पीएफआई पर बैन

केंद्र सरकार ने बीते कल यानी बुधवार को पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर 5 साल के बैन का एलान किया था। बैन लगाने से पहले केंद्रीय जांच एजेंसियों ने 22 और 27 सितंबर को पीएफआई के बड़े नेताओं और ठिकानों पर जबरदस्त छापेमारी की थी। इस छापेमारी से पता चला था कि पीएफआई पीएम नरेंद्र मोदी को भी निशाना बनाने वाला था।

शफीकुर्रहमान बर्क अपने सांप्रदायिक बयानों के लिए पहचाने जाते हैं। पीएफआई पर जब 22 सितंबर को बड़े पैमाने पर छापे पड़े थे, तब भी उन्होंने इसका विरोध किया था। बर्क ने इससे पहले भी तमाम विवादित बयान दिए हैं। बर्क ऐसे सांसद हैं, जो लोकसभा में वंदे मातरम के गायन के वक्त उठकर चले गए थे। इस वजह से भी वो विवादों में घिरे थे।

केंद्र सरकार ने पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर बैन लगाया है। पीएफआई के अलावा जिन और संगठनों को बैन में रखा है, उनमें ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन, नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल वीमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन शामिल हैं।

कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया PFI पर 5 साल का बैन केंद्र सरकार ने लगाया है। इसका बीजेपी के नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों ने स्वागत किया है। वहीं, इस बैन के बाद विपक्षी कांग्रेस की तरफ से आरएसएस पर बैन लगाने की मांग भी उठ रही है। कांग्रेस के इस बयान पर अब सियासत गरमाने के पूरे आसार दिख रहे हैं।

साल 2006 में स्थापना से लेकर अब तक हिंसा और देशविरोधी गतिविधियों में जुटे रहे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया PFI और उसके सहयोगी संगठनों पर आखिरकार केंद्र सरकार ने 5 साल का बैन लगा दिया है। इस बैन से पहले पीएफआई के नेताओं, उनके इरादों और भारत के टुकड़े करने की साजिश का भंडाफोड़ करने की खातिर लगातार छापेमारी की गई।

प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी के लोग भी इस संगठन में रहे। सिमी का राष्ट्रीय सचिव रहा अब्दुल रहमान पीएफआई का अध्यक्ष भी रहा है। अब्दुल हमीद नाम का राज्य सचिव भी सिमी का सचिव था। पीएफआई की स्थापना करने वालों में शामिल ईएम रहिमन, ई. अबुबकर और पी. कोया भी सिमी से जुड़े रहे थे। इसने 2009 में अपनी राजनीतिक शाखा डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) बनाई। फिर कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) बनाकर युवाओं और छात्रों को जोड़ने की कोशिश की।