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India-China border dispute: चीन की हेकड़ी टूटी, जहां नही हुआ समझौता, वहां भी पीछे हटना शुरू

LAC: खास बात यह है कि भारत(India) देपसांग पर भी नजर बनाए हुए है। साल 2013 से ही इस इलाके में विवाद जारी है। समझौते के मुताबिक बाद के चरणों में इस पर भी बात होनी है।

नई दिल्ली। भारत की कूटनीति ने चीन को उसकी जमीन दिखा दी है। लद्धाख में लंबे समय तक अड़े रहने के बाद अब चीन ने वापिस लौटना शुरू कर दिया है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक पैंगोंग त्सो लेक में चीन की सेनाएं वापिस लौट रही हैं। बंकर गिराए जा रहे हैं। टेंट उखाड़े जा रहे हैं। चीन के हौसले इस कदर पस्त हो चुके हैं कि वह लद्दाख के साथ ही सिक्किम के नाकुला में भी पीछे हट रहा है। मई 2020 से ही चीन पूर्वी लद्दाख में घुस आया था। तभी से वह अड़ा हुआ था। मगर भारत की रक्षा नीति और कूटनीति ने उसे बुरी तरह मात दी है। पैंगोंग त्सो से जो तस्वीरें आ रही हैं, वे बताती हैं कि भारत ने इस समझौते में क्या हासिल किया है। पैंगोग के नार्थ में चीन की सेना पीछे हटती हुई साफ दिखाई दे रही है। चीन ने फिंगर 8 से पूर्व में श्रीजप प्लेन की तरफ कदम बढ़ाए हैं। वहीं पैंगोंग त्सो के दक्षिण हिस्से में भी हरकत हुई है। उसने यहां करीब 220 चीनी लाइट टैंक पीछे हटाए हैं।

LAC China indian army

पैंगोंग के दक्षिणी इलाके में भारत ने चीन को चौंका दिया था। 29-30 अगस्त की झड़प में भारत ने यहां की सारी फायदेमंद चोटियों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। हमारी सेना ने 29-30 अगस्त के बीच की रात रणनीतिक महत्व की सामरिक कार्रवाई की और चुशूल ‘बाउल’ के सामने कैलाश पहाड़ों पर अपनी शक्ति का ध्वज फहरा दिया।

सेना ने कैलाश के पहाड़ों में पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे परसामरिक महत्व की सभी चोटियों पर अपनी पकड़ बना ली है जिनमें हेलमेट, ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, मागर हिल, रेज़ांग ला, और रेचिना ला चोटियां शामिल हैं। ये सारी एलएसी के अंदर भारतीय इलाके में हैं, जहां 1962 की भारत-चीन लड़ाई में जोरदार जंग हुई थी।चीन के लिए ये होश फाख्ता कर देने वाला वाकया था। इसकी वजह यह था कि तिब्बत-झिंजियांग हाइवे (जी-219) भारतीय सेना की स्ट्राइक रेंज में आ चुका था। यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि कैलाश रेंज में पैंगोंग सो से रेचिन ला तक की चोटियों पर जिसका कब्जा होगा वह पूरब से पश्चिम के सभी मार्गों पर हावी रहेगा।

चीन के लिए यह सब बेहद अप्रत्याशित था। चीन ने 1962 से ही लद्दाख की 38 हजार स्क्वायर किमी. जमीन पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर रखा है. यही नहीं पीओके की भी करीब 5180 स्क्वायर किमी. जमीन पर चीन का कब्जा है। मोदी सरकार की कूटनीति से पहली बार चीन ने इतनी बुरी तरह मुंह की खाई है। भारत ने न सिर्फ बेहद ही प्रतिकूल स्थितियों में कैलाश की चोटियों पर अपने सैनिक तैनात किए बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी चीन को अलग-थलग कर दिया।

खास बात यह है कि भारत देपसांग पर भी नजर बनाए हुए है। साल 2013 से ही इस इलाके में विवाद जारी है। समझौते के मुताबिक बाद के चरणों में इस पर भी बात होनी है। यही नहीं हॉट स्प्रिंग, घोघरा जैसे विवादित स्थान को लेकर भी आने वाले दिनों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच बातचीत हो सकती है। भारत एलएसी के तीनो सेक्टरों पर दबाव बनाए हुए है। एलएसी का पहला सेक्‍टर अरुणाचल प्रदेश से लेक‍र सिक्‍कम तक है। दूसरा सेक्‍टर हिमाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड से सटा हुआ है जबकि तीसरा सेक्‍टर लद्दाख है।

LAC Laddakh PLA Indian Army

 

इस बीच कुछ ऐसा हुआ है जिसने अंतराष्ट्रीय स्तर पर चीन को धक्का पहुंचाया है। रूस की समाचार एजेंसी तास ने गलवान घाटी झड़प में 45 चीनी सैनिकों के मारे जाने का दावा किया है। इससे चीन की स्थिति बेहद असहज हो उठी है। घरेलू और अंतराष्ट्रीय दोनो ही मोर्चों पर उसकी किरकिरी हुई है। चीन को अब भारत की सहनशक्ति की सीमा रेखा का अच्छे से अंदाजा हो चुका है। ये मोदी सरकार की ऐतिहासिक कूटनीतिक सफलता है।