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मानसून और ज्योषित : बादलों की कुंडली है कह रही है टूटेंगे रिकॉर्ड, यह साल मौसम के असामान्य पैटर्न का है

बृहस्पति अतिचारी होकर बुध के साथ मिथुन राशि में स्थित है। यह बताता है कि मौसम का पैटर्न असामान्य हो सकता है। शनि जलतत्व राशि मीन में स्थित हैं और मंगल से दृष्ट हैं। यह अनियमित बारिश की ओर इशारा है।

Monsoon and Astrology

कृषि प्रधान इस देश के गांव-गांव में लोगों के मन- मस्तिष्क में ज्योतिष के मौलिक सिद्धांत रच-बस गए हैं। शादी-विवाह से लेकर गृह प्रवेश और हर शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त का चयन हमारे जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है। ऐसे में खेती-किसानी जैसा महत्वपूर्ण विषय अछूता कैसे रह सकता है। दो-तिहाई खेती के लिए बारिश और मानसून जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता इसकी महत्ता को और बढ़ा देता है। पिछले 10 वर्षों के ज्योतिष आंकड़ों पर गौर करे तो वर्षा संबंधित भविष्यवाणी बिल्कुल सटीक दिखती है।

आर्द्रा प्रवेश कुंडली 2025 में बृहस्पति और बुध की वायु तत्व राशि मिथुन में स्थिति असामन्य बारिश और मौसम के पैटर्न में भी बदलाव का संकेत है। चंद्रमा और शुक्र अग्नि तत्व राशि मेष में स्थित है। यह वर्षा के लिए अनियमिता को दर्शाता है। शनि की जलतत्व राशि मीन में गोचर असामन्यता के साथ ही अनियमित वर्षा की ओर इंगित कर रहे हैं। इससे उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में ज्यादा बारिश होगी और अतिवृष्टि का कहर भी बीते सालों की तुलना में अधिक दिख सकता है। जनधन हानि की भी प्रबल आशंका है।

मौसम, मानसून और बारिश के ज्योतिष संबंधों की चर्चा घाघ भड्डरी के बिना शुरू नहीं की जा सकती है। घाघ कब और किस काल खंड मे पैदा हुए, इसके बारे में सही-सही जानकारी नहीं है। लेकिन, उनके ज्योतिष सिद्धांतों पर आधारित लोक कहावतों ने एक आम किसान को खेती-किसानी के लिए जागरूक करने का काम किया। आज भी गांव-गांव में मौसम-बारिश, खेती-किसानी के साथ-साथ फसलों के चुनाव में उनकी कहावतों से किसान लाभान्वित हो रहे हैं। कृषि से संबंधित आधुनिक विज्ञान भी उनकी कहावतों को खारिज नहीं कर सका। घाघ कहते हैं कि सावन का पछुवा दिन दुइचार/ चूल्हे के पीछै उपजै सार। यानी यदि सावन के महीने में दो चार दिन भी पश्चिम दिशा से हवा चल जाए तो घर के चूल्हे के पीछे तक खेती हो जाती है।

मौसम और वर्षा से संबंधित भविष्यवाणियों का उल्लेख सबसे पहले अथर्ववेद में सामने आता है। इसके बाद वराहमिहिर कृत बृहत्संहिता में इसकी विस्तार से चर्चा मिलती है, जो भारतीय मौसम विज्ञान के ज्योतिष संबंधित सिंद्धांतों के मुख्य आधारों में से एक माना गया है। समय के साथ मौसम विज्ञान (Meteorology) से संबंधित मशीनरी के विकास, मौसम उपग्रहों और मौसम विज्ञान के सहायक विषयों के डाटा आधारित कंप्यूटीकृत गणनाओं से मौसम और मानसून के सटीक भविष्यवाणी के हम बेहद करीब हैं। लेकिन, मौसम के पूर्वानुमान की प्राचीन वैदिक पद्धति आज भी प्रासंगिक है।

एम.एस मेहता और ए. राधिका राव कृत पुस्तक मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, सन 2002 में मौसम विभाग ने मानसून के समय पर आने की घोषणा की थी, लेकिन ज्योतिषीय गणना में देरी से बारिश की बात कही गई। यह ज्योतिष शास्त्र का कथन सत्य निकला और मानसून का आगमन देरी से हुआ। 26 जुलाई 2005 को मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में मूसलाधार बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति आ गई। इसकी भविष्यवाणी ज्योतिष गणना के आधार पर पहले ही कर दी गई थी।

