देश 2024 के लोकसभा चुनावों में नयीं सरकार बनाने जा रहा है । भाजपा ‘जहाँ अबकी बार 400 पार’ के नारे के साथ चुनावों में उतरी है, तो वहीं कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल ‘इंडी अलाइंस’ नाम के तहत अपना दमखम दिखा रहे हैं । जैसे-जैसे चुनावों की गति आगे बढ़ रही है अनेक प्रकार के नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं और पुराने नैरेटिव भी अलग- अलग तरीके से बाहर निकाले जा रहे हैं । इसी चुनावी घमासान के बीच दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज़ एंकर अशोक श्रीवास्तव अपनी एक नयीं पुस्तक लेकर आयें हैं, जिसका शीर्षक है ‘मोदी Vs खान मार्केट गैंग’ । पुस्तक का शीर्षक बड़ा आई कैचिंग लगता है । ‘खान मार्केट गैंग’ ये तीन शब्द आमतौर पर राजनितिक और मीडिया जगत में बहुत घूमते रहते हैं । काउंसिल फॉर मीडिया एंड पब्लिक पॉलिसी रिसर्च द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में छोटे-छोटे 25 अध्याय हैं और 295 पृष्ठ हैं, जिनके माध्यम से पुस्तक के शीर्षक को प्रमाणिक तरीके से सत्यापित करने का उत्कृष्ट उद्यम किया गया है ।
पुस्तक की शुरुआत में ही एक डिस्क्लेमर दिया गया है, जिसकी कुछ पंक्तियों को पढ़कर आपको पुस्तक की दिशा और लेखनी की धार को समझने में सरलता होगी । लिखा गया है, “सुचना युद्ध अब नैरेटिव की वॉर में बदल गया है । मजबूत होते भारत के खिलाफ आए दिन दुनिया की ताकतें, कुछ न कुछ नैरेटिव बनाती रहती हैं और भारत के ही कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण, तो कुछ इन ताकतों के पेड वर्कर बन कर भारत के खिलाफ शैडो जंग लड़ रहे हैं । इसी खतरे को देखकर स्वर्गीय जनरल विपिन रावत ने ढाई मोर्चे के युद्ध की तैयारी का आह्वान किया था” ।
पुस्तक की ‘दो टूक’ प्रस्तावना पाठक को इस पुस्तक को एक बार में ही अंत तक पढने के लिए प्रेरित करने की ताकत रखती है । लेखक, प्रस्तावना में यह भी स्पष्ट करते हैं कि इस पुस्तक का दिल्ली के व्यवसायिक स्थान ‘खान मार्केट’ से कोई लेना देना नही है और पहले अध्याय में विस्तार से समझाया गया है कि ‘खान मार्केट गैंग’ वास्तव में दिल्ली से न्यूयार्क तक फैली हुई है । इसी अध्याय की शुरुआत में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का नाम और खान मार्केट गैंग जैसे शब्द शीर्षक में क्यों हैं, ये बताया गया है ।
पुस्तक भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ गढ़े जाने फेक नैरेटिव्स का अध्याय-दर-अध्याय सिलसिलेबार पोल खोलती है और साथ ही चित्रों सहित और प्रमाणों के साथ सत्य का अनावरण भी करती है । यदि पाठक अपनी स्मृति पर थोड़ा सा जोर डालें तो उसे ऐसे कई मुद्दे ध्यान आयेंगे जिनके माध्यम से खान मार्केट गैंग ने भारत विरोधी विदेशी ताकतों के साथ मिलकर भारत और लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत हासिल करने वाले प्रधानमंत्री की छवि धूमिल करने की अनेक साजिशें रची हैं । उदाहरण के लिये :-
• मोदी तानशाह है ।
• मोदी जीत गया तो देश में चुनाव नहीं होंगे ।
