newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Chhattisgarh: क्या छत्तीसगढ़ विकास और रोजगार विरोधी तत्वों मंच बन रहा है ?

Chhattisgarh: देश विदेश में हवाई जहाज जैसे सबसे प्रदूषित परिवहन के साधन में उड कर विकसित देशो से भारत जैसे विकासशील देश में पर्यावरण के नाम पर महत्वपूर्ण योजनाओ का विरोध करने वाली 11 साल की बाला लिसीप्रिया कँगुजम को अब छत्तीसगढ़ लाया गया है। उसे दो दिन के लिए सुरगुजा के करीब 5,000 परिवारों के रोजगार और राजस्थान के निगम द्वारा चलाये जा रहे शिक्षण, कौशल विकास और अन्य सशक्तिकरण के कार्यक्रमों में बढ़ा डालने का काम सौंपा गया है।

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक राज्य में सिर्फ राजस्थान सरकार की खदाने बाहरी अभियानकारिओ के निशाने पर है। सुरगुजा जिले के स्थानीय लोगो का पूरा सहयोग ना मिल पाने से राज्य की राजधानी स्थित आलोचको को अब छत्तीसगढ़ के बहार से कथित पर्यावरणवादीओ को बुला कर खदान योजना का विरोध करना पड रहा है। इसके अलावा राजस्थान के हित और सुरगुजा के स्थानीय लोगो के रोजगार के विरुद्ध सोशल मीडिया में भी भारी खर्चे से अभियान चलाया जा रहा है। विश्व के सबसे बड़े संघीय ढांचे भारत के लिए यह एक विडम्बना और भी है की एक तरफ जब राजस्थान को उसके हक़ के कोयले से वंचित किया जा रहा है तब छत्तीसगढ़ खुद ही त्योहारों के मौसम में कोयले की किल्लत के चलते बिजली संकट से जूझ रहा है।  अगर राजस्थान अपनी खदाने चला सकता तो वह केंद्र सरकार द्वारा संचालित कॉल इंडिया से काम कोयला उठाता और यह अतिरिक्त ईंधन छत्तीसगढ़ के व्यापार उद्योग को फायदेमंद होता। हसदेव बचाओ के नामसे चलने वाला अभियान ना ही राजस्थान के हित में है ना ही छत्तीसगढ़ और उसकी जनता के लिए। एक अंदाजे से राजस्थान सरकार अपनी तीन खदानों द्वारा करीब 15,000 परिवारों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार अविकसित आदिवासी जिले सुरगुजा में पैदा कर सकता है। इसके अलावा राजस्थान का निगम छत्तीसगढ़ को सेंकडो करोडो का रॉयल्टी और अन्य टैक्स भी चुकाता। जिस तरह से पर्यावरण के नाम पर देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक छत्तीसगढ़ में सिर्फ राजस्थान को निशाना बनाया जा रहा है वह दोनों राज्यों के विकास के हित में नहीं है।
Chhattisgarh News Chhattisgarh State Govt Employees To Work 5-days A Week From Now ANN | Republic Day के मौके पर छत्तीसगढ़ सरकार ने किए 15 अहम एलान, अब सरकारी कर्मचारियों को मिलेगीसंभवित निवेशकों का मानना है की अगर एक ही राजकीय दल के दो राज्य अगर परस्पर सहयोग से मुलभुत सुविधाओं की योजना ना चला पाए तो निजी पूंजी का भविष्य तो और भी डामाडोल हो सकता है। हमे याद रखना है की छत्तीसगढ़ के कोयले का महत्त्व अब सिर्फ एक या डेढ़ दशक का बचा है। जैसे ही नवीनीकरण ऊर्जा का विस्तार बढ़ेगा, भारत में कोयले की मांग सिमित रह जायेगी और छत्तीसगढ़ में नया निवेश लाकर नयी नौकरी पैदा करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे समय में जरुरी है मतलबी विकास विरोधीओ को छत्तीसगढ़ से दूर रखा जाए और बड़ी योजनाओ में निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा आकर्षित किया जाए। ऊपर से शहरी तत्व जिस तरह से आंदोलन स्थानीय आदिवासीओ रोजगार और विकास के हितों को भी ताक पर रख रहा है वह अन्यायपूर्ण है। सवाल यह है की अविवेकी आन्दोलनकारीओं ने खुद आदिवासीओ के लिए जब एक सड़क तो क्या स्ट्रीट लाइट भी नहीं लगवाया वह किस हक़ से सुरगुजा को विकास से वंचित रखना चाहते है ?

देश विदेश में हवाई जहाज जैसे सबसे प्रदूषित परिवहन के साधन में उड कर विकसित देशो से भारत जैसे विकासशील देश में पर्यावरण के नाम पर महत्वपूर्ण योजनाओ का विरोध करने वाली 11 साल की बाला लिसीप्रिया कँगुजम को अब छत्तीसगढ़ लाया गया है। उसे दो दिन के लिए सुरगुजा के करीब 5,000 परिवारों के रोजगार और राजस्थान के निगम द्वारा चलाये जा रहे शिक्षण, कौशल विकास और अन्य सशक्तिकरण के कार्यक्रमों में बढ़ा डालने का काम सौंपा गया है। हकीकत सिर्फ यही नहीं है की वह खुद कोयले से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भर है पर जो बात उसके प्रायोजक जो बात छुपाना चाह रहे है वह यह है की दिल्ली और मणिपुर की पुलिस ने उसके पिता कंगूजम कनर्जित को धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया था। रोचक बात तो यह है की वह अपनी 10-11 वर्ष की बेटी लसीप्रिया के लोकप्रिय चेहरे की आड़ लेकर राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अवैध उगाही करते हुए रेंज हाथो पकडे गए है। यह बात सामने आयी जब लसीप्रिया के पिता के सामने नेपाल के एक छात्र ने उससे फर्जी दस्तावेजों के सहारे पैसे ऐंठे और वर्ष 2020 में केस दर्ज कराया। यहाँ तक की भूकंप पीड़ितों के नाम से कई सेमीनार आयोजित कर लाखों की फंडिंग उठाने वाले लसीप्रिया के पिता के पास कोई हिसाब नहीं है। ऐसे तत्वों को आंदोलन के नाम पर भोले भाले आदिवासीओ विरुद्ध खड़ा कर देना शर्म की बात है।

सुरगुजा के विकास में रोडे डालने वालों का यह कोई पहला कारनामा नहीं है। कुछ सप्ताह पहले आन्दोलनकारीओं ने मेधा पाटकर जैसी विकास विरोधी को सुरगुजा बुलाया और घुमाया। उसने राजस्थान की खदानों का विरोध तो किया पर ना ही सुरगुजा के स्थानीय लोगो के लिए रोजगार के कोई विकल्प सुझाये और ना ही राजस्थान की जनता को बिजली की किल्लत से निपटने का कोई समाधान। तो फिर मेधा पाटकर की मुलाकात का उद्देश्य क्या सिर्फ सुर्ख़िए बटोरकर राजस्थान के आठ करोड़ विद्युत् उपभोक्ताओं को अँधेरे में रखने का था ? अगर रोजगार के अवसर पैदा कर सुरगुजा के आदिवासीओ को भी लिसीप्रिया कँगुजम या मेधा पाटकर या तो उनके रायपुर स्थित प्रायोजकों जैसा साधन संपन्न जीवन स्तर देना है तो जनता को कुटिल तत्वों से सावधान रहना होगा।