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Truth To Be Revealed: ज्ञानवापी मस्जिद मसले पर आज SC में सुनवाई, वाराणसी के कोर्ट से रिपोर्ट देने में वक्त मांग सकता है कमीशन

अर्जी में मसाजिद कमेटी ने सर्वे रोकने की अपील की थी। उसने इसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया था। सर्वे शुरू होते ही कमेटी के वकील ने चीफ जस्टिस एनवी रमना के सामने मामले को उठाया था, लेकिन चीफ जस्टिस ने उस वक्त तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया था।

नई दिल्ली/वाराणसी। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के मसले पर आज अहम दिन है। एक तरफ इसके सर्वे के खिलाफ मसाजिद कमेटी की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। वहीं, वाराणसी के सीनियर डिविजन जज रवि दिवाकर की अदालत में सर्वे करने वाले कमीशन को रिपोर्ट पेश करनी है। सूत्रों के मुताबिक कमीशन अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक-दो दिन का वक्त और मांग सकता है। कोर्ट ने सर्वे के बाद आज यानी 17 मई को ही रिपोर्ट देने के लिए कहा था। अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट की। वाराणसी की मसाजिद इंतजामिया कमेटी ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जो अर्जी दाखिल की थी, उसे आज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच सुनेगी।

supreme court

अर्जी में मसाजिद कमेटी ने सर्वे रोकने की अपील की थी। उसने इसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया था। सर्वे शुरू होते ही कमेटी के वकील ने चीफ जस्टिस एनवी रमना के सामने मामले को उठाया था, लेकिन चीफ जस्टिस ने उस वक्त तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया था। आज जस्टिस चंद्रचूड़ के कोर्ट में ये मामला 40वें नंबर पर सुना जाएगा। इस बी, हिंदू सेना नाम के संगठन ने मसाजिद कमेटी की अर्जी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कैविएट यानी हस्तक्षेप अर्जी भी दाखिल की है। संगठन ने कहा है कि बगैर उसके वकील को सुने हुए कोर्ट कोई आदेश जारी न करे।

gyanvapi mosque 1

हिंदू सेना ने अपनी अर्जी में स्कंद पुराण समेत कई दस्तावेजी सबूत भी कोर्ट में दिए हैं। संगठन के मुताबिक वाराणसी के प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को कई बार तोड़ा गया। उसके मुताबिक साल 1194 में मोहम्मद गोरी के सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को तोड़ा था। फिर साल 1230 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने इसे तोड़ा। फिर 1452 में जौनपुर के शासक हुसैन शाह शर्की और फिर 1595 में सिकंदर लोधी ने विश्वेश्वर मंदिर को नष्ट किया। हिंदू सेना के मुताबिक इसके बाद भी वहां मंदिर बनाया गया और साल 1669 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाया था।