Idgah Maidan Hubli: जब हुबली के ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने पहुंचे राष्ट्रभक्तों पर कांग्रेस सरकार ने चलवा दी थी गोलियां और फिर….राज्य में खिलने लगा कमल

Idgah Maidan Hubli: साल 1994 में कर्फ्यू तोड़कर हुबली के ईदगाह मैदान जाने की कोशिश के लिए उमा भारती के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दायर भी किया गया। हालांकि, बाद में मामले को रफा दफा कर दिया गया। भाजपा की ओर से ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने का वह छठी बार कोशिश थी। उधर, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

Avatar Written by: August 31, 2022 2:06 pm

नई दिल्ली। कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद हुबली ईदगाह मैदान में आज गणपति स्थापना की गई है। देर रात चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने गणेश उत्सव पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। जिसके बाद अब ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव पूरे धूमधाम से मनाया जाएगा। वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद लोगों में गणेश उत्सव की धूम देखने को मिल रही है। बता दें कि हुबली का ईदगाह मैदान को लेकर जमकर सियासत भी हो रही है। ईदगाह मैदान को लेकर सियासी दंगल भी देखने को मिल रहा है। एक ओर जहां मुस्लिम संगठन और कांग्रेस पार्टी सियासी अखाड़े में है। वहीं दूसरी ओर संघ और भाजपा है। दोनों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। हुबली का ईदगाह मैदान का इतिहास बहुत पुराना है। ज्ञात हो कि साल 1991 में रथयात्रा और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहाने के बाद आरएसएस और भाजपा ने हुबली ईदगाह मैदान पर अंजुमन-ए-इस्लाम के दावे के खिलाफ झंडा बुलंद करने के लिए अपनी कमर कस ली थी।

जहां साल 1992 में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लाल चौक पर भारतीय ध्वज फहराया था। वहीं ईदगाह मैदान में भी ऐसा ही प्रोग्राम रखा गया था। इस कार्यक्रम का आयोजन संघ परिवार के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने किया था। लेकिन उस वक्त हुबली के ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने वाले राष्ट्रभक्तों पर प्रशासन ने ऐसा करने से रोक दिया। इसके बाद फिर साल 1994 में भाजपा नेता उमा भारती ने भी ईदगाह मैदान पर तिरंगा फहराने की कोशिश की। जिसको लेकर उनका खूब विरोध भी किया। पुलिस ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराने  वाले लोगों पर गोलियां चलवा दीं। जिसमें 05 लोगों की मौत हो गई।

इस घटना के बाद कर्नाटक में भाजपा एक्टिव हो गई और अपने लिए राजनीतिक पैठ बनाने में जुट गई। 15 अगस्त के मौके पर भी हुबली ईदगाह मैदान में भारतीय ध्वज नहीं फहराने देने की अंजुमन-ए-इस्लाम की जिद्द ने भाजपा को सुनहरे अवसर दे दिया। कर्नाटक में अनंत कुमार भाजपा के लिए बड़ी रणनीतिकार के तौर पर उभरे। उस वक्त अनंत कुमार राज्य में भाजपा के महासचिव हुआ करते थे। हुबली उनका निवास स्थान था। इसके अलावा अहम बात ये भी है कि वो लाल कृष्ण आडवाणी के काफी नजदीकी थी।

वहीं इस घटना ने राज्य में कांग्रेस के लिए मुसीबत पैदा कर दी। कांग्रेस को डर सताने लगा कि प्रदेश में उनको लोगों के गुस्से का शिकार ना होना पड़े। इसके चलते साल 1990 में राजीव गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को सीएम पद की कुर्सी से हटा दिया। हालांकि उन्हें हटाने के बाद कांग्रेस के सामने और चुनौतियां उभर कर सामने आने लगी। सीएम से वीरेंद्र पाटिल को हटाए जाने के बाद लिंगायत समुदाय में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश देखने को मिला। वहीं भाजपा ने इस मौके को अवसर में बदलने का काम किया। अनंत कुमार ने कांग्रेस से खफा चल रहे लिंगायतों को भाजपा की ओर रिझाने का काम किया।

