जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना हो या फिर अयोध्या फैसला, कारगर रही डोभाल की रणनीति
भाजपा के दो मुख्य एजेंडे, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और राम मंदिर फैसले के बाद सुरक्षा व शांति व्यवस्था कायम रखने के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और उनकी एडवायजरी काउंसिल का अहम रोल रहा।
नी दिल्ली। इसी साल अगस्त के महीने में केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया था और फिर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाया गया। इसके बाद कई सालों से चले आ रहे अयोध्या फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और विवादित जमीन रामलला को दी गई। इन दोनों ही बड़े मुद्दों के दौरान या बाद में किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटने की खबर सामने नहीं आई और इसके पीछे की रणनीति थी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की।
डोभाल की एडवायजरी का रहा अहम रोल
भाजपा के दो मुख्य एजेंडे, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और राम मंदिर फैसले के बाद सुरक्षा व शांति व्यवस्था कायम रखने के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और उनकी एडवायजरी काउंसिल का अहम रोल रहा। दोनों मौकों पर गृहमंत्रालय ने डोभाल के ही बनाए रोडमैप पर काम किया।
एहतियातन सुरक्षा बल को बड़ी संख्या में बैरक से निकाल कर सड़कों पर उतारने और सोशल मीडिया व संचार माध्यम को काबू में रखना पूरी सुरक्षा व्यवस्था का मुख्य आधार था। इसके अलावा खुफिया तंत्र द्वारा तकनीक पर निर्भर रहने के बजाए व्यक्तिगत जमीनी खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के पुराने तरीके को कारगर तरीके से अपनाया गया।
सुरक्षा मामलों से जुड़े उच्चपदस्थ अधिकारी का मुताबिक दोनों मामलों में डोभाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और गृहमंत्रालय को सुरक्षा और शांति व्यवस्थआ के प्रति आश्वस्थ कर दिया था। शर्त यह थी कि कानून व्यवस्था के मामले में राज्य सरकारों के भरोसे नहीं रहना है।
डोभाल का तजुर्बा आया काम
सूत्रों के मुताबिक चूंकि संवैधानिक तौर पर कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है डोभाल के इन तरीकों पर कई सवाल भी उठे। लेकिन आखिर में उनका यही आउट ऑफ दि बॉक्स आईडिया काम आया।
डोभाल ने अपने तजुर्बे के आधार पर सुरक्षा बल को बड़ी संख्या में सड़क पर उतारने का फैसला लिया। उनकी राय थी कि इसका दोहरा मनोवैज्ञानिक असर हुआ। सुरक्षा बल की दिखने वाली मौजूदगी से शांतिप्रिय लोगों में सुरक्षा की भावना घर करती है तो उपद्रव फैलाने वालों में डर का।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के एलान के पहले ही गली मुहल्लो तक में सैकड़ो कंपनियां तैनात कर दी गई थीं। मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले भी सिर्फ अयोध्या में अर्धसैनिक बलों की 40 कंपनियां भेज कर सड़कों को पाट दिया गया।
सूत्रों के मुताबिक डोभाल की राय पर ही सरकार की तरफ से मंदिर फैसले को किसी की हार या जीत से जोड़कर नहीं देखने के संवाद को प्रचारित किया गया। गृहमंत्री अमित शाह लगातार सक्रिय रहेऔर ज्यादातर मुख्यमंत्रियों के साथ संपर्क में रहे।
सोशल मीडिया को काबू में रखना आया काम
डोभाल का मानना था कि अगर सोशल मीडिया और संचार माध्यम को काबू में रखा गया तो 80 फीसदी खतरा टल जाएगा। यही वजह थी कि जम्मू-कश्मीर में पूरी संचार माध्यम को खतम कर दिया गया था। बाद में इसमें धीरे-धीरे छूट दी गई लेकिन हालात को दिन रात मॉनिटर किया जा रहा था। खुफिया विभाग की तकनीकी संस्थान नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन (एनटीआरओ) और मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) दोनों मामलो में पूरी तरह भागीदार था।
राम मंदिर फैसला मामले में उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया पर नजर रखने केलिए कम से कम दस नए सेंटर गठित किए गए। योजना के मुताबिक किसी भी भड़काऊ पोस्ट पर फौरन कार्रवाई कर उसे पुलिस अपने ट्वीटर और फेसबुक हैंडल पर प्रचारित कर रही थी। अन्य राज्यों के चिन्हित संवेदनशील इलाकों में भी यह मॉडल अपनाया गया। गृहमंत्रालय का मानना है कि यह योजना काफी कारगर रही।