नई दिल्ली। आज सोमवार 5 सितंबर को तेजादशमी का पर्व मनाया जा रहा है। ये त्योहार हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान और देश के कुछ अन्य प्रदेशों में मनाए जाने वाले इस पर्व पर तेजा जी महाराज के मंदिरों में मेला लगता है। इस दिन भक्त तेजा जी को रंग-बिरंगी छतरियां अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से तेजा जी की पूजा करता है उसे सर्प दंश का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में तेजा जी महाराज के भक्तों की संख्या काफी अधिक मात्रा में है।
तेजाजी महाराज की पौराणिक कथा
तेजाजी अपने बाल्यकाल से अत्यंत वीर थे। हमेशा से ही वो लोगों की सहायता के लिए अग्रसर रहते थे। एक बार वो अपनी बहन को साथ लाने के लिए उसके ससुराल गए, जहां उन्हें जानकारी मिली कि एक डाकू उनकी बहन की गायें लूटकर ले जा रहा है। इसके बात वो डाकू की तलाश में जंगल की ओर चल पड़े।
रास्ते में भाषक नामक एक सांप ने उनका मार्ग रोक लिया और उन्हें डसने का प्रयास करने लगा। तब तेजाजी ने सांप से प्रार्थना करते हुए कहा कि “आप इस समय मुझे जाने दें। मेरी बहन की गायों को डाकुओं लूटकर ले गए हैं। उन्हें उनसे छुड़ाने के बाद मैं वापस यहां आ जाऊंगा, आप तब मुझे डंस लेना।” गायों को छुड़वा कर उन्हें सुरक्षित घर पहुंचा कर तेजाजी अपने वचन को पूरा करने के लिए सांप के पास पहुंच गए। डाकूओं से लड़ाई के दौरान वो काफी घायल हो चुके थे। उनका शरीर चोट के निशानों से भरे शरीर को देखकर सांप ने कहा कि “तुम्हारा पूरा शरीर खून से अपवित्र है। मैं डंक कहां मारुं? ” इस पर तेजा जी उनसे अपनी जीभ को डसने के लिए कहते हैं।
तेजा जी की वचनबद्धता देख कर नागदेवता प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहते हैं कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति अगर वह तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा तो उस पर जहर का प्रभाव नहीं पड़ेगा। तब से हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा जी महाराज के मंदिरों बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी के नाम का धागा बांधने वाले लोग इस दिन मंदिर में पहुंचकर धागा खोलते हैं और उनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं।
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