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वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी, अब इन किरणों की मदद से खून के अंदर खत्म हो जाएगा कोरोना!

कोरोनावायरस पर काबू पाने के प्रयास में दिन रात वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। पूरी दुनिया इस महामारी की चपेट में है।

नई दिल्ली। कोरोनावायरस पर काबू पाने के प्रयास में दिन रात वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। पूरी दुनिया इस महामारी की चपेट में हैं। अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं, अब अगर जल्द ही इसका कोई इलाज नहीं मिला तो प्रगतिशील देश बुरी हालत में दिखाई देंगे। लेकिन अब कोरोना वायरस के इलाज से संबंधित एक अच्‍छी खबर आई है।

France Corona pic

दरअसल अनुसंधानकर्ताओं ने एक स्टडी के जरिए यह दिखाया है कि कोरोना वायरस को विटामिन रिबोफ्लेविन और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाया जाए तो ये मानव प्लाज्मा और रक्त उत्पादों (इंसान के खून से बनने वाले उपचारात्मक पदार्थ जैसे रेड ब्लड सेल, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा इत्यादि) में वायरस की मात्रा को कम करते हैं। यह एक ऐसी उपलब्धि है जिससे खून चढ़ाए जाने के दौरान वायरस के प्रसार की आशंका को घटाने में मदद मिलेगी।

 

हालांकि, अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह अब भी पता नहीं चल सका है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस या सार्स-CoV-2 खून चढ़ाए जाने से फैलता है या नहीं।

Oxford University Corona Vaccine

स्टडी में वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा के नौ और तीन रक्त उत्पादों के उपचार के लिए मिरासोल पैथोजन रिडक्शन टेक्नोलॉजी सिस्टम नाम का एक  उपकरण विकसित किया है। स्टडी की सह-लेखिका इजाबेला रगान ने कहा, “हमने वायरस की बड़ी मात्रा को घटाया और इलाज के बाद हमें वायरस नहीं मिला।”

NCP patients Plasma

सीएसयू से स्टडी के वरिष्ठ लेखक रे गुडरिच द्वारा आविष्कृत यह उपकरण रक्त उत्पाद या प्लाज्मा को पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाकर काम करता है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह उपकरण 1980 के दशक में उस वक्‍त मददगार बना जब एचआईवी खून और रक्त उत्पादों के जरिए फैल गया था। हालांकि, गुडरिच ने कहा कि फिलहाल मिरासोल का इस्तेमाल केवल अमेरिका से बाहर खासकर यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में स्वीकृत है। यह स्टडी ‘पीएलओएस वन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।