मोटे तौर पर निम्नलिखित आंकड़ों का विश्लेषण करके मानसून की स्थिति और बारिश आदि का सदियों से सटीक पूर्वानुमान लगाया जा रहा है।

सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश

वेदांग ज्योतिष में नभ-नभस्य मास वर्षा के माने गए हैं। सूर्य मिथुन राशि में 6 अंश 40 कला पार कर आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है, तब उत्तर भारत में मानसून का आगमन अथवा वर्षा प्रारंभ होती है। ये सौर मास आधुनिक प्रचलित काल गणना से 22 जून (लगभग) से नभ और 26 सितंबर (लगभग) को सूर्य जब कन्या राशि में 10 अंश पर पहुंचता है तो नभस्य यानी मानसून पलायन का वक्त होता है।

बृहत्संहिता के सद्योवर्षणाध्याय श्लोक में कहा गया है- प्रायो ग्रहणामुदयास्तकाले समागमे… अर्थात् सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में जाने पर नियमित वर्षा प्रारंभ होती। सामान्यतः आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा उत्तर फाल्गुनी हस्त, चित्रा इन 9 नक्षत्रों में सूर्य के संचरण काल में वर्षा होती है। सूर्य एक नक्षत्र में 13-14 दिन रहता है। इस प्रकार चार महीने कुछ न कुछ वर्षा होती रहती है। आर्द्रा प्रवेश कुंडली का स्थान दिल्ली लिया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि स्थान वाराणसी लेना चाहिए।

सप्तनाड़ी चक्र

नरपति जय चर्या नाक्षत्रिक ज्योतिष का एक प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथ है। नरपति नाम के विद्वान ने बारहवीं शताब्दी में सप्तनाड़ी चक्र का वर्णन किया है। यह चक्र वर्षा से संबंधित है, जो अनेक रहस्यमय प्राचीन दुर्लभ ग्रंथों के सार से युक्त होने के नाते सप्तनाड़ी चक्र वर्षा की भविष्यवाणी के लिए अनुभूत है। इससे वर्षा ऋतु की दैनन्दिनी वर्षा का पूर्व ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस चक्र में अभिजीत सहित 28 नक्षत्र बताए गए हैं। उनका वर्गीकरण एवं दृश्यमान सात ग्रहों से सामंजस्य कर वर्षा भविष्य कहने की विधि बताई गई है। कृतिका से आरंभ कर अभिजीत सहित क्रम से नक्षत्रों को लिखकर सप्तनाड़ी का वेध नाग कृति से करना चाहिए। इन सप्तनाड़ियों के नाम और उनके कारकत्व इस प्रकार है।
1. प्रचंड नाड़ी- स्वामी शनि चरम गर्मी का सूचक,
2. पवन नाड़ी- स्वामी सूर्य, तेज गर्म हवाओं का सूचक,
3. दहन नाड़ी – स्वामी मंगल, गर्म हवाओं का सूचक,
4- सौम्य नाड़ी स्वामी बृस्पति मौसम में बदलाव का सूचक (इसे मध्य नाड़ी भी कहते हैं)
5- नीर नाड़ी स्वामी शुक्र जलीय ग्रह मानसून की पहली वर्षा का सूचक,
6- जल नाड़ी- स्वामी बुध, मानसून में बेहतर वर्षा का सूचक और
7. अमृत नाड़ी- स्वामी चंद्र उत्तम या मूसलाधार बारिश का सूचक कहा गया है।

इन सात नाड़ियों को तीन वर्गों में बांटा गया है। यम या दक्षिण नाड़ी – पहले की तीन नाड़ियां प्रचंड, पवन और दहन इसके अंतर्गत आती हैं। ये गर्मी और लू की सूचक हैं। सौम्य नाड़ी -सौम्य, नीर और जल नाड़ियां इसके तहत आती हैं। ये मौसम में बदलाव और मानसून की शुरुआती बारिश की सूचक होती हैं। इसके बाद शीतल नाड़ी – अमृत नाड़ी को शीतल नाड़ी कहते हैं। यह अत्यधिक बारिश की सूचक हैं।

