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कोरोना का वैक्सीन बनाने की रेस में चीन आना चाहता है अव्वल, ऐसी कंपनियों को दे दी टेस्टिंग की अनुमति

चीन ने अपने लोगों को बीमारी से बचाने और अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचने के लिए ड्रग कंपनियों को तबाड़तोड़ संसाधन मुहैया करा दिए हैं। ताकि वे जल्द से जल्द से वैक्सीन बना सकें।

बीजिंग। दुनिया के कई देश कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। लेकिन अबतक इस महामारी को खत्म करने वाली वैक्सीन बनने के सिर्फ दावे सामने आए हैं। ह्यूमन ट्रायल कहीं पर पूरी तरह से सफल नहीं हुआ है। बेशक दुनिया इसका इलाज ढूंढ रही है मगर चीन सभी देशों से पहले वैक्सीन बनाने की होड़ में है। चीन अपने लोगों को बीमारी से बचाने और अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचने के लिए ड्रग कंपनियों को तबाड़तोड़ संसाधन मुहैया करा दिए हैं। ताकि वे जल्द से जल्द से वैक्सीन बना सकें। 4 कंपनियों ने इंसानों पर टेस्टिंग की शुरुआत भी कर दी है। यह संख्या अमेरिका और ब्रिटेन के संयुक्त से भी ज्यादा है।

Coronavirus outbreak in China

हालांकि चीन में टेस्टिंग कर रहीं कंपनियां खराब क्वालिटी और दूसरे विवादों के कारण स्कैंडल में फंस चुकी हैं। महज दो साल पहले देश में कई पैरेंट्स अपने बच्चों को गलत टीका दिए जाने पर भड़क गए थे। चीन ने वैक्सीन निर्माण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बना दिया है। हालांकि इसपर होने वाले खर्च की कोई जानकारी नहीं है। एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक, एमरजेंसी के लिए वैक्सीन सितंबर तक तैयार हो जाएगी।

चीन के लोगों को अपने देश की वैक्सीन पर भरोसा नहीं

चीन के लिए वैक्सीन बनाने से ज्यादा जरूरी अपने लोगों के बीच विश्वास जीतना है। यहां लोग चीन से ज्यादा विदेशी वैक्सीन पर भरोसा करेंगे। चीन में गेट्स फाउंडेशन के रे यिप बताते हैं कि चीन वासियों को अपने देश में बनने वाली वैक्सीन पर भरोसा नहीं है। यह बात आगे सबसे बड़ा सिरदर्द होने वाला है। अगर यह घटनाएं नहीं हुईं होती, तो लोग इसे लेने के लिए मीलों लंबी लाइन लगा लेते।’

Oxford University Corona Vaccine

चीनी कंपनियां गलतियां छिपाने की आदि हो चुकी हैं

चीन की वैक्सीन निर्माता कंपनियां स्कैंडल छिपाने के अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करने की आदि हो चुकी हैं। कुछ कंपनियों ने रिसर्च और डेवलपमेंट पर बड़ा खर्च किया है। हालांकि उन्होंने अब तक ग्लोबल इंपेक्ट वाला कोई प्रोडक्ट तैयार नहीं किया है। वहीं, कुछ ने बिक्री और वितरण में ज्यादा निवेश किया है। इसमें से एक बड़े हिस्से में लोकल डिसीज कंट्रोल सेंटर्स शामिल हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इससे करप्शन को प्रोत्साहन मिलता है।

चीन में वैक्सीन इंडस्ट्री का 40 फीसदी स्टेक फर्म्स से आता है। यहां रेग्युलेटर्स इन फर्मों के लिए अलग जरिए देख रहे हैं। कई वैक्सीन निर्माता माफी की उम्मीद से काम करते हैं। उन्हें पता है कि अगर वे गलत और खराब प्रोडक्ट बनाएंगे तो भी उन्हें बंद नहीं किया जाएगा।

वैक्सीन निर्माता कंपनियां और उनके विवाद

तियानजिन स्थित कैनसिनो बायोलॉजिक्स पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का मेडिकल हिस्सा है। यह फेज 2 ट्रायल में पहुंचने वाली पहली कंपनी थी। टेस्टिंग के लिहाज से कैनसिनो बायोलॉजिक्स दुनिया की दूसरी कंपनियों से आगे है। हालांकि इसके प्रभावी होने की कोई गारंटी नहीं है।

