रभावित करता है। केंद्र कर बचत के विकल्प के तौर पर ‘इंफ्रास्ट्रक्चर बांड’ ला सकता है। इन पर ध्यान देकर वह कम खपत के मुद्दे पर विशेष ध्यान दे सकता है। केंद्रीय बजट 2020 एक फरवरी को पेश होगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट 2020 संसद में सुबह 11 बजे एक फरवरी को पेश करेंगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बजट में सुस्त होगी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने व खपत को बढ़ाने पर जोर होगा। गौरतलब है कि इस वर्ष का बजट शनिवार को आएगा। स्टाक एक्सचेंज व संसद जो आम तौर पर व्यवसाय व सप्ताहांत पर बंद रहते हैं, वे एक फरवरी (शनिवार) को बजट पेश होने की वजह से खुले रहेंगे।