नई दिल्ली। भगवान को प्रसन्न करने के लिए सिर्फ प्रेम और शुद्ध भाव की आवश्यकता होती है, न तो किसी विशेष सामग्री न विशेष दिन की आवश्यकता होती है। हम किसी भी दिन, किसी भी समय, किसी भी प्रकार से ईश्वर को मन से याद कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। भगवान शिव की बात करें, तो वो तो हैं ही भोले, वो तो बड़ी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन फिर भी सावन के सोमवार, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। ये दिन भगवान को खुश करने के लिए बहुत शुभ होते हैं। इसमें से ‘महाशिवरात्रि’ के त्योहार का शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिसे श्रद्धालु बड़े ही धूम-धाम से नाचते गाते हुए मनाते हैं। इस दिन लोग शिव-पार्वती की बारात भी निकालते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवरात्री और महाशिवरात्री दोनों में काफी अंतर है। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि अलग-अलग माह और दिन में पड़ती है। आइये आपको बताते हैं इन दोनों में क्या अंतर होता है…
शिवरात्रि साल के हर महीने की ‘कृष्ण पक्ष’ की ‘चतुर्दशी’ तिथि पर आती है, जबकि महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ता है। इस प्रकार से देखा जाए तो साल भर में 12 शिवरात्रि के पर्व पड़ते है। महाशिवरात्रि साल में 1 बार ही आती है और इस दिन भक्त शिव मंदिरों में ‘दीपस्तम्भ’ लगाते हैं। शिवभक्त महाशिवरात्री को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में तो मनाते ही हैं, साथ ही कहा जाता है कि इसी दिन भोलेनाथ ने अपने भक्तों को शिवलिंग के रूप में दर्शन भी दिए थे।
एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार सृष्टि के निर्माण के समय फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ब्रम्हा और भगवान विष्णु में उनकी श्रेष्ठता को लेकर बहस हो गई। ये विवाद चल ही रहा था कि एक विशाल अग्नि स्तंभ, जिसमें करोड़ों सूर्य की चमक समाई हुई थी, प्रकट हो गया, जिसे देखकर दोनों आश्चर्यचकित रह गए। इस अग्निस्तंभ से भगवान शंकर ने पहली बार शिवलिंग के रूप में दर्शन दिए। उसी दिन से फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव का प्रथम प्राकट्य ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में मनाया जाने लगा।