नई दिल्ली। पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राहुल गांधी और कांग्रेस को दोहरा झटका दिया है। लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ जो भी मुद्दे उठाए और खटाखट योजना पर जोर दिया, उसे हरियाणा और महाराष्ट्र की जनता ने ठुकरा दिया है। ऐसे में अब राहुल गांधी और कांग्रेस आलाकमान को फिर मंथन करना होगा कि अगले साल होने वाले दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए वो अपनी इस फेल हुई रणनीति में क्या बदलाव करे।
राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी पर ही फोकस रखा था। संविधान को खतरा, अडानी और अंबानी का नाम लेकर पीएम मोदी को राहुल गांधी लगातार घेरते रहे हैं। लोकसभा चुनाव में तो राहुल गांधी और कांग्रेस की ये तरकीब काम आ गई और उन्होंने 99 सीट हासिल कर लीं, लेकिन इसके बाद हुए हरियाणा और अब महाराष्ट्र में उनके मोदी विरोधी नैरेटिव और सरकार बनने पर रकम और मुफ्त की योजनाएं बांटने के वादों को जनता ने सिरे से ठुकरा दिया। नतीजे में हरियाणा में राहुल गांधी की कांग्रेस को 37 विधानसभा सीट पर ही जीत हासिल हुई थी। वहीं, महाराष्ट्र में 100 से ज्यादा विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस इस खबर के लिखे जाने तक 21 सीटों पर ही आगे थी। जबकि, बीजेपी ने मोदी के नेतृत्व में महाराष्ट्र में पिछली बार के 105 सीट की जगह 126 सीटों पर बढ़त बनाई हुई थी।
कांग्रेस के लिए बस इतनी ही राहत की बात है कि झारखंड में एक बार फिर जेएमएम के साथ उसकी सत्ता में वापसी होगी, लेकिन 30 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी 2019 के मुकाबले उसका प्रदर्शन बेहतर नहीं बन सका है। यानी यहां भी राहुल गांधी के उठाए मुद्दे लोगों को कांग्रेस की तरफ नहीं खींच सके। ऐसे में निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए सोच विचार करने का वक्त है कि क्यों उसके मुद्दे जनता को नहीं लुभा पा रहे और आखिर पीएम मोदी के खिलाफ उठाए मुद्दों पर उसे सफलता नहीं मिल रही। जबकि, कांग्रेस के सारे नेता 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देख चुके हैं कि राफेल विमान वाले मुद्दे को उठाने के बावजूद वे पीएम नरेंद्र मोदी की जनता के बीच बनी छवि पर कोई दाग नहीं लगा सके थे।