अपनी कुर्सी बचाने के लिए उद्धव ठाकरे ने किया पीएम मोदी को फोन, जानिए क्या कहा

उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम हैं। हालांकि, वह विधानमंडल के सदस्य नहीं हैं। उद्धव ठाकरे का विधानमंडल का सदस्य ना होना ही उनकी सरकार के खतरा बन गया है।

Avatar Written by: April 30, 2020 12:54 pm
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मुंबई। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम हैं। हालांकि, वह विधानमंडल के सदस्य नहीं हैं। उद्धव ठाकरे का विधानमंडल का सदस्य ना होना ही उनकी सरकार के खतरा बन गया है। 28 मई तक अगर उद्धव ठाकरे विधानमंडल के सदस्य नहीं बनते हैं तो उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ेगा।

Uddhav thackrey

उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के लिए राज्य की कैबिनेट ने राज्यपाल से अपील की। अब सबकुछ राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के हाथ में है। यहां भगत सिंह कोश्यारी जेबी वीटो का इस्तेमाल करते दिख रहे हैं। इस वीटो के तहत गवर्नर प्रस्ताव को अपने पास लंबित रखते हैं और उसपर कोई जवाब नहीं देते हैं।

गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की ओर से कोई जवाब मिलता ना देखकर उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात की है। उद्धव ने पीएम मोदी से अनुरोध किया है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करके इसे जल्द से जल्द हल कराने का प्रयास करें। महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार का तर्क है कोरोना के इस संकट के समय उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकार पर कोई संकट ना आए।

कैबिनेट ने भी गवर्नर को भेजा प्रस्ताव

उद्धव ठाकरे की निगाहें अप्रैल महीने में होने वाले विधान परिषद चुनाव पर थीं। कोरोना के कारण सभी प्रकार के चुनाव स्थगित कर दिए गए। ऐसे में वह उनके पास विधानमंडल का सदस्य बनने के लिए राज्य के मनोनयन वाली सीट ही बची है। इसी संदर्भ में कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार की कैबिनेट ने बैठक की। अजित पवार की इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि गवर्नर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए मनोनीत कर दें।

कैबिनेट के इस प्रस्ताव पर गवर्नर की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। गवर्नर के इस रुख से महा विकास अघाड़ी सरकार की बेचैनी बढ़ रही है। यही कारण था कि मंगलवार को गठबंधन के कई नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने पहुंच गए। गठबंधन नेताओं ने राज्यपाल से अपील की कि वह उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने के प्रस्ताव पर जल्द फैसला लें।

ओवर कॉन्फिडेंस या बड़ी चूक?

जनवरी 2020 में विधान परिषद की दो सीटों के लिए चुनाव भी हुए लेकिन उद्धव ठाकरे ने चुनाव नहीं लड़ा। 24 मार्च को विधान परिषद की धुले नांदुरबार सीट पर उपचुनाव होना था। 24 अप्रैल को विधान परिषद की 9 और सीटें खाली हो गई हैं। उद्धव ठाकरे ने उम्मीद लगाई थी कि वह इनमें से किसी एक सीट से चुनाव जीत जाएंगे और मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इसी बीच कोरोना वायरस ने सारी गणित बिगाड़ दी है। इन 10 सीटों पर चुनाव टाल दिए गए हैं।

हाई कोर्ट तक पहुंच गया मामला

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में रामकृष्ण उर्फ राजेश पिल्लई नाम के शख्स ने याचिका दायर की थी। इस याचिका में मांग की गई कि उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने संबंधी महाराष्ट्र कैबिनेट के प्रस्ताव पर रोक लगाई जाए। याचिकाकर्ता का तर्क था कि इस बैठक में मुख्यमंत्री खुद मौजूद नहीं थे इसलिए यह प्रस्ताव गैरकानूनी है। हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल को इसपर सुनवाई और स्टे देने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि इसकी वैधानिकता तय करने का अधिकारी राज्यपाल का है।

bhagat singh koshyari

क्या कहते हैं कानून के जानकार?

लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचार्य का कहना है कि राज्यपाल के पास कैबिनेट के प्रस्ताव को मानने के अलावा कोई दूसरी विकल्प नहीं है। वह इस प्रस्ताव को मानने के लिए बाध्य हैं। हालांकि, गवर्नर अगर इस मीटिंग की संवैधानिकता पर ही सवाल उठाते हैं तो उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल हो सकती है। दूसरी तरफ जेबी वीटो ऐसी पावर है, जिसके लिए वह किसी के भी प्रति जवाबदेह नहीं हैं।

क्या है जेबी या जेबी वीटो?

राज्यपाल या देश के राष्ट्रपति को तीन तरह के वीटो पावर मिले होते हैं। इनका इस्तेमाल वह अपने विवेक के आधार पर करते हैं। जेबी वीटो के तहत गवर्नर किसी भी प्रस्ताव का बिल को अपने पास अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं। वह प्रस्वाव को ना स्वीकार करते हैं और ना ही उसे रद्द करते हैं। भारतीय संविधान में इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। 1986 में देश के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने जेबी वीटो का इस्तेमाल करके ही पोस्ट ऑफिस बिल को रोक दिया था।