रोहिणी योग

रोहिणी योग का उपयोग वायु परीक्षण के लिए किया जाता है। आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जब चंद्रमा रोहिण नक्षत्र में प्रवेश करता है तो उसे रोहिणी योग कहते हैं। उस वक्त हवा का निरीक्षण कर आने वाले दिनों में कैसी बारिश होगी, इसका पूर्वानुमान लगाया जाता है। बारिश के पूर्वानुमान के लिए कुछ अन्य सिद्धांतों जैसे जलस्तंभ, अष्टनाग विचार, मेघों के गर्भाधान एवं गर्भपात आदि का भी अध्ययन किया जाता है।

मानूसन और बारिश के लिए कैसा रहेगा 2025

22 जून 2025 को (आषाढ़ कृष्ण द्वादशी) सुबह 6.20 सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश के दौरान भरणी नक्षत्र, सुकर्मा योग, कौलव करण होगा। आर्द्रा प्रवेश कुंडली में मिथुन लग्न उदय हो रहा है। लग्न में सूर्य के साथ बृहस्पति और बुध की स्थिति अच्छी बारिश का संकेत है। जलीय ग्रह चंद्रमा, सौम्य और बारिश के लिए शुभ माने जाने वाले शुक्र के साथ अग्नितत्व राशि मेष में स्थित है। यह मानसून की अच्छी स्थिति को दर्शाता है। नवमांश में शनि और चंद्रमा की दृष्टि लग्न पर है। यह बारिश की अनियमितता की ओर इशारा करता है।

मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, शुभ ग्रहों के अतिचारी (सामान्य गति से तेज चलना) होने और पाप ग्रहों के वक्री होने का संयोग अच्छा नहीं माना गया है। इस समय बृहस्पति मिथुन राशि में अतिचारी है और शनि 13 जुलाई से मीन राशि में वक्री हो जाएंगे। यह देश में अल्प या अनियमित बारिश की स्थिति का सूचक है। अग्नि तत्व प्रधान मंगल जलीय राशि कर्क में गोचर कर रहे हैं। यह कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के कई इलाकों में अल्प बारिश की स्थिति को दर्शाता है।

उत्तर भारत पर शनि की सप्तम दृष्टि

आर्द्रा प्रवेश कुंडली में शनि दसवें भाव मीन राशि में स्थित होकर अपने से सप्तम भाव कन्या राशि को देख रहे हैं, जो उत्तर दिशा की ओर इंगित करता है। वहीं मंगल अपनी आठवीं दृष्टि से शनि को देख रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप जुलाई माह में देश के उत्तरी भाग खासकर पहाड़ी राज्यों में मूसलाधार बारिश से भारी तबाही हो सकती है। मंगल से दृष्ट होने के कारण दसवां भाव मीन राशि यानी दक्षिणी राज्य आंध्र या तेलगांना में चक्रवात या तूफान आने की आशंका है।

मंगल-शनि के दृष्टि संबंध से अनियमित बारिश के योग

शनि मीन राशि में गोचर कर रहे हैं। ठीक सामने कन्या राशि में मंगल 28 जुलाई को प्रवेश करेंगे। वहां वह 13 सितंबर तक रहेंगे। आर्द्रा प्रवेश के समय मीन राशि दक्षिण दिशा और कन्या उत्तर दिशा को दर्शाती है। देश के कई क्षेत्रों में भारी और अनियमित बारिश का योग बन रहा है। खासकर दक्षिण भारत में ज्यादा दुश्वारियां झेलनी पड़ सकती है।

गुजरात-महाराष्ट्र में सामान्य से कम बारिश का अनुमान

अग्नि तत्व प्रधान मंगल का जलीय राशि कर्क में गोचर राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में सामान्य से कम बारिश की स्थिति को दर्शाता है। खासकर गुजरात के सौराष्ट्र और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।

अष्टनाग विचार में भी तूफान आदि से हानि का योग बनता दिख रहा है। इस साल यदि जलस्तंभ पर विचार करें तो जलस्तंभ 85.3 प्रतिशत होने से अच्छी बारिश के योग हैं। वायुसप्तक में प्रवह नामक वायु कुछ समुद्री तटीय राज्यों में समुद्री तूफान, बवंडर आदि से जनधनहानि का संकेत देती हैं। कुलमिलाकर इस बरसात में सचेत रहने की जरूरत है। अनावश्यक यात्राओं से बचें।

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