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सीपीआर के फाइनेंसियल मामलों की जांच को इसके उद्देश्यों और इंडियन पॉलिसी मेकिंग पर प्रतिकूल प्रभावों तक बढ़ाने की मांग

अब आईपीएसएमएफ की भूमिका पर आते हैं, जो अपने स्वयं के एजेंडे के अनुरूप सरकारी नीतियों के पक्ष या विपक्ष में राय बदलने के उद्देश्य से, रिसर्च के नाम पर सीपीआर द्वारा उत्पन्न कंटेंट को बढ़ाने के लिए, मीडिया प्लेटफार्मों का एक बुके प्रदान करता है। ऐसे में एक सिंपल गूगल सर्च, इस गठजोड़ में इनसाइट प्रदान करेगा।

नई दिल्ली: दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड चैरिटी आर्गेनाईजेशन ऑक्सफैम इंडिया में आयकर विभाग द्वारा सर्च ऑपरेशन के बाद उनके प्रबंधन और फंडिंग को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इस मामले में उत्सुकता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि आयकर विभाग अभी तक चुप्पी साधे हुआ है।

संभवतः जांचकर्ताओं को पहेली के सभी पहलुओं को ठीक करने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है क्योंकि पिछले वर्षों के फाइनेंसियल डेटा का विश्लेषण और उसको इससे जोड़ना कोई आसान काम नहीं है। इसलिए, इस हाई-प्रोफाइल थिंक टैंक और चैरिटी संगठन को क्रैक करने के लिए आयकर विभाग के इस असामान्य कदम के पीछे के कारणों का पता लगाना दिलचस्प हो गया है।

विभाग ने बेंगलुरु स्थित इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) की भी तलाशी ली है, जो कारवां, द वायर, एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क, आर्टिकल 14 और द सिटीजन जैसे अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म को फंडिंग के लिए जाना जाता है। इस अंश में आइए सबसे पहले सीपीआर और आईपीएसएमएफ की रूपरेखा को समझते हैं।

नीति अनुसंधान केंद्र

सालों से किसी दूसरे संस्थानों और संस्थाओं के साथ संबंध रखने वाले रिसर्चर्स द्वारा अपने एजेंडा-ड्रिवेन रिसर्च सब्जेक्ट के लिए, थिंक टैंक सीपीआर के बारे में बातें होती रही हैं, जो विकसित देशों, जहां उनके संरक्षक आधारित हैं, के लिए एक सामान प्रश्न पेश न करने के लिए जाने जाते हैं।

शुक्रवार को सीपीआर ने कहा, “भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीसीएसआर) नेटवर्क के 24 रिसर्च संस्थानों में से एक के रूप में सीपीआर के पास सभी आवश्यक अप्रूवल और स्वीकृतियां मौजूद हैं, जो सरकार द्वारा विदेशी योगदान (विनियमन) एक्ट के तहत प्राप्तकर्ता के रूप में अधिकृत है।” यहाँ तक कि अन्य बयानों में ‘पूर्ण सहयोग’ और ‘अनुपालन के उच्चतम मानकों’, ‘कुछ भी गलत नहीं किया’ और ‘हमारे मिशन के लिए प्रतिबद्ध’ जैसे सामान्य वाक्यांशों को भी शामिल किया गया था, जिसे प्रहरी द्वारा उदरपूर्वक इस्तेमाल किया जाता है।

हालांकि इसने अपने बयान में आईसीसीएसआर का नाम तो बड़ी आसानी से लिया है, लेकिन सीपीआर विदेशी फंडिंग के बारे में चुप रही जो कि घरेलू फंड से काफी अधिक है। उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए सीपीआर की वार्षिक रिपोर्ट पर करीब से नज़र डालने से पता चलता है कि इसे विदेशों से 32,81,51,528 रुपये का दान मिला, जो 4,13,09,689 रुपये के घरेलू फंड से लगभग आठ गुना अधिक है।

वित्तीय वर्ष 2015-16 और 2020-21 के दौरान, सीपीआर को केवल ‘शैक्षिक उद्देश्य’ के लिए लगभग 100 करोड़ रुपये के विदेशी अनुदान प्राप्त होने का अनुमान है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सीपीआर कोई शैक्षणिक या शैक्षणिक संस्थान नहीं चलाता है।

सीपीआर की वेबसाइट बताती है, “सीपीआर भारत के सर्वश्रेष्ठ थिंकर्स और पॉलिसी प्रैक्टिसनर्स को एक साथ लाता है जो नीति क्षेत्र में रिसर्च और इंगेजमेंट दोनों में सबसे आगे हैं, और विभिन्न विषयों व प्रोफेशनल बैकग्राउंड से आते हैं।”

हालाँकि, इस ‘फैकल्टी’, ‘फैकल्टी एमेरिटि’ और ‘रिसर्चर्स’ की सूची में ऐसे लोग शामिल हैं जो अक्सर विदेशी संस्थानों और संस्थाओं से जुड़े होते हैं। इसलिए, भारत सरकार को यह देखने की सलाह दी जाती है कि तथाकथित विद्वानों के माध्यम से देश का संवेदनशील डेटा और जानकारी विदेशी हाथों में न जाए। आखिरकार सीपीआर रिप्रेज़ेंटेटिव, रिसर्च की आड़ में नीति निर्माताओं के साथ नेटवर्किंग के अलावा डेटा और सूचना तक आसान पहुंच का मजा लेते हैं। ऐसे में यदि भारत से रिपोर्ट करने के इच्छुक विदेशी पत्रकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित मंजूरी प्रक्रिया से गुजरना होता है, तो इस बात का कोई औचित्त नहीं बनता है कि सीपीआर या किसी अन्य थिंक टैंक से जुड़े रिसर्चर्स को बिना जांच के भारत में प्रवेश की अनुमति दे दी जाए!