साल 1994 में कांग्रेस के वीरप्पा मोइली कर्नाटक के सीएम थे। वहीं ईदगाह मैदान में हुई हिंसा को लेकर अनंत कुमार ने ‘मोइली हटाओ’ अभियान छेड़ा। इस अभियान को दिग्गज नेता आडवाणी की भी ताकत मिली। भाजपा की यह रणनीति सफल हो गई। जिसका नतीया ये रहा कि 1994 के कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहली बार बड़ी कामयाबी हाथ लगी। भाजपा ने पांच साल पहले 4 सीट जीतकर कर्नाटक विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई थी। लेकिन इस बार भाजपी की सीटें 10 गुना हो गईं। 40 सीटों पर भगवा लहराने के बाद अनंत कुमार ने उत्तरी कर्नाटक में हिंदुओं को अपनी ओर एकजुट करने पर जोर दिया। जिसका नतीजा हुआ कि आज तक उत्तरी कर्नाटक में  पर पार्टी का परचम लहरा रहा है। बीते चुनाव में भाजपा को प्रदेश में 36.2 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। कांग्रेस 38% वोट पाकर टॉप में रही थी।

साल 1994 में कर्फ्यू तोड़कर हुबली के ईदगाह मैदान जाने की कोशिश के लिए उमा भारती के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दायर भी किया गया। हालांकि, बाद में मामले को रफा दफा कर दिया गया। भाजपा की ओर से ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने का वह छठी बार कोशिश थी। उधर, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट में उसका केस चला था कि ईदगाह मैदान पर असली अधिकार किसका होगा। लेकिन,भाजपा की तरफ से 15 अगस्त 1994 को तिरंगा फहराने की योजना बनाई। इससे पहले 14 अगस्त को हुबली में कर्फ्यू लगा दिया गया। हुबली में कोई बवाल ना हो इसके लिए राज्य सरकार ने पुलिस के साथ RAF के जवानों की तैनात कर दी गई। उसके वक्त के सीएम मोइली ने बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना का जिक्र करते यह तक कह दिया था कि मैं कल्याण सिंह नहीं हूं जो अपनी आंखें बंद कर लूं और हिंसा होने दूं।

उधर, बेंगलुरु से भाजपा नेता सिकंदर बख्त को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उमा भारती किसी तरह से  हुबली पहुंच गईं। 15 अगस्त, 1994 को भाजपा कार्यकर्ताओं ने ईदगाह मैदान की ओर रूख किया जिसके बाद हिंसा भड़क गई। प्रदेश भाजपा के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा, उमा भारती को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद भीड़ में उग्र हो गई। पुलिस ने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। पुलिस की गोलियों से पांच लोगों की मृत्यु हो गई। जिसके बाद भाजपा कर्नाटक की मोइली सरकार के खिलाफ हमलावार हो गई और कुछ दिन बाद भाजपा ने पूरे हुबली में मोइली हटाओ मुहिम छेड़ दी। इसके बाद भी पुलिस ने बेवजह फायरिंग शुरू कर दी और जिसमें एक महिला मारी गई। इस वारदात से लोगों में मोइली सरकार के खिलाफ आक्रोश था और उनकी इमेज खराब होने लगी। इस घटना से मुख्यमंत्री मोइली इतना तिलमिला गए कि उन्होंने धमकी दे डाली था कि अगर हिंसा हुई तो आरोपियों पर टाडा के तहत मुकदमा दर्ज करने की बात कह डाली।

हालांकि, देखते ही देखते हुबली की आग भद्रावती तक जा पहुंची और वहां सांप्रदायिक माहौल पैदा हो गया। तभी आडवाणी ने कहा था कि, ‘वीरप्पा मोइली का  भविष्य उसी समय पता चल गया जब उनकी सरकार ने हुबली में बेगुनाह लोगों पर गोलियां चलवाईं।’ आपको बता दें कि कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इस वक्त राज्य में भाजपा की सरकार है। बीते कुछ महीनों पहले बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद की कुर्सी से हटाकर बासवराज बोम्मई को विराजमान किया था।