Farmers Protest: किसान आंदोलन के बीच दंगे की साजिश, कृषि मंत्री बोले MSP, APMC के बीच इसका क्या काम?

Farmers Protest: कृषि कानूनों (Agricultural laws) के खिलाफ देश में किसानों का विरोध प्रदर्शन (Farmer Protest) आज 16वें दिन भी जारी है। किसान अभी भी अपनी मांगों पर डटे हुए हैं। लेकिन अब कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में हो रहा किसानों का प्रदर्शन सवालों के घेरे में घिरता जा रहा है।

Avatar Written by: December 11, 2020 4:55 pm
Farmers Protest Poster Narendra Singh tomar

नई दिल्ली। कृषि कानूनों (Agricultural laws) के खिलाफ देश में किसानों का विरोध प्रदर्शन (Farmer Protest) आज 16वें दिन भी जारी है। किसान अभी भी अपनी मांगों पर डटे हुए हैं। लेकिन अब कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में हो रहा किसानों का प्रदर्शन सवालों के घेरे में घिरता जा रहा है। दरअसल नए कृषि नियमों के खिलाफ प्रदर्शन के बीच एक तस्वीर और वीडियो भी वायरल हुई, जिसमें प्रदर्शनकारियों के हाथों में दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम के पोस्टर दिखे। इतना ही नहीं इन पोस्टरों में वो उनकी रिहाई की मांग करते दिखे। इन सबके बीच अब केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने प्रदर्शनकारियों के हाथों में देशद्रोहियों के पोस्टर देख कड़ी आपत्ति जताई है। इतना ही नहीं इस पोस्टर पर सवाल उठाते हुए उन्होंने पूछा है कि किसान आंदोलन में इस पोस्टर का आखिर क्या काम है।

Farmers Protest Poster

कृषि मंत्री तोमर ने आरोप लगाया कि एमएसपी, एपीएमसी और अन्य मुद्दे किसानों से संबंधित हैं, लेकिन ये पोस्टर किसान का मुद्दा कैसे हो सकते हैं। यह खतरनाक है और यूनियनों को इससे खुद को दूर रखना चाहिए। यह सिर्फ मुद्दों को हटाने और विचलित करने के लिए किया जा रहा है। दरअसल, किसान आंदोलन के बीच मानवाधिकार दिवस के मौके पर गुरुवार को टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन के दौरान किसानों के मंच पर एक पोस्टर लगाया गया, जिसमें उमर खालिद, शरजील इमाम, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव समेत अन्य लोगों की रिहाई की मांग की गई थी।

tomar

इसी पर जवाब देते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, मैं किसान नेताओं से कहना चाहता हूं कि इस प्रकार के लोगों के हाथ में आपका आंदोलन पहुंच जाएगा तो इससे किसानों के हितों को नुकसान होगा। किसानों को सावाधानी बरतनी चाहिए देश को तोड़ने वाले लोग किसान आंदोलन में दिखेंगे तो इससे किसान बदनाम होंगे। किसान हमारे देश का अन्नदाता है किसानों ने देश को आत्मनिर्भर बनाया है। कोरोना के समय में भी किसानों ने मेहनत की। किसानों को देखना चाहिए कि उनके मंच का कोई गलत इस्तेमाल न करने पाए।’

किसानों के प्रदर्शन पर उठे सवाल- दिल्ली दंगे में शामिल आरोपियों व अर्बन नक्सलियों को रिहा करने की हुई मांग

किसान कानूनों के खिलाफ दिल्ली में हो रहा किसानों का प्रदर्शन अब सवालों के घेरे में घिरता जा रहा है। बता दें कि इससे पहले खालिस्तान समर्थित नारों को लेकर भी इस आंदोलन पर सवाल खड़े हुए थे वहीं अब इसी साल दिल्ली में हुए दंगों के आरोपियों और अर्बन नक्सिलयों को रिहा करने की मांग ने इस प्रदर्शन पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। बता दें कि सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और फोटोज वायरल हो रही हैं जिसमें अर्बन नक्सलियों और दिल्ली दंगे में शामिल आरोपियो को रिहा करने की मांग की जा रही है। बता दें कि खबरों के मुताबिक भारतीय किसान यूनियन (BKU उगराह) ने मानवाधिकार दिवस पर गुरुवार (10 दिसंबर 2020) को माओवादी-नक्सलियों के साथ संबंध के आरोप में ‘गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक (यूएपीए) UAPA के तहत गिरफ्तार किए गए कई आरोपितों की रिहाई की मांग की है।

Delhi Farmer Protest

पोस्टर्स में जिन लोगों को रिहा करने की बात कही गई है, उनमें यूएपीए के तहत गिरफ्तार हुए शरजील इमाम का भी जिक्र है। बता दें कि शरजील इमाम ने असम को भारत से काटने की बात की थी। इसके अलावा इसमें उमर खालिद, गौतम नवलखा, पी वरवरा राव, वर्नन गोंज़ाल्वेस, अरुण फरेरा और कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज सहित 20 से अधिक आरोपितों की तस्वीरें प्रदर्शन के दौरान टिकरी सीमा के पास एक मंच पर लगाई जाएंगी। बताया जा रहा है कि कई मानवाधिकार समूहों के भी इसमें भाग लेने की उम्मीद है।

कुछ लोग इन पोस्टर्स को फेक बता रहे हैं तो वहीं कुछ यूजर्स ने इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड किया है। बीकेयू (उगराह) के वकील और समन्वयक एनके जीत ने कहा कि जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने को लेकर पहले दिन से ही ये मांग रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने कहा है कि शहरी नक्सलियों, कॉन्ग्रेस और खालिस्तानियों द्वारा कृषि आंदोलन को भड़काया गया है। एनके जीत ने कहा कि शहरी नक्सल लोगों पर मुकदमा चलाने का यह एक बहाना है और पंजाब में लोगों को स्टेट टेररिज्म और आतंकवादियों के बीच फंसाया जाता है जबकि नक्सलवाद ने आदिवासी लोगों को उनके अधिकार दिलाने में मदद की है।”