PM Modi Birthday : यहां जानिए पीएम मोदी के जन्म से राजनीति में एंट्री तक की कहानी
PM Modi Birthday : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज 70 साल के हो गए हैं। पीएम मोदी आजाद भारत में जन्म लेने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज 70 साल के हो गए हैं। पीएम मोदी आजाद भारत में जन्म लेने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। पीएम मोदी के जन्मदिन के मौके पर भाजपा 14-20 सितंबर तक सेवा सप्ताह के रूप में मना रही है। वहीं पीएम मोदी के जन्मदिन पर देश और दुनिया के कई नेता बधाई दे रहे हैं। पीएम मोदी के जन्मदिन पर आज हम आपको उनके शुरुआती जीवन के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी गुजरात के मेहसाना जिले के एक छोटे से कस्बे वडनगर में जन्मे। 17 सितंबर 1950 को जन्मे नरेन्द्र मोदी, दामोदरदास मोदी और हीराबा की छह संतानों में से तीसरी संतान थे। बताया जाता है कि मोदी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उनके पिता स्थानीय रेलवे स्टेशन पर बनी चाय की दुकान पर चाय बेचते थे। अपने शुरुआती वर्षों में वह भी चाय की दुकान पर अपने पिता का हाथ बंटाते थे। मोदी की माता एक गृहणी महिला हैं।
नरेंद्र मोदी की शुरूआती शिक्षा वडनगर के स्थानीय स्कूल से पूरी हुई। उन्होंने 1967 तक अपनी हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई पूरी कर ली थी। एक बालक के तौर पर उनका एक सपना था- भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करने का। उनके समय के तमाम युवाओं के लिए, भारत माता की सेवा के लिए सेना सर्वोत्कृष्ट माध्यम था। हालांकि उनके परिजन उनके इस विचार के सख्त खिलाफ थे। नरेन्द्र मोदी जामनगर के समीप स्थित सैनिक स्कूल में पढ़ने के बेहद इच्छुक थे, लेकिन जब फीस चुकाने की बात आई तो घर पर पैसों का घोर अभाव सामने आ गया। निश्चित तौर पर नरेन्द्र बेहद दुखी हुए। लेकिन जो बालक सैनिक की वर्दी न पहन सकने के कारण बेहद निराश था, भाग्य ने उसके लिए कुछ अलग ही सोच कर रखा था। इन वर्षों में उसने एक अद्वितीय पथ पर यात्रा आरम्भ की, जो उन्हें मानवता की सेवा के लिए बड़े मिशन की खोज के लिए भारत भर में ले गया।
17 वर्ष की आयु में उन्होंने एक असाधारण फैसला लिया, जिसके बाद उनका जीवन ही बदल गया। उन्होंने घर छोड़ने और देश भर में भ्रमण करने का निर्णय कर लिया। उनका परिवार नरेन्द्र के इस निर्णय पर चकित था, लेकिन उन्होंने नरेंद्र मोदी के छोटे शहर का सीमित जीवन छोड़ने की इच्छा को अंतत: स्वीकार कर लिया। जिन स्थानों की उन्होंने यात्राएं की उसमें हिमालय (जहां वे गुरूदाचट्टी में ठहरे), पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण आश्रम और यहां तक कि पूर्वोत्तर भी शामिल है। इन यात्राओं ने इस नौजवान के ऊपर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने भारत के विशाल भू-भाग में यात्राएं कीं और देश के विभिन्न भागों की विभिन्न संस्कृतियों को अनुभव किया।
मोदी दो वर्ष के बाद वापस लौट आये लेकिन घर पर केवल दो सप्ताह ही रुके। इस बार उनका लक्ष्य निर्धारित था और उद्देश्य स्पष्ट था – वह अहमदाबाद जा रहे थे। वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ कार्य करने का मन बना चुके थे। आरएसएस से उनका पहला परिचय आठ वर्ष की बेहद कम आयु में हुआ, जब वह अपनी चाय की दुकान पर दिन भर काम करने के बाद आरएसएस के युवाओं की स्थानीय बैठक में भाग लिया करते थे। इन बैठकों में भाग लेने का प्रयोजन राजनीति से परे था। वे यहां अपने जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाले लक्ष्मणराव इनामदार, जिनको ‘वकील साहेब’ के नाम से भी जाना जाता था, से मिले थे।
अपनी इस पृष्ठभूमि के साथ, लगभग 20 वर्षीय नरेंद्र मोदी गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद पहुंचे। वह आरएसएस के नियमित सदस्य बन गए और उनके समर्पण और संगठन कौशल ने वकील साहब और अन्य लोगों को प्रभावित किया। 1972 में वह प्रचारक बन गए और पूरा समय आरएसएस को देने लगे। 1973 में नरेन्द्र मोदी को सिद्धपुर में एक विशाल सम्मलेन आयोजित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया, जहां वह संघ के शीर्ष नेताओं से मिले। यहां से उनके राजनीति में जाने का रास्ता धीरे-धीरे तैयार होने लगा था, जिसके बारे में शायद तब तक खुद पीएम मोदी भी नहीं रहते थे। 1973 में उन्होंने एक व्यापक जन आन्दोलन तैयार किया, जिसे समाज के सभी वर्गों का समर्थन हासिल हुआ।
इस आन्दोलन को उस वक्त और बल मिला जब एक सम्मानित सार्वजानिक हस्ती और भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद करने वाले जयप्रकाश नारायण ने इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया। जब जयप्रकाश नारायण अहमदाबाद आये तब नरेन्द्र मोदी को उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अन्य अनुभवी नेताओं द्वारा आयोजित कई वार्ताओं ने नौजवान नरेन्द्र पर एक मजबूत छाप छोड़ी आख़िरकार छात्र शक्ति की जीत हुई और कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा। तथापि यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। अधिनायकवाद के काले बादलों ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के ऊपर आपातकाल थोप दिया।
इसके बाद 1980-90 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नवगठित भाजपा में उनके वरिष्ठ उन्हें और अधिक ज़िम्मेदारी सौंपना चाहते थे, और इस प्रकार 1987 में एक और अध्याय नरेन्द्र मोदी के जीवन में शुरू हुआ। उसके बाद से वे जितना समय सड़कों पर काम करते थे उतना ही समय वे पार्टी की रणनीतियां तैयार करने में व्यतीत करते थे।