• किसान आन्दोलन में मोदी ने 700 किसान मरवा दिए ।
• कोरोना वैक्सीन को लेकर फार्मा लॉबी के साथ मिलकर बबाल ।
• मीडिया की आज़ादी खतरे में ।
• भारत के खिलाफ फर्जी इंडेक्स की साजिश ।
• गोदी मीडिया का सिगुफा ।
• मोदी राज में मुसलमान असुरक्षित हैं ।
ऐसे और भी कईं मुद्दे या फिर फेक नैरेटिव हैं जो मोदी और भारत के खिलाफ गढ़े गए हैं ।
अशोक श्रीवास्तव ने शोधपूर्ण तरीके पुस्तक के 25 अध्यायों में उपरोक्त फेक नैरेटिव्स के साथ-साथ ‘खान मार्केट गैंग’ के बहुत से झूठों का पर्दाफ़ाश किया है । इस पुस्तक में आपको पता चलेगा कि किसान आन्दोलन के दौरान जिन 700 किसानों की हत्या का आरोप कांग्रेस सहित खान मार्केट गैंग मोदी सरकार पर मढ़ता है, उसकी वास्तविकता तो कुछ और ही है । लेखक ने चित्रों सहित पूरी सच्चाई सामने लाकर रख दी है जो देश को चौकाने वाली है । ऐसे भी तथाकथित किसान (मृतक) उस सूचि में हैं जो आपस में लड़ते हैं और लड़ते-लड़ते एक व्यक्ति दुसरे के सिर पर डंडा मार देता है और उसकी मृत्यु हो जाती है । लेकिन, खान मार्केट गैंग और विपक्ष हल्ला मचाता है कि मोदी सरकार ने 700 किसानों को मरवा दिया । मृतक किसानों की सूचि में 2 साल का बच्चा भी है !
ऐसे ही भारत के खिलाफ दुराग्रह के कारण फर्जी हंगर इंडेक्स रिपोर्ट या फिर प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट बनाने वाले विदेशी गिरोहों की पोल भी प्रमाणों के साथ खोली गयी है । कांग्रेस सहित विपक्षी दल ईवीएम हैकिंग का बबाल मचाते रहते हैं, उसको लेकर भी प्रमाणों सहित झूठ का पर्दाफाश किया गया है । एक अध्याय तो प्रमाणों सहित केवल यह बताने के लिए लिखा गया है कि भारत का ‘असली गोदी मीडिया’ कौन है? श्रीराम मंदिर को लेकर गढ़े गये झूठ और 370 हटने के बाद कश्मीर को लेकर फैलाए गये फेक नैरेटिव की पोल खोल भी प्रामाणिक तरीके से की गयी है । पुस्तक भारत में रहने वाले मीडिया जगत से जुड़े खान मार्केट गैंग के नामी सदस्यों के चेहरों से भी नक़ाब उतारती है । पुस्तक का हर अध्याय अपने आप में एक नये फेक नैरेटिव पर विस्तार से बात करता है और साथ ही साथ उस फेक नैरेटिव का प्रमाणिक तरीके से पर्दाफ़ाश किया जाता है । जिस तरीके और भाव से लेखक ने पुस्तक लिखी है उससे उनका राष्ट्रवादी पत्रकारिता का लंबा अनुभव साफ़-साफ़ झलकता है । वास्तव में ये कोई साधारण पुस्तक नही है, बल्कि एक विचारोत्तेजक ‘रेपोजिट्री’ है, जो विशेषकर पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों और भविष्य में पत्रकारिता से जुड़ने वाले विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से पत्रकारिता कैसे की जाती है, यह सिखाने का काम करेंगी । जहाँ तक देश के नागरिकों की बात है तो ये पुस्तक उनको भी झकझोरेगी और उन्हें देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने का एहसास कराएगी । यह पुस्तक देश के नागरिकों को किसी भी देश विरोधी नैरेटिव पर बिना सोचे समझे केवल सोशल मीडिया, मीडिया या किसी नेता की बातों को ही सच मानने से रोकती है । बल्कि लोगों को अपने आप तथ्यों की जाँच-परख करने के लिए प्रेरित करती है ।