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गंभीर हो जाएं अभिभावक, बच्चों को कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा: अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों को कोविड-19 से गंभीर जटिलताओं का पूर्व के अनुमान से कहीं ज्यादा खतरा है।

नई दिल्ली। कोरोनावायरस का असर हर उम्र के लोगों पर पड़ रहा है। इस महामारी की चपेट में हालांकि बुजुर्गों के आने का बहुत ज्यादा खतरा है लेकिन सिर्फ बुजुर्ग ही इससे पीड़ित नहीं हो रहे हैं। जवानों पर भी इसका घातक असर दिख रहा है। लेकिन बच्चों पर इसके असर को लेकर कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि अलग अलग अध्ययन में अलग अलग तरह की बातें सामने आई हैं।

Corona Child

एक अध्ययन के मुताबिक बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों को कोविड-19 से गंभीर जटिलताओं का पूर्व के अनुमान से कहीं ज्यादा खतरा है। इस अध्ययन में कहा गया है कि जिन लोगों को पहले से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं उनके लिये जोखिम कहीं ज्यादा है। अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय से आने वाली इस अध्ययन के सह लेखक लॉरेंस क्लेनमेन ने कहा, “यह विचार कि कोविड-19 युवा लोगों को बख्श दे रहा है गलत है।”

जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक जिन बच्चों में मोटापे जैसी अन्य बीमारियां हैं उनके बहुत बीमार पड़ने की ज्यादा आशंका है। क्लेनमेन ने चेताया, “यह जानना भी महत्वपूर्ण हैं कि जिन बच्चों को गंभीर बीमारी नहीं है उनके लिये भी जोखिम है। अभिभावकों के वायरस को गंभीरता से लेने की जरूरत है।” अध्ययन में पहली बार उत्तर अमेरिका में गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के बाल रोगियों के लक्षणों के बारे में बताया गया है।

शोध में वैज्ञानिकों ने बच्चों और युवा वयस्कों-नवजात मिलाकर 48 लोगों पर अध्ययन किया जो अमेरिका और कनाडा में कोविड-19 के कारण मार्च और अप्रैल में बच्चों के आईसीयू (पीआईसीयू) में भर्ती किये गए थे। अध्ययन में पाया गया कि 80 प्रतिशत बच्चे पूर्व में गंभीर स्थितियों जैसे प्रतिरक्षा तंत्र की कमजोरी, मोटापे, मधुमेह, दौरे आना या फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त थे।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इन बच्चों में से 40 प्रतिशत विकास में देरी या आनुवांशिक विसंगतियों के कारण तकनीकि सहायता पर निर्भर थे। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण 20 प्रतिशत से ज्यादा के दो या ज्यादा अंगों ने काम करना बंद कर दिया और करीब 40 फीसदी को सांस की नली या जीवन रक्षक प्रणाली पर रखने की जरूरत पड़ी। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में कहा कि निगरानी काल के खत्म होने पर करीब 33 प्रतिशत बच्चे कोविड-19 की वजह से अस्पताल में ही थे।

उन्होंने कहा कि तीन बच्चों को वेंटिलेटर की जरूरत थी जबकि एक को जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था। अध्ययन में यह भी कहा गया कि तीन हफ्ते के अध्ययन काल की अवधि के दौरान दो बच्चों की मौत भी हो गई। रॉबर्ट वुड जॉनसन मेडिकल स्कूल के बाल रोग विभाग में पीआईसीयू से संबद्ध और अध्ययन में शामिल हरिप्रेम राजशेखर ने कहा, “यह अध्ययन कोविड-19 के बाल रोगियों पर शुरुआती प्रभाव की जानकारी देने के लिये आधारभूत समझ उपलब्ध कराता है।”

कोविड-19 की वजह से आईसीयू में भर्ती वयस्कों के बीच मृत्युदर जहां 62 प्रतिशत रही वहीं अध्ययन में पाया गया कि पीआईसीयू मरीजों में यह 4.2 प्रतिशत थी। क्लेनमेन के मुताबिक चिकित्सक बच्चों में कोविड-संबंधी एक नया सिंड्रोम भी देख रहे हैं। पूर्व की रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कोविड-19 से ग्रस्त बच्चों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा है और इस स्थिति को पीडियाट्रिक मल्टी-सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम करार दिया।