अध्यापक

‘शिक्षा’ न केवल एक अनुशासन है बल्कि इसके दो विशिष्ट स्वरूप हैं। एक स्वरूप इसका उदार पक्ष है जो समाज-विज्ञान के किसी भी विषय की तरह पढ़ा एवं समझा जाता है।