मॉस्को। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को प्रारंभ हुए 9 महीने से अधिक समय बीत चुका है। लेकिन दोनों में से कोई भी देश पीछे हटने को तैयार नहीं है। एक तरफ यूक्रेन है रूस के आगे घुटने टेकने को राजी नहीं है तो वहीं रूस है यूक्रेन को झुकाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। अभी कुछ दिनों पहले क्रीमिया ब्रिज हुए हमले के बाद रूस नए सिरे से यूक्रेन में हमला करना शुरू कर चुका है, हमले कि इसी कड़ी में कुछ दिन पहले रूस ने यूक्रेन के ऊपर 75 मिसाइलें दागी थी। यूक्रेन के खिलाफ नई प्लानिंग के तहत रूस अब अमेरिका में ट्रेनिंग कर चुके अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्स के सैनिकों को अपनी सेना में शामिल कर रहा है। इसके लिए उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं। रूस इन सैनिकों को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में भेजेगा। मामले के जानकार मानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से युद्ध में यूक्रेन ही नहीं रूसी सैनिक भी बड़े पैमाने पर मारे गए। रूस में नौजवानों को जबरन सेना में भर्ती किया जा रहा है। हाल यह है कि रूसी लोग चुपके-चुपके देश भी छोड़ रहे हैं।
आपको बता दें कि तीन पूर्व अफगान जनरलों ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि रूसी सरकार अफगान कमांडो को अपनी सेना में शामिल करने के लिए कई तरह के प्रलोभन दे रहा है। इसमें बढिया सैलरी और उनकी और परिवार की सुरक्षा भी शामिल है जो तालिबान शासित अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को देखते हुए रूस की एक बड़ी चाल अफगानिस्तान की सैनिकों के लिए मौका हो सकती है।
वहीं इस बारे में बात करते हुए तीनों में से एक पूर्व जनरल अब्दुल रावफ अरघंडीवाल ने बताया, “वे लड़ाई नहीं करना चाहते हैं – लेकिन उनके पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है। ईरान में दर्जन या उससे कुछ अधिक कमांडो छिपे बैठे हैं जो तालिबान शासन के बाद अफगानिस्तान छोड़कर भाग गए थे लेकिन अभी भी उनके परिवारवाले अफगानिस्तान में फंसे हैं।” इस बारे में अधिक बात करते हुए अब्दुल कहते हैं, “वे मुझसे पूछते हैं, ‘मुझे कोई समाधान दें? क्या करे? अगर हम वापस अफगानिस्तान गए तो तालिबान हमें मार डालेगा।” गौरतलब है कि तालिबान का शासन अफगानिस्तान में आने के बाद दुनिया कोई उम्मीद थी कि तालिबान पहले की तरह फिर से लोगों के ऊपर जुल्म करेगा, लेकिन तालिबान ने इस तरह की किसी संभावना को सिरे से नकार दिया था।
गौरतलब है कि इस भर्ती का नेतृत्व रूसी भाड़े के बल वैगनर ग्रुप ने किया था। तालिबान के सत्ता संभालने से पहले अंतिम अफगान सेना प्रमुख हिबतुल्लाह अलीजई ने बताया कि इस प्रयास में एक पूर्व अफगान विशेष बल कमांडर द्वारा भी मदद की जा रही थी जो रूस में रहता था और भाषा बोलता था। भर्ती के लिए अफगान सैनिकों को तरह-तरह के लालच दिए जा रहे हैं। जिसमें 1500 डॉलर प्रतिमाह सैलरी और परिवारवालों की सुरक्षा भी शामिल है। हो सकता है कि तालिबान शासन में फंसे हुए अफगान सैनिक रूस के प्रलोभन में आकर रूस की सेना को ज्वाइन कर लें।