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मुजफ्फरनगर के खतौली में श्री कृष्ण मंदिर के स्थापना दिवस पर पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत, कही ये बातें

उन्होंने कहा कि जैसे पहला तत्व सत्य है, दूसरा तत्व है शुचिता पवित्रता उपासना शुद्धि के लिए शुचिता के लिए है, यह करना है तो तपस्या करनी पड़ती है परिश्रम करना पड़ता है। कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है जो लगता है, चाहिए उसको भी छोड़ना पड़ता है, लेकिन नियम सब में होते हैं। कर्तव्य कर्तव्य का विवेक सब में होता है। हम लोगों को मंदिर का मर्म समझना चाहिए उत्सव तो हम मनाते ही हैं आनंद तो मनाते ही हैं, परंतु मंदिर को आगे बढ़ाते रहना इस मंदिर में जो धर्म कार्य चलता है।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर में बुधवार को कस्बा खतौली में श्री कृष्ण मंदिर के 65 वें स्थापना दिवस के मौके पर पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने का संकल्प लिया। मंच से बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि पवित्र मनुष्य ही बुद्धि के पार जा सकता है। सत्य कठोर होता है। दूसरों के लिए ऐसा विचार किया जो पीड़ित है, दुखी है, मरने दो जन्म लिया है, तो मरेगा कभी ना कभी तो मनुष्य का आचरण ही मनुष्य जैसा नहीं रहेगा, इसलिए चौथा महत्वपूर्ण तत्व है, करुणा जब हम कहते हैं सत्य शांति अहिंसा और करुणा इन चार बातों को लेकर जो धर्म समाज को सिखाना है, हमारे भारतवर्ष से निकली हुई उपासना और की पंथ संप्रदाय की धाराओं ने इस धर्म को बताया है और धर्म में हमारा कर्तव्य बताया है स्वयं धर्म पूर्वक जीओ और दुनिया में धर्म का परिवर्तन करो धर्म का संरक्षण करना पड़ता है दो तरह से जब धर्म पर संकट आते हैं। परिस्थितियों के अनुसार संकट आते हैं, दुष्ट लोगों के संकट आते हैं अधर्मी लोग आक्रमण करते हैं, यह सब होता है उसके लिए शक्तिपूर्वक उसका मुकाबला करना पड़ता है यह सामर्थ्य होनी चाहिए, जो बात कही गई है लेकिन शक्ति के साथ सुशील चाहिए सत्यम को बताता है कि कोई पराया नहीं है कोई ऊंच-नीच नहीं है कोई जात पात नहीं है हम सब एक हैं ऐसे जब चलते हैं तो उन्नति होती है।

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उन्होंने कहा कि जैसे पहला तत्व सत्य है, दूसरा तत्व है शुचिता पवित्रता उपासना शुद्धि के लिए शुचिता के लिए है, यह करना है तो तपस्या करनी पड़ती है परिश्रम करना पड़ता है। कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है जो लगता है, चाहिए उसको भी छोड़ना पड़ता है, लेकिन नियम सब में होते हैं। कर्तव्य कर्तव्य का विवेक सब में होता है। हम लोगों को मंदिर का मर्म समझना चाहिए उत्सव तो हम मनाते ही हैं आनंद तो मनाते ही हैं, परंतु मंदिर को आगे बढ़ाते रहना इस मंदिर में जो धर्म कार्य चलता है। एक अंग उपासना है दूसरा अंग धर्म है सदाचार है तीसरा अंग मंदिर का है समाज की धारणा पुराने कहां सारा समाज एक साथ रहे साथ मिलकर उन्नति के पथ पर आगे बढ़े कोई फूट कोई झगड़ा ना हो और सब लोग अपने जीवन को उन्नत करते हुए सृष्टि सहित सारे विश्व को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाएं ऐसा जीवन जीने का धर्म का तीसरा अंग है। एक दूसरे के साथ विश्वास पूर्वक सम्मान पूर्वक आचरण करना और आगे बढ़ना अपने साथ पूरी मानवता को आगे लेकर जाएं एक दूसरे की मदद करेंगे और सब लोग मिलकर अच्छे रास्ते पर चलेंगे हम संग में एक गीत गाते हैं संगठन बढ़े चलो सुपंथ पर बढ़े चलो हो भला समाज का वह काम सब किए जाए।

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अपने यहां के सब पंथ संप्रदायों की यही धारणा है इसलिए अपने आप उन धर्म संप्रदायों के मंदिर में दोनों का आज स्थिति ऐसी नहीं है लेकिन पहले मंदिर में क्या नहीं होता था उपासना तो होती थी और मनुष्य का जीवन सुचिता मय बने तपस्यामय बने और धीरे-धीरे सत्य की और वह बड़े यह सब तो मंदिर में होता ही था लेकिन उसके साथ साथ मंदिर में तरह-तरह के रोजगारो को आश्रय मिलता था रोजगार मंदिर के भरोसे चलते थे मंदिरों की जमीनों मैं तरह-तरह के खुशी के प्रेरक होते थे मंदिरों में मल शाला व्यायामशाला चलती थी सारे समाज जीवन का केंद्र मंदिर था मंदिर सारे समाज जीवन की श्रद्धा बनाए रखता था इसीलिए तो विदेशी आक्रामकों ने केवल लूट खसौट को छोड़कर जब हमको गुलाम करना चाहा तो मंदिरो का विध्वंस किया केवल संम्पत्ति की ही नही मनोबल तोड़ दिया हमारे श्रद्धा के केंद्र रोज के जीवन के व्यवहार के केंद्र यह मंदिर थे। देश को आगे बढ़ाने के लिए सबको आगे आकर सहयोग करना होगा, तभी देश विश्व गुरु बनेगा। हमारा देश विश्व गुरु बनेगा तो दुनिया में फैली अशांति की स्थिति समाप्त हो जाएगी। कमाने वाले से ज्यादा बांटने वाला बड़ा होता है।