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Who Was C Rajagopalachari : जानिए कौन थे चक्रवर्ती राजगोपलाचारी, जिनके प्रपौत्र सीआर केसवन ने ‘हाथ’ का साथ छोड़ थाम लिया ‘कमल’

Who Was C Rajagopalachari : आज जो दक्षिण हिंदी को किसी आक्रांता की तरह देखता है उसी दक्षिण से तमिलभाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आजीवन संघर्षशील रहे। सबसे पहले गैर-हिंदीभाषी राज्यों में से एक तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य कराने का श्रेय उन्हें जाता है। उनका मानना था कि हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जो देश को एक सूत्र में बांध सकती है। देश के एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल रहे राजनेता, वकील, लेखक व दार्शनिक राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तत्कालीन मद्रास प्रांत के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में हुआ था। पढ़ाई के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने इसके बाद देशभर में चल रहे आजादी के आंदोलनों में हिस्सा लिया। वो कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में सबसे ऊपर रहा करते थे।

नई दिल्ली। देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के प्रपौत्र सीआर केसवन ने ‘हाथ’ का साथ छोड़ ‘कमल’ को अपने हाथों में थामा है तो की लोगों के मन में उनके परदादा के बारे में सवाल उठ रहे होंगे। आखिर कौन थे राजगोपालाचारी ? इन्हीं सवालों के जवाब हम आपको देने वाले हैं। राजगोपालाचारी स्वतंत्रता के समय भारत के उन बड़े नेताओं में शुमार थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में पर्दे के पीछे से चुपचाप कार्य किया और देश की अनूठी एवं देश के लिए अपनी सेवाएं दी। लोग इनको प्यार से लोग राजाजी कहकर बुलाते थे। वो भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” के वे प्रथम हकदार बने और भारत के आखिरी गवर्नर जनरल भी बने। राजाजी जितने कद्दावर के राजनीतिज्ञ थे उतने ही गहन आध्यात्मिक भी थे। उन्होंने राजनीतिक समस्याओं के अतिरिक्त धार्मिक तथा सांस्कृतिक विषयों पर भी साधिकार कलम चलाई, एक नई दृष्टि एवं दिशा दी। इस दृष्टि से उन्होंने अपने आप को एक महान साहित्यकार, विचारक के रूप में भी स्थापित किया था।

आपको बता दें, कि आज जो दक्षिण हिंदी को किसी आक्रांता की तरह देखता है उसी दक्षिण से तमिलभाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आजीवन संघर्षशील रहे। सबसे पहले गैर-हिंदीभाषी राज्यों में से एक तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य कराने का श्रेय उन्हें जाता है। उनका मानना था कि हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जो देश को एक सूत्र में बांध सकती है। देश के एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल रहे राजनेता, वकील, लेखक व दार्शनिक राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तत्कालीन मद्रास प्रांत के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में हुआ था। पढ़ाई के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने इसके बाद देशभर में चल रहे आजादी के आंदोलनों में हिस्सा लिया। वो कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में सबसे ऊपर रहा करते थे।

गौरतलब है कि ये साल 1937 की बात है जब उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने कौंसिल का चुनाव जीता तो मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री बना दिए गए। तब उन्होंने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया तो उग्र विरोध हुआ और हिंसा में दो लोगों की मौत भी हुई। उस वक्त तो वह हिंदी को मुकाम नहीं दिला सके, लेकिन दक्षिण में इसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करते रहे। राजाजी के नाम से विख्यात रहे राजगोपालाचारी ने कई मौलिक कहानियां लिखीं। साथ ही, कुछ दिनों तक महात्मा गांधी के अखबार ‘यंग इंडिया’ के संपादन के कार्य में में भी लंबे समय तक जुटे रहे।