पॉलिसी मेकिंग में आईसीसीएसआर और भारत सरकार का मूल उद्देश्य ऐसे थिंक टैंकों से लाभ उठाना था। इसके बजाय, कुछ थिंक टैंक विदेशी शक्तियों के लिए भारत की पॉलिसी मेकिंग पर हावी होने और भारतीय स्थिति से लाभ उठाने के लिए अपनी नीतियों को बदलने के लिए, एक टूल नजर आते हैं। ऐसे में सीपीआर में लोगों की प्रोफाइल और उनके हित क्षेत्रों की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए।

आइए अब हम सीपीआर में विदेशी फंडिंग के विवादास्पद मुद्दे पर वापस आते हैं। सीपीआर के कुछ उल्लेखनीय अंतरराष्ट्रीय संरक्षक और उनके संबंधित योगदान इस लेख के अंत में सूचीबद्ध किये गये हैं। जब लगभग पांच दशक पुराने सीपीआर की निष्ठा की बात आती है तो नमती एक अजीबोगरीब मामला समझ आता है, जिसका नेतृत्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर कर रही हैं। जॉर्ज सोरोस द्वारा फंडेड, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन, नमती का संस्थापक सदस्य है। सोरोस का विकासशील देशों में अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर करने, विरोध प्रदर्शनों को फंडिंग करने और यहां तक ​​कि परोक्ष युद्ध भड़काने का इतिहास रहा है।

गौरतलब है कि सीपीआर भारत में नमती का एकमात्र पैरालीगल पार्टनर है। इसका मतलब है कि एफसीआरए का संभावित उल्लंघन है क्योंकि नमती भारत में कानूनी मामलों को सीपीआर के माध्यम से फंडिंग कर रही है, जिसे केवल रिसर्च और एजुकेशनल एक्टिविटीज में संलग्न माना जाता है।

 

यह पहली बार नहीं है कि सीपीआर के शासन मानकों पर सवाल उठाया गया है। इससे पहले 2015 में, दिल्ली पुलिस ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एएआई) में एक भर्ती घोटाले में विश्वास के उल्लंघन के लिए, सीपीआर के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की थी। सीपीआर, एग्जामिनेशन सेल स्थापित करने के अपने मूल उद्देश्य से भटक गया था। जबकि एएआई ने एविएशन अथॉरिटी में संवेदनशील कार्यों का प्रबंधन करने वाले कर्मचारियों की भर्ती के लिए, परीक्षा आयोजित करने हेतु सीपीआर को काम पर रखा था। हालांकि, कुछ उम्मीदवारों के पक्ष में परीक्षा परिणामों के साथ छेड़छाड़ के आरोप सामने आए और सीपीआर ने तुरंत एग्जामिनेशन सेल को बंद करने का फैसला किया।

इंडिपेंडेंट और पब्लिक-स्पिरीटेड मीडिया फाउंडेशन

अब आईपीएसएमएफ की भूमिका पर आते हैं, जो अपने स्वयं के एजेंडे के अनुरूप सरकारी नीतियों के पक्ष या विपक्ष में राय बदलने के उद्देश्य से, रिसर्च के नाम पर सीपीआर द्वारा उत्पन्न कंटेंट को बढ़ाने के लिए, मीडिया प्लेटफार्मों का एक बुके प्रदान करता है। ऐसे में एक सिंपल गूगल सर्च, इस गठजोड़ में इनसाइट प्रदान करेगा। तो चलिए वापस जॉर्ज सोरोस पर आते हैं जिन्होंने सोरोस इकोनॉमिक डेवलपमेंट फंड के माध्यम से मीडिया डेवलपमेंट इन्वेस्टमेंट फंड (एमडीआईएफ) को भी बढ़ावा दिया है। दिलचस्प बात यह है कि एमडीआईएफ के इन्वेस्टमेंट डायरेक्टर कोरिल लहरी 2017 में एमडीआईएफ में शामिल होने से पहले आईपीएसएमएफ में चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर थे।

बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, ओक फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, विलियम एंड फ्लोरा हेवलेट और फाउंडेशन मैक आर्थर फाउंडेशन जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सूची निम्नलिखित है। ऑक्सफैम के मामलों को देखते हुए हम उनके बारे में और बात करेंगे। आखिर भारत में उनका गठजोड़ केवल सीपीआर तक ही सीमित नहीं है। ऑक्सफैम इंडिया भी इन ‘संरक्षकों’ के लाभार्थी में शामिल है।

सीपीआर के कुछ अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक

छह साल में फंडिंग (रुपये में)

नमती – 11,55,15,432
मेलिंडा और बिल गेट्स फाउंडेशन – 40,71,69,048
फोर्ड फाउंडेशन – 17,06,87,398
ओमिडयार नेटवर्क – 8,04,52,140
विलियम एंड फ्लोरा हेवलेट फाउंडेशन (एचपी फाउंडेशन) – 7,10,80,750
मैक आर्थर फाउंडेशन – 4,00,41,060
सीआईएफएफ – 3,08,36,879
ओक फाउंडेशन – 2,45,42,926
एशिया फाउंडेशन – 69,76,540

(( यह आर्टिकल, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर रिसर्च फेलो बिनय कुमार सिंह के अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है। अंग्रेजी आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें —

https://newsroompost.com/india/probe-in-cprs-financial-affairs-should-be-extended-to-its-motives-and-adverse-influence-on-indian-policy-making-too/5184430.html ))