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Ningappa Genannavar: पिता मजदूर, रहने को घर नहीं, अब बेटा लाया गोल्ड मेडल, जानिए मजदूर परिवार की मजबूत कहानी

Ningappa Genannavar: बता दें कि निंग्पपा के पिता की सालाना आय लगभग 90,000 रुपये है और उन्होंने अपने बेटे को सोनीपत भेजने के लिए 8,000 रुपये का लोन लिया था। अब निंग्पपा का सपना है कि एक दिन उनका भी अपना घर हो।

नई दिल्ली। कहते हैं कि “जो कमजोर होते हैं, वहीं किस्मत का रोना रोते हैं। जिसे उगना होता है, वो तो पथ्थर का सीना चीर कर भी उगता ही है।” इन्हीं पग्तियों को साक्षात्तकार करते हुए आज हम 17 साल के कर्नाटक निवासी निंग्प्पा गेन्नावर की कहानी आपके सामने रखने जा रहे हैं। असल जिंदगी की इस कहानी में आपको त्याग, परिश्रम, मेहनत, लगन और कभी हार ना मानने वाली सोच नजर आएगी। दरअसल, किर्गिस्तान के बिश्केक में अंडर- 17 और अंडर- 23 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। इसमें भारत ने चार गोल्ड मेडल, दो सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल को अपने नाम कर अंडर- 19 ट्राफी पर कब्जा कर लिया। भारत कि इस उपलब्दि में जो सबसे खास पहलू रहा वो था, 17 साल के निंगप्पा गेन्नावर का गोल्ड मेडल जीतना। निंगप्पा का गोल्ड मेडल जीतना इसलिए भी खास था, क्योंकि इस मैडल को पाने के लिए जितनी हिम्मत, जीतने की जिद और इतिहास बनाने का जज्बा निंगप्पा गेन्नावर और उनके परिवार ने दिखाया है, दरअसल ऐसा करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। निंगप्पा के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और उनके पास रहने तक के लिए अपना मकान नहीं है। ऐसी कठीन परिस्थितियों के बाद भी कर्नाटक का कोई पहलवान पहली बार कॉन्टिनेंटल चैंपियनशिप के पोडियम की टॉप पोजीशन पर पहुंचा है।

मजदूर की तरह मजबूत था परिवार का सपना

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि निंग्प्पा के पिता रमेंश एक दिहाड़ी मजदूर हैं और उनका सपना भी मजदूर की तरह ही बेहद मजबूत था। निंग्प्पा के पिता का सपना था कि उनका बेटा एक पहलवान बनेगा। हांलाकि परिवार के पास रहने के लिए अपना घर नहीं था। शाम के खाने के लिए भी परिवार को कड़ा संघर्ष करना पड़ता था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि “जब वह पहली बार निंगप्पा गेन्नावर को लेकर व्यायामशाला गए थे तो निंगप्पा को बहुत कमजोर और कम वजन के होने के कारण वापस भेज दिया गया था”। लेकिन इससे निंग्प्पा के परिवार का हौसला नहीं टूटा। कुछ दिनों बाद उन्होंने निंग्पपा ने पहलवानों से ट्रेनिंग लेना शुरु किया। ये तब की बातें हैं जब निंग्पपा 10 साल के थे। इसी दौरान उस पर कुमाकाले नाम के व्यक्ति की नजर पड़ी और उन्होंने उसे अपनी एकेडमी में शामिल कर दिया। बता दें कि कुमाकाले राष्ट्रीय स्तर के पूर्व पहलवान हैं। निंग्पपा को पहलवानी की ट्रेनिंग लेने के लिए साइकिल से 4 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।

 

इसके बाद निंग्पपा के लिए देवदूत बन कर सामने आए कुमाकाले ने इस खिलाड़ी को निखारा और एक अच्छा पहलवान बनाया।

गोल्ड मेडल जीतने से पहले भी किर्गिस्तान में गोल्ड मेडल जीतने से पहले 2019 में निंग्पपा ने राजस्थान के कोटा में अंडर -15 राष्ट्रीय चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

बता दें कि निंग्पपा के पिता की सालाना आय लगभग 90,000 रुपये है और उन्होंने अपने बेटे को सोनीपत भेजने के लिए 8,000 रुपये का लोन लिया था। अब निंग्पपा का सपना है कि एक दिन उनका भी अपना घर हो।