गत 22 अप्रैल का दिन एक और काले अध्याय के रूप में देश के इतिहास में दर्ज हो गया। पहलगाम में जो नृशंस आतंकी हमला हुआ, उसमें किसी सैन्य प्रतिष्ठान या सुरक्षा बल को निशाना नहीं बनाया गया था। यह हमला उन सामान्य पर्यटकों पर था, जो अपनी छुट्टियां मनाने, प्रकृति का आनंद लेने और कश्मीर की सुंदरता को निहारने आए थे, उनकी सबसे बड़ी ‘गलती’ यह थी कि वे हिंदू थे। आतंकियों ने उन्हें पहचान कर, परख कर, चुन-चुन कर बर्बरता से कत्ल किया। यह हमला न केवल एक मानवता के खिलाफ अपराध है, बल्कि कट्टरपंथी मजहबी नरसंहार है। यह सनातन आस्था के अनुयायियों के खिलाफ सुनियोजित युद्ध है।
हिंदू जब तक जिंदा है तो क्षेत्र, जाति और भाषा में बंटा हुआ है। लेकिन जब वह इस तरह घटनाओं में मारा जाता है तो इनमें से कोई चीज मायने नहीं रखती। इस्लामिक आतंकवाद के लिए वह काफिर है और उसका कत्ल वाजिब है। पहलगाम हमले पर बात करने वाले सो कॉल्ड सेकुलर एक स्थानीय मुसलमान घोड़े वाले के आतंकियों की गोली के शिकार होने का राग अलापते हुए फिर से यह विमर्श खड़ा करने का प्रयास करने में जुटे हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। ये बात दीगर है कि वह गलती से आतंकियों की गोलियों का शिकार हुआ। आतंकवादियों ने वहां मौजूद दर्जनों मुसलमानों में से किसी को नहीं मारा। एक असम का हिंदू प्रोफेसर तो बस इसलिए बच गया क्योंकि उसे कलमा पढ़ना आता था।
दरअसल, इस्लामिक आतंकवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह केवल पाकिस्तान द्वारा पोषित कुछ बंदूकधारी युवकों का मामला नहीं है, यह एक मजहबी विचारधारा है जो गजवा-ए-हिंद के स्वप्न में जी रही है। यह विचारधारा भारत की सनातन संस्कृति को खत्म कर, इसे एक इस्लामी मुल्क बनाने की खुली घोषणा करती है। और दुर्भाग्य की बात है कि भारत में बैठे वामपंथी बुद्धिजीवी और धर्मनिरपेक्षता का बाना ओढ़कर बैठे तत्व, आज भी इसे ‘अलगाववाद’ और ‘मानवाधिकारों का प्रश्न’ कहकर जिहादियों को नैतिक समर्थन दे रहे हैं।
क्या भारत का हिंदू समाज अब भी नहीं समझेगा कि यह लड़ाई केवल सीमा की नहीं है? यह लड़ाई केवल सैनिकों की नहीं है? यह लड़ाई हर हिंदू के अस्तित्व की है। इस्लामी आतंक अब केवल बमों या गोलियों तक सीमित नहीं रहा — यह विचारों, संस्थानों, फिल्मों, विश्वविद्यालयों और सोशल मीडिया तक में फैल चुका है। वह धीरे-धीरे हमारी चेतना को क्षीण कर रहा है, हमें बांट रहा है, हमारी एकता को तोड़ रहा है। हमारे मंदिर तोड़े जाएं, हमारी बहन-बेटियों के साथ दुर्व्यवहार हो, और फिर भी हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का पाठ पढ़ते रहें?
क्या यह हमारी सांस्कृतिक मूर्छा नहीं? क्या यह भीरुता नहीं कि हमे सरेआम मार रहे हैं, हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं। क्या हमें इन आतंकियों और जिहादियों का एक जुट होकर प्रतिकार नहीं करना चाहिए? यह हमला केवल कुछ पर्यटकों की हत्या नहीं थी। यह हमारी चेतना की परीक्षा थी। यह हिंदू समाज को जागने की अंतिम चेतावनी थी। और यदि अब भी हम नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब ये हमले पर्यटन स्थलों से उठकर तीर्थस्थलों और फिर वहां से उठकर आपके घरों तक पहुंचेंगे।
महाराष्ट्र के बीड जिले के माजलगांव की एक प्रतीकात्मक घटना हमें बहुत कुछ सिखा सकती है। पिछले दिनों वहां कुत्तों ने एक बंदर के बच्चे को मार डाला था। सामान्य पशु-प्रकृति के विपरीत, वहां बंदरों ने इस बात को नहीं भुलाया। उन्होंने एक—एक कर पूरे गांव के कुत्तों को चुन-चुनकर मार डाला। यह प्रतिशोध नहीं, ‘संगठित प्रतिकार’ था। यह घटना हमें बताती है कि यदि पशु भी अन्याय का उत्तर एकजुट होकर दे सकते हैं, तो भारत का हिंदू समाज कब तक जाति, क्षेत्र, भाषा और राजनीतिक दलों में बंटकर सोता रहेगा?
पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी मुल्क को, जिहादी कट्टरपंथियों को उनकी भाषा में ही जवाब देना अब अनिवार्य हो चुका है। पाकिस्तान सहित वैश्विक स्तर पर जिहादियों, कट्टरपंथियों और उनकी तरफदारी करने वाली वामपंथी बिग्रेड तक यह संदेश पहुंचना बेहद जरूरी है कि हम सहिष्णु हैं लेकिन दंड देना भी जानते हैं। ऐसा किए जाना इसलिए भी जरूरी है ताकि वैश्विक बिरादरी को यह संदेश भी जाए कि भारत अब अपने नागरिकों के संहार को हल्के में नहीं लेगा।
लेकिन प्रतिकार करने से पहले हिंदू समाज को अपने अंदर के आंतरिक विभाजन को मिटाना होगा। हिंदू समाज जाति, भाषा, प्रदेश, और दल की दीवारों को तोड़े। संगठित हो, एकजुट हो, और एक ऐसे विराट समाज का निर्माण करे जिसे कोई आतंकवादी ताकत छू भी न सके। यही हमारा सबसे बड़ा प्रतिकार होगा।
विश्व भर के हिंदुओं को भी यह समझना होगा कि यह केवल भारत की बात नहीं है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, हर जगह पर हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। यह एक वैश्विक हिंदू विरोध है, और इसका उत्तर एक वैश्विक हिंदू एकता से ही संभव है। यह हमारे लिए एक चेतावनी है जिसे यदि आपने अभी नहीं सुना, नहीं समझा, नहीं जागे तो कल आपको कोई भी नहीं बचा पाएगा। भारत के मूल पर, उसकी आत्मा पर, उसके सनातन स्वरूप पर यह हमला हो रहा है। आज हर हिन्दू को संगठित होना होगा। अन्यथा हम इतिहास के सबसे बड़े संकट में प्रवेश कर जाएंगे।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।