Johnson & Johnson: एक ही डोज में कोरोना पर वार करती है ये वैक्सीन, फायदों के साथ हैं कुछ नुकसान
Corona Vaccine: जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन का तीसरा फायदा ये है कि इसे सामान्य तापमान पर 3 महीने तक रखा जा सकता है। जबकि, कोविशील्ड और कोवैक्सीन को माइनस 4 से माइनस 8 डिग्री के बीच रखना होता है। वहीं, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री पर रखना पड़ता है।
नई दिल्ली। भारत सरकार की ओर से अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल जाने से आम जनता को कोरोना से लड़ने का एक और हथियार मिल गया है। इस वैक्सीन के कई फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी सामने आए हैं। पहला फायदा ये है कि इस वैक्सीन का एक ही डोज लगाना पड़ेगा। यह वैक्सीन फाइजर या मॉडर्ना की तरह एमआरएनए नहीं है। इसे भी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की तरह मृत कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के हिस्से लेकर बनाया गया है। जबकि, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन आरएनए आधारित है। दूसरा फायदा ये है कि सिंगल डोज के कारण इसे लगवाने वालों को दूसरा डोज लेने की जरूरत नहीं होती। यानी उन्हें फिर वैक्सीनेशन सेंटर की लाइन में खड़ा नहीं होना होगा। जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन का तीसरा फायदा ये है कि इसे सामान्य तापमान पर 3 महीने तक रखा जा सकता है। जबकि, कोविशील्ड और कोवैक्सीन को माइनस 4 से माइनस 8 डिग्री के बीच रखना होता है। वहीं, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री पर रखना पड़ता है।
अब बात करते हैं इस वैक्सीन के नुकसान की। इस वैक्सीन को लगवाने के बाद कोरोना से बचाव तो होता है, लेकिन इसकी एफिकेसी यानी असर सिर्फ 85 फीसदी है। यानी 15 फीसदी तक बचाव नहीं मिलता है। इस वैक्सीन को लगवाने के बाद 14 दिन तक कोई और वैक्सीन लगवा नहीं सकते। इस वैक्सीन के इस्तेमाल से अमेरिका में कई लोगों में खून के थक्के बनने की शिकायत आई थी। जिसके बाद इस साल 13 अप्रैल को अमेरिका सरकार ने जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी, लेकिन 23 अप्रैल को इस रोक को हटा लिया गया।
वैक्सीन के साथ एक विवाद तब भी जुड़ा, जब हाल ही में सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि इसमें इंसानी भ्रूण का डीएनए भी मिलाया गया है। इस पर अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस स्थित रोमन कैथोलिक आर्चडियोसिस ने बयान जारी कर विरोध जताया। बाद में कंपनी की ओर से कहा गया कि वैक्सीन में लैब में तैयार इंसानी भ्रूण कोशिकाएं इस्तेमाल की गई हैं। इंसानी भ्रूण से इसका कोई नाता नहीं है।