जम्मू-कश्मीर कांग्रेस नेता की नजरबंदी रद्द करने संबंधी याचिका पर जल्द सुनवाई से SC का इनकार

उमर अब्दुल्ला के मामले का हवाला देते हुए, सिंघवी ने दलील दी कि पहले भी इसी तरह के मामलों में नोटिस जारी किया गया था और छोटी अवधि की तारीखों के कारण लोगों की रिहाई हुई है। सिंघवी ने दावा किया कि बगैर किसी दस्तावेज के उन्हें नजरबंद किया गया। मगर न्यायाधीश मिश्रा ने उनकी दलीलों पर विचार नहीं किया।

Avatar Written by: June 8, 2020 5:41 pm

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज की नजरबंदी के खिलाफ दायर याचिका पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सोज की पांच अगस्त, 2019 से घर में नजरबंदी को चुनौती देते हुए उनकी पत्नी ने याचिका दायर की है। अदालत ने हालांकि जुलाई में इस मामले की सुनवाई तय कर दी और जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया।

 

supreme court

सोज का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जल्द सुनवाई की मांग की और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की एक पीठ से आग्रह किया कि वह इस मामले पर अगले सप्ताह सुनवाई करें। मगर इस मामले में सोज को राहत नहीं मिली, क्योंकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने मामले को जुलाई के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

Saifuddin Soz, Congress

उमर अब्दुल्ला के मामले का हवाला देते हुए, सिंघवी ने दलील दी कि पहले भी इसी तरह के मामलों में नोटिस जारी किया गया था और छोटी अवधि की तारीखों के कारण लोगों की रिहाई हुई है। सिंघवी ने दावा किया कि बगैर किसी दस्तावेज के उन्हें नजरबंद किया गया। मगर न्यायाधीश मिश्रा ने उनकी दलीलों पर विचार नहीं किया।

omar abdullah 1

सोज की पत्नी मुमताजुन्निसा सोज ने याचिका में कहा कि उनकी नजरबंदी को 10 महीने बीत चुके हैं और उन्हें अभी नजरबंदी के आधार की जानकारी नहीं दी गई है। सोज की पत्नी ने कहा कि उनके पति ने हमेशा भारत की एकता की वकालत की है और लगातार संवैधानिक सिद्धांतों को बरकरार रखा है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि उनके पति ने राष्ट्र के प्रति सम्मान और जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी या भारत विरोधी आवाजों का विरोध भी किया है।

वकील सुनील फर्नांडीस के माध्यम से दायर याचिका में सोज की पत्नी ने कहा कि उनके पति की नजरबंदी पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत निर्धारित संवैधानिक सुरक्षा उपायों के विपरीत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके पति ने अलगाववादी खतरों के बावजूद लगातार संविधान के प्रति अटूट निष्ठा का प्रदर्शन किया है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके पति ने शांति भंग नहीं की है। उन्होंने कहा कि उनके पति ने न तो सार्वजनिक शांति भंग की है और न ही कोई ऐसा गलत कार्य किया है, जिससे शांति भंग हो सकती है।

jammu kashmir

उल्लेखनीय है कि पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांटने का फैसला लिया था। इस दौरान तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं को एहतियात के तौर पर नजरबंद कर दिया गया था। फारूक और उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं को अब रिहा कर दिया गया है, जबकि कुछ नेता अभी भी नजरबंद हैं।