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International Trade In Rupee: अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में रुपए के इस्तेमाल का RBI ने यूं ही नहीं किया फैसला, डॉलर की तरह होगा मजबूत तो मिलेंगे ये फायदे

International Trade In Rupee: कुछ अर्थशास्त्रियों ने बीते दिनों कहा था कि डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी की कीमत 80 रुपए तक हो सकती है। फिलहाल तो आसार ऐसे दिख रहे हैं, लेकिन रूस का उदाहरण है कि उसने अपनी मुद्रा यानी रूबल को डॉलर के मुकाबले तगड़ा कर लिया।

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक RBI ने भारतीय निर्यातकों और कारोबारियों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपए में लेनदेन करने की छूट दी है। ये छूट यूं ही नहीं दी गई। जानकारों के मुताबिक यूक्रेन युद्ध और श्रीलंका के हालात को देखते हुए रिजर्व बैंक ने बहुत बड़ा कदम उठाया है और इस साल के खत्म होने तक इसका बड़ा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पॉजिटिव रूप में दिख सकता है। फिलहाल भारतीय मुद्रा यानी रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार गिरने का नया रिकॉर्ड बना रहा है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने बीते दिनों कहा था कि डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी की कीमत 80 रुपए तक हो सकती है। फिलहाल तो आसार ऐसे दिख रहे हैं, लेकिन रूस का उदाहरण है कि उसने अपनी मुद्रा यानी रूबल को डॉलर के मुकाबले तगड़ा कर लिया।

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पहले बात करते हैं कि रूस ने रूबल को डॉलर के मुकाबले मजबूत कैसे किया? रूस ने यूक्रेन जंग में यूरोप के देशों की भूमिका के बाद साफ कर दिया कि रूस से यूरोप के देश जो भी चीज खरीदेंगे, या तो उसका भुगतान सोने में करना होगा या रूबल में। इससे यूरोपीय देशों ने खूब रूबल खरीदना शुरू किया और रूस की मुद्रा मजबूत हो गई। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगने से रूस के खजाने में रखी विदेशी मुद्रा के खर्च होने का जो संकट खड़ा हो गया था, वो फिलहाल टल गया है। माना जा रहा है कि भारत की विदेशी मुद्रा बचाने के लिए ही रिजर्व बैंक ने ये फैसला किया है। अब रूस, ईरान और अन्य करीबी देशों से ज्यादातर व्यापारिक लेन-देन रुपए में ही होगा। रूस ने इसके लिए वोस्त्रो खाता भी खोला है।

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वोस्त्रो खाते में रूस अगर रूबल से भारत को पेमेंट करेगा, तो भारत को ये पेमेंट रुपए में मिलेगा और वो जब रुपए में पेमेंट करेगा, तो रूस को पेमेंट रूबल में मिल जाएगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपए में लेन-देन से भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन यानी कीमत भी कम घटेगी और वो मजबूत होगी। दूसरे देशों की सरकारें भारत से अनाज वगैरा खरीदती हैं। ऐसे में उन्हें पेमेंट करने के लिए रुपया खरीदना होगा। इसके अलावा रुपए की मजबूती से विदेशी निवेशकों ने हाल के दिनों में जिस तरह 33 अरब रुपए शेयर बाजार से निकालकर उसे झटका दिया, उसका असर भी कम किया जा सकेगा।

रूस की बात फिर करते हैं। वो इस वक्त भारत को कच्चा तेल सप्लाई करने वाला चौथे नंबर का देश हो गया है। कच्चा तेल खरीदने में काफी डॉलर खर्च होते हैं। ऐसे में रूस से रुपए और रूबल में व्यापार से विदेशी मुद्रा बचेगी। मई तक भारत ने रूस से व्यापार में 5 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। भारत अभी श्रीलंका को मदद दे रहा है। ये मदद अब तक डॉलर से हो रही थी। अब मदद को रुपए में दिया जा सकेगा। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लेन-देन में डॉलर का हिस्सा अभी करीब 74 फीसदी है। रुपए में लेन-देन से डॉलर का एकछत्र साम्राज्य भी खत्म हो सकता है।