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जानें क्या है ‘वनस्पति तंत्र’, श्वेतार्क गणपति और (सफेदआक) से स्वर्ण निर्माण की विधि….

ganesh

नई दिल्ली। आज के आधुनिक भौतिक युग में कोई इस पर विश्वास करे न करे, किंतु इन रहस्यमयी विद्याओं का अस्तित्व जनमानस के मन-मस्तिष्क में सदैव ही रहा है। ऐसी ही एक रहस्यमयी, पर शंकाओं से भरी विद्या, तंत्र शास्त्र की कुछ पुरानी मान्यताएं हैं। यह कितने सफल हैं यह आप स्व-विवेक से निर्णय लेना।

श्वेतार्क गणपति और स्वर्ण निर्माण

एक सर्वाधिक रोचक और चमत्कारी प्रयोग है- स्वर्ण-निर्माण का।इसमें वृक्ष को नष्ट करने की बात नहीं है। प्रत्युत वृक्ष जितना ही पुराना और मोटा होगा क्रिया में आसानी होगी। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस क्रिया की व्यावहारिक कठिनाई है-यह एक दीर्घकालिक अनुष्ठान है। साधक के निज साधना बल के अनुसार पांच, सात, दस, या बारह वर्ष लग सकते हैं। सीधे कहें कि इस साधना में तैयारी से लेकर पूर्णता तक पहुंचने में जीवन ही खप जाने जैसी बात है। बहुत धैर्य की आवश्यकता है। साथ ही यह बहुत गुप्त और रहस्यमयी साधना है। आपकी थोड़ी असावधानी आपके दीर्घकालिक श्रम पर पानी फेर सकता है।


इस क्रिया के लिए प्रथम अनिवार्यता है कि कहीं से इसका बीज या गाछ उपल्बध करें, और अपनी गृह-वाटिका में स्थापित करें- इस बात का ध्यान रखते हुए कि इसके पास बैठ कर लंबी साधना करनी है। अतः भविष्य-विचार पूर्वक पौधा लगाने का स्थान चयन करें। पांच-सात वर्षों में क्रिया-योग्य पौधा तैयार हो जायेगा। वस्तुतः इस प्रयोग में मोटे तने की आवश्यकता है। तना जितना मोटा होगा, साधक के लिए उतना ही उपयोगी और लाभप्रद होगा। उचित होगा कि योजनावद्ध रुप से पौधे की स्थापना कर देखभाल करते रहें और इस बीच अपने कायिक शुद्धि के साथ अन्यान्य साधना करते रहें, या सामान्य जीवन- क्रिया-कलापों में गुजारें। पुत्र जन्म से लेकर कमाऊ बनने तक की प्रतीक्षा हर कोई करता है- और बड़े शौक और लगन से करता है।फिर इस चमत्कारी क्रिया के लिए प्रतीक्षा में क्या हर्ज? वैसे सच पूछा जाय तो इस लंबी साधना का परिणाम सांसारिक भोग साधना बहुल ही है। अतः इसके प्रति साधक को विशेष आकर्षित नहीं होना चाहिए। अन्य अल्पकालिक साधना-प्रयोगों से ही संतोष करना चाहिए।

पौधा कार्य-योग्य हो जाने पर रविपुष्य/गुरूपुष्य योग में प्राण-प्रतिष्ठा-विधि से प्रतिष्ठित कर यथा सम्भव पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें। भगवान गणपति के बारह प्रसिद्ध मंत्रो में स्वेच्छा से किसी मंत्र का चुनाव कर लें। उस चयनित मंत्र से ही पूजन करना है। पूजा के बाद एकाग्रचित होकर क्षमा याचना करें,और अपना अभिष्ट उन्हें स्पष्ट करें।

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