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Rajasthan: गहलोत राज की दुर्दशा, अंबेडकर जयंती की रैली में पथराव के बाद खौफ में समुदाय, पलायन करने पर हुए मजबूर

मसला 14 अप्रैल का है। पता ही होगा आपको कि उस दिन अंबेडकर जयंती थी। लिहाजा समुदाय के लोगों ने इस मौके पर रैली निकालने का फैसला किया था, लेकिन गहलोत राज का आलम तो देखिए कि उन्हें रैली निकालने से साफ मना कर दिया गया और निकालने पर गंभीर परिणाम भुगतने तक की हिदायत दी गई।

नई दिल्ली। ‘दूसरों की आंखों में लट्टा तलाशने वाले लोगों को भला अपनी आंखों का तिनका क्यों नहीं दिखता’। अगर आप हिंदी भाषा के ज्ञाता हैं, तो आपको ये तो पता ही होगा कि ये कितनी प्रचलित कहावत है, लेकिन क्या आपको पता है कि मौजूदा वक्त में यह कहावत राजस्थान की गहलोत सरकार पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है। जी हां…बिल्कुल…सही पढ़ा आपने….केंद्र की मोदी सरकार को दलित विरोधी बताने वाले गहलोत सरकार खुद दलितों के हितों व उनके मुद्दों को लेकर कितने संवेदनहीन है, यह हालिया मामले से साफ उजागर हो चुका है। अब तो उनसे यह सवाल पूछ ही लेना चाहिए कि गहलोत साहब आप तो दलितों के मसलों को लेकर मोदी सरकार को घेरने में दिन रात जुटे रहते हैं, लेकिन आज जब बात खुद पर आई है, तो कह रहे हैं खामोश…! खामोश…. और खामोश…. !! अब इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आप मन ही मन सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है कि आप मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता गहलोत के संदर्भ में ऐसी भूमिका रचाने में मशगूल हो गए हैं। जरा कुछ खुलकर बताएंगे। तो चलिए अब आपको सबह कुछ तफसील से बताते हैं।

दरअसल, यह पूरा माजरा राजस्थान के भरतपुर जिले का है, जहां कुम्हरा गांव के समुदाय के लोग अपने पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं। अब वे इस गांव में रहने से भयभीत हो रहे हैं। यह गांव उनके लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। अपने वर्षों की जमा पूंजी और घर बार को यहीं छोड़कर यह अपने लिए दूसरा ठिकाना तलाशने की जद्दोजहद में जुट गए हैं और अब तक तो 100 से भी अधिक लोग इस गांव से पलायन कर चुके हैं और न जाने आने वाले दिनों में कितने ही लोग इस गांव से रूखसत होंगे। निसंदेह यह एक बड़ा सवाल है? तो इसकी वजह कोई और नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं और उनकी शासन व्यवस्था है। इसकी वजह उनकी दलित विरोधी मानसिकता है। इसकी वजह उनका दलितों के प्रति संवेदनहीन रुख है। इसकी वजह दलितों के मुद्दों को लेकर उनकी उदासीनता है। जी हां…..बिल्कुल…सही पढ़ रहे हैं आप….मोदी सरकार को दलित विरोधी का तगमा पहनाने वाले खुद गहलोत साहब कितने बड़े दलित विरोधी हैं, अगर आपको इसके बारे में पता चला गया, तो आप दांतों तले चने चबाने लग जाएंगे।

मसला 14 अप्रैल का है। पता ही होगा आपको कि उस दिन अंबेडकर जयंती थी। लिहाजा समुदाय के लोगों ने इस मौके पर रैली निकालने का फैसला किया था, लेकिन गहलोत राज का आलम तो देखिए कि उन्हें रैली निकालने से साफ मना कर दिया गया और निकालने पर गंभीर परिणाम भुगतने तक की हिदायत दी गई। लेकिन बाबा भीम राव अंबेडकर के पथों पर चलने वाले लोगों ने इन हिदायतों को अपने पैरों तले कुचलते हुए रैली निकाली, लेकिन अफसोस रैली को बाधित करने हेतु दबंगों द्वारा पथराव किया गया, जिसकी चपेट में आकर 9 लोग घायल हो गए और छिटपुट तरीके से चोटिल होने वालों के बारे में तो आप पूछिए ही मत तो मुनासिब रहेगा। अब अगर आप सोच रहे होंगे कि पुलिस ने पथराव करने वाले आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की होगी, तो साहब ऐसा सोचना तो आप छोड़ ही दीजिए। पुलिस ने गिरफ्तार करना तो दूर, बल्कि इनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करना तो मुनासिब नहीं समझा। इसके उलट रैली में शामिल लोगों के खिलाफ ही शिकायत दर्ज कर ली गई है।

अब ऐसे में गहलोत राज में समुदाय के लोगों की बदहाली का अंदाजा आप लगा ही सकते हैं। लिहाजा अब लोगों का पुलिस-प्रशासन से भरोसा उठ चुका है और अब ये गांव छोड़ने पर बाध्य हो रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि इनका किसी पर भी भरोसा नहीं है। उधर, दूसरे पक्ष के लोगों का कहना है कि ये लोग रैली में शराब पीकर और तेज-तेज गाने बजाकर जा रहे थे। जिससे आपत्ति जताई गई थी, लेकिन यहां सवाल है कि आखिर आपत्ति की आड़ में पथराव की स्थिति कैसे पैदा हो गई। यह तो फिलहाल पुलिस विवेचना का विषय है। पुलिस इस पूरे मामले में आगे चलकर क्या कुछ कार्रवाई करती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। लेकिन इस पूरे मसले में जिस तरह का रुख पुलिस ने दिखाया है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि गहलोत सरकार दलितों के मसलों को लेकर किस कदर संवेदन विहिन है।