नई दिल्ली। मकर राशि में जब सूर्य का प्रवेश होता है तो उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को सेलिब्रेट होगी। 15 जनवरी को सूर्य सुबह 09 बजकर 23 मिनट पर प्रवेश करेगा। मकर संक्रांति को लेकर हमारे देश में अलग-अलग मान्यताएं है क्योंकि देश के अलग-अलग राज्यों में त्योहार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और सेलिब्रेशन का तरीका भी अलग होगा। मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड़, दही-चूड़ा और खिचड़ी खाना शुभ माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाना क्यों शुभ माना जाता है। तो चलिए आज हम आपको खिचड़ी और मकर संक्रांति में कनेक्शन बताते हैं।
खिचड़ी के बिना मकर संक्रांति अधूरी मानी जाती है, कुछ लोगों के यहां मकर संक्रांति के दिन चूल्हे पर तवा नहीं चढ़ता है। ऐसा क्यों…खिचड़ी में ऐसा क्या खास है। दरअसल खिचड़ी के चावल चंद्रमा और शुक्र ग्रह के प्रतीक होते हैं, जो उन्हें शांत करने में सहायक होते हैं, जबकि खिचड़ी में इस्तेमाल होने वाली काली दाल शनि और राहु-केतु का प्रतीक होती है। इस दिन काली दाल को दान करना शुभ माना जाता है। वहीं खिचड़ी में इस्तेमाल किया गया घी सूर्य का प्रतीक होता है। कई जगह पर गुड़ और तिल खाने का भी प्रावधान है। गुड़ का संबंध मंगल से होता है। कुल मिलाकर खिचड़ी का कनेक्शन हमारे नव ग्रहों से होता है, जो उन्हें और ज्यादा मजबूत करने का काम करते हैं।
खिचड़ी को लेकर एक कथा भी काफी फेमस है। माना जाता है कि बाबा गोरखनाथ कांगड़ा में ज्वाला देवी के दर पर पहुंचे थे और भोजन मांगा था। गोरखनाथ ने शर्त रखी थी कि वो भिक्षा में मिला अन्न ही ग्रहण करेंगे। अब ज्वाला देवी ने पात्र में पानी उबलने के लिए रख दिया और गोरखनाथ बाबा भिक्षा मांगने के लिए निकल गए। उधर राप्ती व रोहिणी नदी के संगम भिक्षा छोड़ अपनी साधना में लीन हो गए। अब बाबा को साधना में देख लोगों ने चावल, दाल, सब्जी दान में देना शुरू कर दिया। हालांकि बाबा का पात्र भरा नहीं..ये चमत्कार देखकर लोग भी हैरान हो गए। उसी दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा है। माना जाता है कि आज भी ज्वाला देवी के मंदिर में पानी उबल रहा है।