News Room Post

Dwijapriya Sankashti Chaturthi: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर व्रत करने से दूर होंगे कष्ट, जानिए पौराणिक कथाओं में क्या है इस दिन का महत्व

नई दिल्ली। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस महीने 20 फरवरी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन श्रद्धा और भक्ति से गणपति बप्पा की पूजा करता है, उसके सभी दुख और क्लेश दूर हो जाते हैं। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने के साथ ही व्रत कथा को भी पढ़ना या सुनना चाहिए।

जानिए संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से संतान प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। शादी के सालों बाद भी दोनों को कोई संतान नहीं हुई थी। एक दिन साहूकार की पत्नी पड़ोसन के घर गई, जहां संकष्टी चतुर्थी की पूजा चल रही थी। साहूकार की पत्नी ने भी पूजा में हिस्सा लिया और पूरा दिन उपवास रखा। उनकी पूजा-अर्चना से खुश होकर भगवान गणेश के आशीर्वाद से साहूकार दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र के विवाह के लिए साहूकारिनी ने भगवान गणेश से प्रथाना की। गणेश भगवान ने उसके बेटे के लिए अच्छी लड़की मिला दी। मगर साहूकारिनी व्रत करना भूल गई। जिससे नाराज़ होकर भगवान गणेश ने साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर पीपल के वृक्ष से बांध दिया। यह सारी बात जानने के बाद साहूकार की पत्नी ने उपवास रखकर भगवान गणेश से क्षमा मांगी। जिसके बाद गणेश जी ने साहूकार के बेटे को छोड़ दिया। तभी से पूरे नगर में सभी लोग चतुर्थी व्रत कर भगवान गणेश की उपासना करने लगे।

 

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2022 का शुभ मुहू्र्त

तिथि- 20 फरवरी 2022, रविवार
चतुर्थी की शुरुआत- 19 फरवरी को रात्रि 9 बजकर 56 मिनट से शुरू
चतुर्थी का समापन- 20 फरवरी की रात्रि 9 बजकर 05 मिनट पर खत्म
चंद्रोदय रात्रि- 9 बजकर 50 मिनट पर होगा

Exit mobile version