राज्य की सिनोफार्म ग्रुप का हिस्सा वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स भी टेस्टिंग के दूसरे फेज में है। वुहान इंस्टीट्यूट 2018 में हुए डिप्थेरिया, टिटनस, काली खांसी और दूसरी परेशानियों के खराब वैक्सीन बनाने के स्कैंडल में शामिल थी। इस कंपनी के वैक्सीन लाखों बच्चों को दिए गए थे। सरकार ने कंपनी की पूरी अवैध कमाई जब्त कर ली थी और 9 अधिकारियों को सजा दी गई थी।

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वुहान इंस्टीट्यूट के खिलाफ अब तक दो बार मुकदमा किया जा चुका है। कोर्ट के कागजों के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाए थे कि कंपनी की वैक्सीन से अजीब प्रभाव हो रहे हैं। दोनों मामलों में कोर्ट ने वुहान इंस्टीट्यूट को 71500 डॉलर (भारतीय करंसी के अनुसार करीब 54 लाख रुपए) पीड़ितों को देने के आदेश दिए। कंपनी के अधिकारियों पर वैक्सीन खरीदने के लिए लोकल हेल्थ अथॉरिटीज को रिश्वत देने के आरोप लग चुके हैं। वे दोषी भी ठहराए गए। हालांकि कंपनी के खिलाफ कोई अपराध दर्ज नहीं हुआ।

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कोर्ट डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक सिनोवेक बायोटेक भी रिश्वतखोरी के मामले में शामिल रह चुकी है। बीजिंग के एक कोर्ट ने कहा कि कंपनी के जनरल मैनेजर ने ड्रग एवेलुएशन के इंचार्ज चीन के डिप्टी डायरेक्टर को लगभग 50 हजार डॉलर की रिश्वत दी है। यहां भी सिनोवेक पर आरोप नहीं लगे।

वैज्ञानिकों ने ट्रायल्स की अनुमति दिए जाने पर उठाए सवाल

कंपनियों को दूसरे फेज के ट्रायल्स की अनुमति दिए जाने पर एक्सपर्ट्स ने सवाल उठाए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, दूसरे फेज की शुरुआत से पहले, पहले फेज का आकलन किया जाना चाहिए। बीजिंग में शिंघुआ यूनिवर्सिटी में फार्मेसी स्कूल के डीन डिंग शेंग बताते हैं कि कंपनियां असामान्य तरीके अपना रही हैं। मुझे पता है कि लोग वैक्सीन के लिए बेसब्र हैं, लेकिन वैज्ञानिक नजरिए से हम कितने ही घबराए हुए हों, लेकिन स्तर नहीं गिरा सकते।

वैक्सीन टेस्टिंग के लिए कई छात्रों ने भरी है हामी

वुहान में रहने वाली 18 साल की मेडिकल स्टूडेंट हुआंग शियुए ने टेस्टिंग के लिए हामी भर दी है। हुआंग के मुताबिक अगर एक कदम से मैं लोगों की मदद कर सकती हूं तो यह बहुत ही सार्थक होगा। वैक्सीन के करीब 15 मिनट बाद हुआंग की तबियत बिगड़ने लगी। उन्हें चक्कर आने लगे, पेट में दर्द और धड़कने बढ़ गईं, दस्त लग गए। हालांकि उन्होंने यह साफ किया कि वे घर पहुंचकर ठीक हो गईं थीं।

कॉलेज छात्र शी जीबो भी 12 अप्रैल को टेस्टिंग में शामिल हुए। चौथे दिन उन्हें हल्का बुखार आया और कोई साइड इफेक्ट्स महसूस नहीं हुए। शी ने कहा कि जब मुझे कॉल आया, तब मुझे गर्व महसूस हुआ। इस जीवन में दूसरों के लिए योगदान देने के लिए मेरे पास और मौके नहीं थे। इसलिए मुझे कभी पछतावा नहीं होगा, फाइनल रिजल्ट जो भी आए। गौरतलब है कि चीन के अंदर ही सरकार के फैसलों को लेकर और काम करने के तरीके को लेकर गुस्सा है। मगर सख्त कानूनों की वजह से लोग खुलकर विरोध नहीं जता सकते हैं।