मनुस्मृति को लेकर आजकल खूब राजनीति हो रही है। राहुल गांधी ने 14 दिसंबर को संसद में मनुस्मृति और संविधान की तुलना करते हुए भाजपा पर निशाना साधा था। गत् 18 दिसंबर को राष्ट्रीय जनता दल की प्रवक्ता प्रियंका भारती ने मनुस्मृति को एक लाइव टीवी डिबेट में इसे महिला विरोधी बताते हुए इसकी कॉपी फाड़ दी। सत्ता पक्ष का विरोध करने के लिए यह नैरेटिव बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वर्तमान सरकार मनुस्मृति के हिसाब से देश को चला रही है। राहुल गांधी बार—बार यह बोल रहे हैं जबकि यह तथ्य कतई भ्रामक और झूठा है।
जिस मनुस्मृति को माध्यम बनाकर राहुल गांधी और विपक्षी सरकार पर निशाना साधकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं उसी मनुस्मृति के श्लोक कांग्रेसी दोहराते फिरते हैं, बिना यह जाने कि वह श्लोक कहां से लिए गए हैं। उदाहरण के तौर पर 2023 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस के अधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से एक्स पर पोस्ट किया गया था। इस पोस्ट में राहुल गांधी की यात्रा का फोटो साझा करते हुए मनुस्मृति के इस श्लोक ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।’ को लिखा गया था। इसका अर्थ है कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। जिस मनुस्मृति के श्लोक को राहुल गांधी की यात्रा के संबंध में साझा किया जाता है उसी मनुस्मृति को सदन में हाथ में लेकर राहुल गांधी राजनीति करते हैं। उसे देश और समाज के लिए घातक बताते हैं।
कोई भी देश को मनुस्मृति से चलाने की बात नहीं कर रहा लेकिन कितने ही मुस्लिम शरीयत लागू किए जाने का मंसूबा पाले जरूर बैठे हैं। जिस तरह राहुल गांधी मनुस्मृति हाथ में लेकर संसद में लहराते हैं और हिंदुओं पर निशाना साधते हैं यदि उनमें हिम्मत है तो शरीयत के खिलाफ एक शब्द बोलकर दिखाएं उनका सारा सेक्युलरिज्म सामने आ जाएगा। राहुल गांधी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि वह जानते हैं दूसरी तरफ सहिष्णुता नाम की कोई चीज नहीं हैं। यदि वह एक शब्द भी बोलेंगे तो उसके कितने घातक परिणाम हो सकते हैं यह राहुल गांधी अच्छे से जानते हैं।
जिस तरह राहुल गांधी हिंदू धर्म ग्रंथों को हाथ में लेकर सदन में लहराते हैं, भ्रामक बातें बोलकर जनता को बरगलाने की कोशिश करते हैं क्या उसकी तरह राहुल गांधी मुस्लिमों के लिए सबसे पाक मजहबी किताब कुरान शरीफ को लेकर सदन में आने की हिम्मत कर सकते हैं ? जिस तरह वह हिंदुओं को हिंसक बताने वाला बयान देते हैं। क्या वह शरीयत के खिलाफ बोल सकते हैं ? क्या वह मुस्लिमों को हिंसक बता सकते हैं ? तो इसका जवाब है नहीं। राहुल और तमाम विपक्षी दल सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं।
मुस्लिम तुष्टीकरण के अतीत में हजारों उदाहरण हैं। उदाहरण के तौर पर 1992-93 में हुए मुंबई में बम धमाकों के बाद महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दंगाइयों को बचाने का भरसक प्रयास किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने हिंदू इलाकों के साथ-साथ मुस्लिम इलाकों में भी बम धमाकों की झूठी खबर फैलवाई थी, जबकि ऐसा कुछ नहीं था। चुन—चुनकर हिंदू इलाकों को निशाना बनाया गया था। 2002 में गुजरात के गोधरा कांड के आरोपियों को बचाने के लिए भी कांग्रेस से पूरा प्रयास किया था। गोधरा में जिंदा जला दिए गए 59 कारसेवकों को लेकर कांग्रेस के मन में कोई हमदर्दी नहीं थी।
कांग्रेस हमेशा से अपने वोट बैंक के लिए इसी तरह की राजनीति करती आई है और वर्तमान में भी इसी तरह की राजनीति राहुल गांधी और तमाम विपक्षी दलों द्वारा की जा रही है। तभी तो राहुल गांधी सम्भल में मारे गए दंगाइयों को निर्दोष और मासूम बता रहे हैं, बाबासाहेब आंबेडकर के अपमान पर किए जाने का झूठा नैरेटिव गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। मनुस्मृति हाथ में लेकर भ्रम फैला रहे हैं। यह सिर्फ उनकी पिछले दस सालों से विपक्ष में रहने की हताशा है और कुछ नहीं। ऐसा इसलिए भी है कि तमाम प्रयास किए जाने के बाद भी उन्हें अपना कोई अच्छा भविष्य अभी तक तो राजनीति में नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस सेक्युलरिज्म की आड़ में अपने स्थापना काल से लेकर आज तक हिंदू आस्था को ही आहत करने का प्रयास करती आ रही है। कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी वोट बैंक की राजनीति के लिए हिंदू आस्था और सनातन पर प्रहार पर प्रहार कर रहा है। सनातन की जो भी निशानियां हैं उन पर भ्रम फैलाकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।