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जिस पत्रकार को लगता था आढ़ती की वजह से मंडी में बनाए जाते हैं किसान ग़ुलाम, वह कृषि बिल के खिलाफ क्यों कर रहे हैं प्रोग्राम?

रवीश कुमार (Ravish Kumar) का अप्रेल 2015 का एक आलेख उनके चैनल की वेबसाइट पर उनकी कलम से लिखी और उनकी ही अपनी रिपोर्ट जब आप देखेंगे तो आपको समझ में आ जाएगा कि दूसरे मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया कहकर संबोधित करनेवाले कुमार कैसे अपना एजेंडा सरकार के खिलाफ कैसे चला रहे हैं। रवीश की 2014 से पहले और 2014 के बाद की रिपोर्ट देखकर आपको समझ में आ जाएगा की उनको सत्ता या सरकार से नहीं, उन्हें कृषि कानून के पास होने से नहीं, उन्हें सीएए के कानून बनने से नहीं, उन्हें तीन तलाक पर कानून बनाए जाने से नहीं, उन्हें घाटी से धारा 370 और 35 ए के हटाए जाने से नहीं बल्कि परेशानी नरेंद्र मोदी और सत्ता के सिंहासन पर उनके होने से परेशानी है।

नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान जब मीडिया के सामने अपने सवाल का जवाब ढूंढ रहे होते हैं तो मीडिया का एक धड़ा है जो किसानों को ये बताकर अपनी बात रखने से रोकता है कि वह पक्ष तो गोदी मीडिया है। लेकिन जो धड़ा दूसरे को गोदी मीडिया बता रहा है वह यह नहीं बताता कि नरेंद्र मोदी का विरोध करते-करते अपने पूर्व के बयानों की वजह से वह कैसे अपने ही जाल में फंस गए हैं। मैं बात कर रहा हूं विरोध की वजह से अरपनी टीवी चैनल का स्क्रीन काला कर लेनेवाले पत्रकार रवीश कुमार की। रवीश कुमार किसान आंदोलन की शुरुआत के साथ ही अपने टीवी चैनल NDTV पर आकर लगातार किसानों को ये बताने की कोशिश करते रहते हैं कि सरकार के द्वारा जारी ये कृषि कानून किसानों को बर्बाद करने के लिए काफी है। ऐसे में किसानों को तब तक संघर्ष करना पड़ेगा जब तक सरकार इस कानून को खारिज ना कर दे।

Ravish Kumar NDTV

फोटो क्रेडिट- NDTV

लेकिन रवीश कुमार का अप्रेल 2015 का एक आलेख उनके चैनल की वेबसाइट पर उनकी कलम से लिखी और उनकी ही अपनी रिपोर्ट जब आप देखेंगे तो आपको समझ में आ जाएगा कि दूसरे मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया कहकर संबोधित करनेवाले कुमार कैसे अपना एजेंडा सरकार के खिलाफ कैसे चला रहे हैं। रवीश की 2014 से पहले और 2014 के बाद की रिपोर्ट देखकर आपको समझ में आ जाएगा की उनको सत्ता या सरकार से नहीं, उन्हें कृषि कानून के पास होने से नहीं, उन्हें सीएए के कानून बनने से नहीं, उन्हें तीन तलाक पर कानून बनाए जाने से नहीं, उन्हें घाटी से धारा 370 और 35 ए के हटाए जाने से नहीं बल्कि परेशानी नरेंद्र मोदी और सत्ता के सिंहासन पर उनके होने से परेशानी है।

2015 में रवीश के लिखे एक लेख की तरफ आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं। शायद उसे देखकर आप समझ पाएं कि दूसरे मीडिया संस्थानों द्वारा एजेंडे के तहत रिपोर्टिंग किए जाने की दुहाई देनेवाले रवीश कुमार कैसे खुद का एजेंडा चलाते हैं। 2015 में रवीश कुमार की कलम से एक रिपोर्ट एनडीटीवी की वेबसाइट पर डाली गई थी जिसका लिंक भी मैं इस खबर में संलग्न कर दूंगा। उसका शीर्षक रवीश कुमार ने लिखा था- ‘आढ़ती और बैंक के बीच फंसा हुआ है किसान, मंडी में बनाए जाते हैं ग़ुलाम’।

Ravish Kumar NDTV

फोटो क्रेडिट- NDTV

अब इस लेख के शीर्षक से आप बहुत कुछ समझ गए होंगे। इस लेख में रवीश कुमार नरेंद्र मोदी सरकार को घेरते हुए उसी बात की पैरवी कर रहे थे। जो इस समय केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए कृषि बिल में लागू किया गया है। लेकिन रवीश कुमार हैं कि किसान आंदोलन के शुरू होते ही अपने इस पूरे लेख में लिखे अपने वक्तव्य से ही पलटी मार गए।

रवीश कुमार का लेख—जिसे पढ़कर आप समझ जाएंगे की एजेंडे के तहत वह खुद कैसे पत्रकारिता करते हैं और दूसरे मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया बताकर कैसे वह लोगों को भरमाते हैं

रवीश कुमार अपने 2015 के लेख में इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि कैसे अढ़ाती और बैंक मिलकर किसानों को लूट रहे हैं। इसके साथ ही वह इस बात का भी जिक्र कर रहे हैं कि कैसे किसानों को अढ़ातियों की वजह से अपनी फसल की उचित कीमत नहीं मिलती है। बाजार समीति के नियमों की तुलना रवीश अपने लेख में अलजेबरा से करते हुए कहता हैं कि आप इसमें पास हो सकते हैं लेकिन आपको किसानों के द्वार मंडी में फसल बेचने के लिए कैसे फसल की पूरी केलकुलेशन होती है कैसे इसकी पूरी गुणवत्ता निर्धारित होती है आप समझ नहीं पाएंगे।

Farmers Protest

मंडियों की वजह से किसानों की आत्महत्या का भी रवीश कुमार ने जिक्र किया। फिर वह सीधे नरेंद्र मोदी पर आ गए और लिख डाला कि प्रधानमंत्री पर किसानों की हालत को लेकर दबाव बताने लगे और फिर एक के बाद एक उनका अटैक पीएम पर जारी रहा। फिर वह बैंक, अढ़ाती, मंडी और किसान के बीच सबकुछ समझने का दावा करते हैं लेकिन यहां भी वह तब के हिसाब से एजेंडा तय कर देते हैं। हालांकि रवीश इसी लेख में लिखते हैं कि एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। मतलब अब जब सरकार ने इन आढ़तियों को इस कानून के जरिए हटा दिया तो रवीश कुमार के पेट में दर्द क्यों शुरू हुआ। इसके बाद रवीश जी हर बार की तरह इस बार भी राय देते हैं कि बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। अब जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है रवीश कुमार किसानों के बीच जाकर ये समझाने के बजाए की सरकार ने आपको सही रखने के लिए ये कदम उठा लिया जो मैं मांग करता था। अब रवीश किसानों के बीच कम से कम जाकर ये बात तो समझा आएं।